मोहब्बत का बग़ीचा (ग्यारहवां प्रकरण)‎

بسم الله الرحمن الرحيم

शर्मो हया की कमी – वबा का मुख्य कारण

अल्लाह तआला ने फल की ख़ूबसूरती और हिफ़ाज़त के लिए “छिलका” बनाया है, जब “छिलका” उतर जाता है, तो फल की ख़ूबसूरती ख़तम हो जाती है और वह महफ़ूज़ नहीं रेहता है, बलके वह बहोत जल्द ख़राब हो जाता है और उस के अंदर बदबू पैदा हो जाती है.

इसी तरह अल्लाह तआला ने इन्सान की ख़ूबसूरती के लिए और सर्दी तथा गरमी से बचाव के लिए “लिबास” पैदा किया है. जबतक यह लिबास उस के बदन पर रेहता है, इन्सान की ख़ूबसूरती बाक़ी रेहती है और वह सर्दी और गरमी से महफ़ूज़ रेहता है और जब उस का लिबास उतर जाता है, तो उस की ज़ाहिरी ख़ूबसुरती ज़ाईल (ख़तम) हो जाती है और वह सर्दी और गरमी से महफ़ूज़ नही रेहता है.

जिस तरह अल्लाह तआला ने इन्सान की ज़ीनत और उस के जिस्म की हिफ़ाज़त के लिए ज़ाहिरी लिबास पैदा फ़रमाया है, इसी तरह इन्सान की बातिनी ख़ूबसूरती और उस की रूह की हिफ़ाज़त के लिए “रूहानी लिबास” भी पैदा किया है. रूहानी लिबास क्या है? रूहानी लिबास “हया” है. क़ुर्आने करीम में अल्लाह तआला का फ़रमान हैः

وَّ جَعَلَ لَکُمۡ سَرَابِیۡلَ تَقِیۡکُمُ الۡحَرَّ وَ سَرَابِیۡلَ تَقِیۡکُمۡ بَاۡسَکُمۡ

और तुम्हारे लिए ऐसे कुर्ते बनाए जो गर्मी से तुम्हारी हिफ़ाज़त करते हैं और ऐसे कुर्ते बनाए जो तुम्हारी लड़ाई के वक़्त हिफ़ाज़त करते हैं

दूसरी जगह अल्लाह तआला का इरशाद हैः

یٰبَنِیۡۤ اٰدَمَ قَدۡ اَنۡزَلۡنَا عَلَیۡکُمۡ  لِبَاسًا یُّوَارِیۡ سَوۡاٰتِکُمۡ وَرِیۡشًا ؕ وَلِبَاسُ التَّقۡوٰی ۙ ذٰلِکَ خَیۡرٌ

ए आदम (अलै.) की औलाद ! हम ने तुम्हारे लिए लिबास पैदा किया है, जो तुम्हारे परदा वाले बदन को छुपाता है और ज़ीनत का कारण भी है और तक़वा का लिबास (उस से भी) बढ़ कर है.

नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशादे गिरामी है के “हया इमान का विभाग है”. (बुख़ारी शरीफ़) दूसरी हदीष शरीफ़ में वारिद है के “हर मज़हब में एक उल्लेखनिय “खल्क़” है और इस्लाम में उल्लेखनिय ख़ल्क़ “हया” है. (इब्ने माजा) यह बात ज़हन में  रेहनी चाहिए के जब हम “हया” की बात करते हैं सामान्य तौर पर हमारे ज़हन में यह बात आती है के “हया” का ताल्लुक़ लिबास से है यअनी हमें लिबास में शर्मो हया का ख़्याल रखना चाहिए, जब के हया का ताल्लुक़ मात्र लिबास से नहीं है (अगर चे लिबास में शर्मो हया का लिहाज़ बहोतही अहम है मगर शर्मो हया लिबास तक मुनहसिर नहीं है), बलके हया के अंदर यह भी शामिल है के इन्सान अल्लाह तआला के अधिकार (हुक़ूक़) की अदायगी और मख़लूक़ के साथ मामला करने में इस्लामी आदाब और शरई तरीक़ों और नियमों तथा सिद्धांतों का लिहाज़ रखे.

अगर हम रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की जिवन का अभ्यास करें, तो हमें अच्छी तरह मालूम हो जाएगा के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) इबादत, मुआशरत (समाज), खाने पीने, सोने और लोगों के साथ मामलात में शर्मो हया का जीवीत नमूना थे, यहां तक के शारीरिक और मानवीय ज़रूरतों को पूरी करने में भी पूरे तौर पर “हया” का ख़्याल रखते थे और ज़र्रा बराबर हया से ग़फ़लत नहीं बरतते थे. नीज़ आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इस बात का विशेष रूप से प्रबंध फ़रमाया के सहाबए किराम (रज़ि.) के जीवन में सिफ़ते “हया” इस तरह रच बस जाए के वह पूरे तौर पर काफ़िरों से अलाहिदा हो जाऐं और उन के जिवन का नक़्शा काफ़िरों से पूरे तौर पर मुमताज़ रहे और उन के दरमियान थोड़ी भी मुशाबहत न रहे.

नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अपबू मुबारक जिवन के तमाम विभागो में ख़ुद भी “हया” का बहोत ज़्यादह प्रबंध फ़रमाया और सहाबए किराम (रज़ि.) को भी उस की ताकीद फ़रमाई, इसलिए के “हया” एक ढ़ाल है, जो इन्सान के इमान और अख़लाक़ की हिफ़ाज़त करती है. जब इन्सान के अंदर यह सिफ़त (हया) पैदा हो जाती है, तो वह तमाम लोगों के साथ इज्जत तथा एहतेराम और वक़ार के साथ पेश आता है.

एक मर्तबा नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने सहाबए किराम (रज़ि.) को फ़रमाया के अल्लाह तआला से हया (शरम) करो, जैसा के उस से हया करने का हक़ है. सहाबए किराम (रज़ि.) ने अर्ज़ कियाः अलहम्दुलिल्लाह ! हम अल्लाह तआला से शरम करते हैं. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह  तआला के साथ हया करने का मतलब वह नहीं जो तुम समझते हो, बलकि अल्लाह तआला से हया करने का मतलब यह है के तुम सर की और जिन अंग को सर ने जमअ किया है, (हर वक़्त गुनाहों से) उन की देखभाल (निगेहदाश्त) करो और पेट की और जिन अंग को पैट ने समेटा है, (हर वक़्त गुनाहों से) उन की देखभाल (निगेहदाश्त) करो और मोत और फ़ना होने को हंमेशा याद करो. जो व्यक्ति आख़िरत को अपना हेतु बनाता है वह दुनिया की ज़ीनत से मुंह मोड़ लेता है. लिहाज़ा जिस व्यक्ति ने यह काम किए, उस ने यक़ीनन अल्लाह तआला से हया की, जैसा उन से हया करने का हक़ है. (सुनने तिर्मीज़ी) एक दूसरी हदीष शरीफ में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने आगाह फ़रमाया है के एक एसा ख़राब ज़माना आएगा के उस में लोगों से हया उठ जाएगी. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उस ज़माने के बारे में फ़रमाया के उस में अहले इल्म की पैरवी नही की जाएगी और हलीम (बुर्दबार आदमी) से हया नहीं की जाएगी. उस के ज़माने के लोगों के दिल अजमियों के दिल होंगे और उन की ज़बानें अरबों की ज़बानें होंगी. (मजमउज़ ज़वाईद) इस हदीष शरीफ़ में पेशनगोई की गई है के मुसलमान इस्लामी अख़लाक़ो इक़दार पर बाक़ी नहीं रहैंगे और काफ़िरों की नक़ळ करेंगे. आजकल हम खुली आंखों से मुशाहदा कर रहै हैं के मुसलमानों के जिवन से “हया” रुख़सत हो चुकी है, जिस का नतीजा यह है के वह अक़वालो अफ़आल में काफ़िरों के तरीक़ों की पैरवी कर रहे हैं और विभिन्न प्रकार की बे हयाईयों और बुराईयों में मुब्तला है. जैसे तस्वीर बनाना, टेलीविज़न देखना और इनटरनेट का ग़लत कामों में इस्तेमाल करना. मौजूदा दौर में स्मार्ट फ़ोन आाम हो चुका है, जिस की वजह से गुनाह करना और ज़्यादा आसान हो गया है. यही वजह है के पूरी दुनिया में बुराईयां आम हो चुकी हैं.

हक़ीक़त यह है के जब इन्सान से “हया” रूख़सत हो जाती है, तो उस का दीन तथा इमान ख़तरे में पड़ जाता है. वह लोगों के साथ अदब तथा एहतेराम के साथ मामला नहीं करता है और उन के अधिकार की फ़िकर नहीं करता है. बलके मात्र अपना दुनयवी मफ़ीद पेशे नज़र रख़ता है बे हयाई और बुराई की जगहों पर जाता है, बुरे दोस्तों के साथ रेहता है, गाना सुनता है और इनटरनेट और मोबाईल पर हराम चीज़ें  देखता है. उन सब बुराईयों में मुलव्वष होने की वजह सिर्फ़ यह है के उस की जिवन में “हया”  बाक़ी नहीं है.

नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के जब कोई क़ौम बुराई में मुब्तला हो जाती है, तो उन में ताऊन, वबा और एसी बीमारियों  फैल जाती हैं, जो पिछले ज़माने के लोगों में नही देखी गई और एसी मुसीबतें और फ़ित्ने लगों को हैरान और परेशान छोड़ देगी. नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने एसी हालत में सिर्फ़ एक हल बताया है और वह यह है के लोग अल्लाह तआला के सामने तौबा करें, गिरया व ज़ारी करें और ख़ूब दुआ करें, जिस तरह  ड़ूबने वाला दुआ करता है.

हम दुआ करते हैं के अल्लाह तआला तमाम मुसलमानों को जिवन के तमाम ऊमूर में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों पर अमल करने और अल्लाह तआला की तरफ़ रूजुअ होने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=17011


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