अगर कोई शख़्स मरज़ुल मौत में हो, मगर किसी और सबब से मर जाये (मिषाल के तौर पर वह आख़री दरजे के केन्सर में मुब्तला हो, मगर वह गाड़ी के हादषे की वजह से मर जाये) तब भी इस बीमारी को “मरज़ुल मौत” कहा जायेगा...
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फ़र्ज़ नमाज़़ों के बाद दुरूद शरीफ़ पढ़ना
हज़रत अनस (रज़ि.) के दिल में रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की इतनी ज़्यादा मोहब्बत थी के उन्होंने अपने आप को नबीये करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के बग़ैर इस दुन्या में रेहने के क़ाबिल नहीं समझा...
और पढ़ो »जीवन के हर पहलू में इत्तेबाये सुन्नत की कोशिश करे
मेरे चचा जान (यअनी हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब (रह.)) भी मुझको इत्तेबाए सुन्नत की नसीहत फ़रमाई थी और यह के अपने दोस्तो को भी उस की ताकीद ज़रूर करते रेहना...
और पढ़ो »सूरतुल क़ारिअह की तफ़सीर
खड़खड़ाने वाली चीज़ (१) क्या है वह खड़खड़ाने वाली चीज़ ? (२) और आप को क्या मालूम के वह खड़खड़ाने वाली चीज़ क्या है ?...
और पढ़ो »निकाह की सुन्नतें और आदाब – ९
अगर एक घर के अन्दर परिवार के एसे सदस्य भी रेहते हों, जो औरत के लिये नामहरम हों, तो नामहरम मर्द और औरत के लिये ज़रूरी है के घर के अन्दर भी परदे का पूरा एहतेमाम करें...
और पढ़ो »मुसलमान की गर्भवती ईसाई या यहूदी बिवी की तदफ़ीन कहां की जाये?
अगर गर्भवती महीला औरत मर जाये और उस के पेटे में बच्चा जिवीतत हो, तो बच्चे को आपरेशन के द्वार निकाला जायेगा और अगर बच्चा जिवीत न हो, तो उस को नहीं निकाला जायेगा...
और पढ़ो »नमाज़ में दुरूद शरीफ़
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के “रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हमें तशह्हुद की दुआ (अत तहिय्यातुत तय्यिबातुज़ ज़ाकियातु अख़ीर तक) सिखाते थे (और उस के बाद फ़रमाते के तशह्हुद की दुआ पढ़ने के बाद) दुरूद शरीफ़ पढ़ना चाहिए.”...
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