क़ाअदा और सलाम
(१) दूसरी रकात के दूसरे सजदे के बाद क़ाअदे में बैठें. कअदा में इस तरह बैठ जाऐं, जिस तरह “जलसे” में बैठे.
(२) क़अदह में तशह्हुद पढ़े.
तशह्हुद के कलिमात यह हैं:
اَلتَّحِيَّاتُ لِلّٰهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ اَلسَّلَامُ عَلَيْنَا وَعَلٰى عِبَادِ اللهِ الصَّالِحِيْن أشْهَدُ أنْ لَّا إلٰهَ إلَّا اللهُ وَأشْهَدُ أنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ
तमाम क़ौली, फ़ेअली और माली इबादतें अल्लाह तआला के लिये हैं. ए नबी ! आप पर सलाम हो और आप पर अल्लाह तआला की रहमत और बरकतें हों. हमारे ऊपर और अल्लाह तआला के नेक बंदों पर सलाम हो. में गवाही देता हुं के अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद नहीं है और में गवाही देता हुं के मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के बंदे और उन के रसूल हैं.
(३) जब आप तशह्हुद में शब्द أَنْ لَّا إِلٰهَ पर पहुचे तो أَنْ لَّا إِلٰهَ केहने के वक़्त दायें हाथ के अंगूठे और दरमियानी ऊंगली से अंगूठी की शकल (गोल शकल) बना लें फिर शहादत की ऊंगली क़िबले की तरफ़ उठायें और बक़िय्या ऊंगलियों (ख़िन्सर और बिन्सर) को बंद रखें.
जब आप शब्द إلَّا اللهُ पर पहुचे तो إلَّا اللهُ केहने के वक़्त शहादत की ऊंगली नीचे कर लें और अंगूठे और दरमियानी ऊंगली को क़अदे के अख़ीर तक अंगूठी की शकल में मिलाये हुए रखें.
(४) अगर आप तीन या चार रकात फ़र्ज नमाज़ अदा कर रहे हों, तो तशह्हुद के अलावह कुछ भी न पढ़ें. बलके तशह्हुद पढ़ने के फ़ौरन बाद तीसरी रकात के लिये खड़े हो जायें.
(६) अगर यह कअदए अख़ीरा हों (यअनी नमाज़ का आख़री क़अदा हो), तो तशह्हुद के बाद निम्नलिखित दुरूदे इब्राहीम पढ़ें, फिर क़ुर्आन मजीद या हदीष शरीफ़ से व्युत्पन्न (माख़ूज़) कोई दुआ पढ़ें.
दुरूदे इब्राहीम यह हैः
اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّعَلٰى اٰلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلٰى اِبْرَاهِيْمَ وَعَلٰى اٰلِ اِبْرَاهِيْمَ اِنَّكَ حَمِيْدٌ مَّجِيْدٌ
اَللّٰهُمَّ بَارِكْ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّعَلٰى اٰلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلٰى اِبْرَاهِيْمَ وَعَلٰى اٰلِ اِبْرَاهِيْمَ اِنَّكَ حَمِيْدٌ مَّجِيْدٌ
ए अल्लाह दुरूद भेज हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर और हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की औलाद पर, जैसा के तु ने दुरूद भेजा हज़रत इब्राहीम (अलै.) पर और हज़रत इब्राहीम (अलै.) की औलाद पर, बेशक आप तारीफ़ के लाईक़ और बुज़ुर्गो बरतर हैं.
ए अल्लाह ! बरकत नाज़िल फ़रमा हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर और हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की औलाद पर जिस तरह तु ने बरकत नाज़िल फ़रमाई हज़रत इब्राहीम (अलै.) पर और हज़रत इब्राहीम (अलै.) की औलाद पर. बेशक आप तारीफ़ के क़ाबिल और बुज़ुर्गो बरतर हैं.
दुरूदे इब्राहीम के बाद निम्नलिखित दुआ पढ़ सकते हैं. यह दुआ हदीष शरीफ़ में वारिद हैः
اَللّٰهُمَّ إِنِّيْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ ظُلْمًا كَثِيرًا وَلَا يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ إِلاَّ أَنْتَ فَاغْفِرْ لِيْ مَغْفِرَةً مِّنْ عِنْدِكَ وَارْحَمْنِيْ إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْم
ए अल्लाह ! बेशक में ने अपने आप पर बोहत ज़्यादा ज़्यादती की है. और सिर्फ़ आप ही गुनाहों को बख़्शने वाले हैं. आप मुझे अपनी तरफ़ से बख़श दें और मुझ पर रहम फ़रमायें. बेशक आप बहोत ज़्यादा बख़्शने वाले और बहोत ज़्यादा रहम करने वाले हैं. [१]
(६) दुआ पढ़ने के बाद सलाम करे. सलाम का तरीक़ा यह है के पेहले अपना सर दायीं तरफ़ फैरे और सलाम कहे اَلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهْ फिर अपना सर बायीं तरफ फैरे और सलाम कहे اَلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهْ .
(७) सलाम फेरते हुए न तो सर को झुकायें और न ही झटका दें.
(८) सलाम फेरने के वक़्त जब सर दायीं या बायीं तरफ़ पहोंचे, तो अपनी निगाह को दायें और बायें कंधों पर रखें.
(९) दोनों जानिब सलाम फैरते हुए अपना चेहरा इस क़दर फेरें के पीछे बैठने वाला आदमी आप के रूख़सार को देख सके.
(१०) सलाम फैरने के बाद तीन बार أَسْتَغْفِرُ الله पढ़ें.
(११) नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद दुआ करें, क्युंकि फ़र्ज़ नमाज़ के बाद दुआ क़बूल होती है.
(१२) हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद तसबीहे फ़ातमी पढ़ें. तसबीहे फ़ातमी यह है के ३३ बार सुब्हानल्लाह, ३३ बार अलहम्दुलिल्लाह, ३३ बार अल्लाहु अकबर और आख़िर में सो संख्या की तकमील के लिये निम्नलिखित दुआ पढ़ेः
لَا إِلٰهَ إلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيْكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْر
अल्लाह तआला के अलावह कोई माबूद नहीं है. वह तन्हा हैं. उन का कोई साझी नहीं है. उन ही के लिये बादशाहत है और उन ही के लिये सारी तारीफ़ें हैं और वह हर चीज़ पर क़ादिर हैं.
[१]