हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“एक अहले इल्म रोने लगे के न मालूम मेरा ख़ातमा कैसा होगा. फ़रमाया में भविष्य (मुसतक़बिल) पर क़सम तो खाता नहीं मगर इस को बक़सम केहता हुं के अल्लाह तआला बख़्शने के लिए तो बहाना ढुंढते हैं और अज़ाब के लिए नहीं ढुंढते उन का क्या काम पड़ा किसी को अज़ाब देने पर, अल्लाह तआला फ़रमाते हैंः
مَّا يَفْعَلُ اللَّـهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَآمَنتُمْ (النساء: ١٤٧)
क्या करेगा अल्लाह तआला तुम को अज़ाब दे कर अगर तुम शुकर गुज़ार हो जावो और इमान ले आवो”
(मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-१०, पेज नं-३४३)
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