नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – २

क़याम

(१) जब आप नमाज़ पढ़ने का इरादा करें, तो क़िब्ले की तरफ़ रूख़ कर के खड़े हो जायें. [१]

(२) फिर उस नमाज़ की निय्यत करें, जो आप अदा करने वाले हैं और अपने हाथों को उठाये यहां तक के आप के अंगूठे कानों की लव के बराबर हो. [२]

(३) जब आप नमाज़ के लिये खड़े हों, तो पूरे अदबो एहतेराम के साथ खड़े हों. दोनों पैरों का रूख़ क़िब्ले की तरफ़ कर लें और दोनों पैरों के दरमियान तक़रीबन चार ऊंगलियों का फ़ासला रखें. और जब जमाअत के साथ नमाज़ अदा कर रहे हों, तो सफ़ें सीधी कर लें, सफ़ों के दरमियान फ़ासला बिलकुल न छोड़ें और जहां तक हो सके, एक दूसरे से मिल कर खड़े हों. पैरों को इस तरह न फैलायें के एक आदमी के पैर की ऊंगलियां दूसरे आदमी के पैर की ऊंगलियों से मिल रही हों. [३]

(४) जब हाथों को कानों की लव तक उठायें, तो इस बात का अच्छी तरह ख़्याल रखें के हथेलियां क़िब्ला रूख हों और ऊंगलियां अपनी प्राकृतिक उपस्थिति (फ़ितरी हयअत) पर हों (न तो फैली हुई हों और न मिली हुई हों). [४]

(५) तकबीरे तहरीमा केहते वक़्त अपने सर को सीधा रखें. तकबीरे तहरीमा केहते वक़्त अपने सर को न तो आगे की तरफ़ झुकायें और न पीछे की तरफ़, बलके बिलकुल सीधा रखें. [५]

(६) हाथों को कानों की लव के बराबर तक उठाने के बाद तकबीरे तहरीमा कहें (अल्लाहु अकबर कहें). [६]

(७) तकबीर केहते हुवे हाथों को नीचे करें और नाफ़ के नीचे हाथों को बांध लें. [७]

(८) दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर रखें. [७]

(९) दायें हाथ की दो ऊंगलियों से (छोटी अंगली और अंगूठे से) बायें हाथ के गट्टे को पकड़ें और बक़िय्या तीनों उंगलियां बायें हाथ की कलाई पर रखें. [८]

(१०) आप अपनी निगाह इधर उधर न फैरें, बलके सिर्फ़ सजदे की जगह पर रखें. [९]

(११) जब आप नमाज़ शुरू कर दें, तो ख़ामोशी से षना पढ़ेंः [१०]

سُبْحَانَكَ اللّٰهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالٰى جَدُّكَ وَلَا اِلٰهَ غَيْرُكَ

ए अल्लाह ! आप की ज़ात पाक है आप ही के लिये तारीफ़ है. आप का नाम बाबरकत है. आप का मर्तबा इन्तिहाई अज़ीम है और आप के अलावह कोई माबूद नहीं है.

नोटः- इमाम, मुक़्तदी और मुनफ़रिद षना पढ़े.

(मुक़्तदी यअनी इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाला और मुनफ़रिद यअनी अकेले नमाज़ पढ़ने वाला). [११]

(१२) तअव्वुज़ तस्मियह आहिस्ता पढ़ें. [१२]

तअव्वुज़ यह हैः

أَعُوْذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيْم

में मरदूद शैतान से अल्लाह की पनाह मांगता हुं.

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْم

में शुरू करता हुं अल्लाह तआला के नाम से जो बेहद महेरबान और इन्तिहाई रहम करने वाला है.

(१३) षना, तअव्वुज़ और तसमिया आहिस्ता आवाज़ से पढ़ने के बाद सुरए फ़ातिहा पढ़ें और उस के बाद कोई सुरत या क़ुर्आने करीम की किसी भी जगह से पढें. [१३]

(१४) सुरए फ़ातिहा पढ़ने के बाद आहिस्ता आवाज़ से आमीन कहें, भले आप तनहा नमाज़ अदा कर रहे हैं या आप इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं. [१४]

(१५) अगर आप सुरए फ़ातिहा के बाद दूसरी सुरत शुरूअ करना चाहते हैं, तो पेहले आहिस्ता आवाज़ में तसमिया पढ़ें फिर दूसरी सूरत शुरूअ करें. [१४]

नोटः (अ) तअव्वुज़ और तसमिया सिर्फ़ इमाम और मुनफ़रिद (तनहा नमाज़ पढ़ने वाले) पढ़ेंगे. मुकतदी तअव्वुज़ और तसमिया नहीं पढ़ेगा. [१३] बलके वह षना पढ़ने के बाद इमाम के पीछे क़याम के दौरान ख़ामोश रहेगा.

(ब) मुक़तदी इमाम के पीछे कोई तिलावत नहीं करेगा. सुरए फ़ातिहा नहीं पढ़ेगा और कोई सूरत भी नहीं पढ़ेगा. मुक़तदी के लिए इमाम के पीछे हर तरह की क़िराअत पढ़ना (भले सुरए फ़ातिहा क़िराअत हो तथा कोई और आयात की क़िराअत हो) नाजाईज़ है और मकरूहे तहरीमी है. [१५]

(१६) अगर आप तीन या चार रकात वाली फ़र्ज़ नमाज़ अदा कर रहे हैं, तो तीसरी और चोथी रकात में सिर्फ़ सुरए फ़ातिहा पढ़ें. सुरए फ़ातिहा पढ़ने के बाद कोई और सूरत न पढ़ें.

फ़र्ज़ नमाज़ की तीसरी और चोथी रकात में सिर्फ़ इमाम और मुनफ़रिद सुरए फ़ातिहा पढ़ेंगे. मुक़तदी (इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) तमाम रकातों में ख़ामोश रहेगा और वह किसी भी रकात में कुछ नहीं पढ़ेगा. [१६]

(१७) अगर आप सुन्नत या नफ़ल नमाज़ अदा कर रहे हैं, तो तमाम रकातों में क़िराअत करें (यअनी सुरए फ़ातिहा और सूरतें पढ़ें) यअनी भले आप दो रकात वाली सुन्नत तथा नफ़ल नमाज़ अदा कर रहे हैं तथा चार रकात वाली सुन्नत तथा नफ़ल नमाज़ अदा कर रहे हैं. हर रकअत में क़िराअत वाजिब है (यअनी सुरए फ़ातिहा और सूरत की क़िराअत वाजिब है). [१७]


 

[१] شروط الصلاة وهي عندنا سبعة … واستقبال القبلة (الفتاوى الهندية ۱/۵۸، البحر الرائق ۱/۲۸۳)

[२] رفع يديه حذاء أذنيه حتى يحاذي بإبهاميه شحمتي أذنيه وبرؤوس الأصابع فروع أذنيه (الفتاوى الهندية ۱/۷۳)

فالأول من شروط صحة التحريمة أن توجد مقارنة للنية حقيقية أو حكما (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲۱۷)

[३] وينبغي أن يكون بين قدميه أربع أصابع في قيامه كذا في الخلاصة (الفتاوى الهندية ۱/۷۳، رد المحتار ۱/٤٤٤)

(ويصف) أي يصفهم الإمام بأن يأمرهم بذلك قال الشمني وينبغي أن يأمرهم بأن يتراصوا ويسدوا الخلل ويسووا مناكبهم (الدر المختار ۱/۵٦۸)

ويكره أن يحرف أصابع يديه أو رجليه عن القبلة في السجود وغيره كذا في فتاوى قاضي خان (الفتاوى الهندية ۱/۱٠۸)

[४] قال الفقيه أبو جعفر يستقبل ببطون كفيه القبلة (الفتاوى الهندية ۱/۷۳، رد المحتار ۱/٤۸۲)

وإذا رفع يديه لا يضم أصابعه كل الضم ولا يفرج كل التفريج بل يتركها على ما كانت عليه بين الضم والتفريج (الفتاوى الهندية ۱/۷۳)

[५] ولا يطأطأ رأسه عند التكبير (الفتاوى الهندية ۱/۷۳)

[६] (ورفع يديه) قبل التكبير وقيل معه

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله (قبل التكبير وقيل معه) الأول نسبه في المجمع إلى أبي حنيفة ومحمد وفي غاية البيان إلى عامة علمائنا وفي المبسوط إلى أكثر مشايخنا وصححه في الهداية والثاني اختاره في الخانية والخلاصة والتحفة والبدائع والمحيط بأن يبدأ بالرفع عند بداءته التكبير ويختم به عند ختمه وعزاه البقالي إلى أصحابنا جميعا ورجحه في الحلية وثمة قول ثالث وهو أنه بعد التكبير والكل مروي عنه عليه الصلاة والسلام وما في الهداية أولى كما في البحر والنهر ولذا اعتمده الشارح فافهم (رد المحتار ۱/٤۸۲)

[७] وضع يمينه على يساره تحت سرته (الفتاوى الهندية ۱/۷۲)

[८] ويأخذ الرسغ بالخنصر والإبهام ويرسل الباقي على الذراع (الفتاوى الهندية ۱/۷۳)

[९] نظر المصلي إلى موضع سجوده قائما (نور الإيضاح صـ ۷۲)

[१०] عن عائشة قالت كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا استفتح الصلاة قال سبحانك اللهم وبحمدك وتبارك اسمك وتعالى جدك ولا إله غيرك (سنن أبي داود، الرقم: ۷۷٦)

[११] (ويستفتح كل مصل) سواء المقتدي وغيره ما لم يبدأ الإمام بالقراءة (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲۸۱)

[१२] (ثم يتعوذ) … (سرا للقراءة) … (فيأتي به المسبوق) … (لا المقتدي) لأنه للقراءة ولا يقرأ المقتدي … (ثم يسمي سرا) … (ويسمي) كل من يقرأ في صلاته (في كل ركعة) (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲۸۱-۲۸۲)

[१३] (ثم قرأ الفاتحة وأمن الإمام والمأموم سرا ثم قرأ سورة أو) قرأ (ثلاث آيات) قصار أو آية طويلة وجوبا (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲۸۲)

[१४] (لا) تسن (بين الفاتحة والسورة مطلقا) ولو سرية ولا تكره اتفاقا

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله قوله (لا تسن) مقتضى كلام المتن أن يقال لا يسمي لكنه عدل عنه لإبهامه الكراهة بخلاف نفي السنية ثم إن هذا قولهما وصححه في البدائع وقال محمد تسن إن خافت لا إن جهر بحر ونسب ابن الضياء في شرح الغزنوية الأول إلى أبي يوسف فقط فقال وهذا قول أبي يوسف وذكر في المصفي أن الفتوى على قول أبي يوسف أنه يسمي في أول كل ركعة ويخفيها وذكر في المحيط المختار قول محمد وهو أن يسمي قبل الفاتحة وقبل كل سورة في كل ركعة (رد المحتار ۱/٤۹٠)

[१५] (ولا يقرأ المؤتم بل يستمع) حال جهر الإمام (وينصت) حال إسراره لقوله تعالى وإذا قرئ القرآن فاستمعوا له وأنصتوا وقال صلى الله عليه وسلم يكفيك قراءة الإمام جهر أم خافت واتفق الإمام الأعظم وأصحابه والإمام مالك والإمام أحمد بن حنبل على صحة صلاة المأموم من غير قراءته شيئا وقد بسطته بالأصل (و) قلنا (إن قرأ) المأموم الفاتحة وغيرها (كره) ذلك (تحريما) للنهي (مراقي الفلاح مع حاشية الطحطاوي صـ ۲۲۷)

[१६] وتجب قراءة الفاتحة وضم السورة أو ما يقوم مقامها من ثلاث آيات قصار أو آية طويلة في الأوليين بعد الفاتحة كذا في النهر الفائق وفي جميع ركعات النفل والوتر هكذا في البحر الرائق (الفتاوى الهندية ۱/۷۱)

(ولا يقرأ المؤتم خلف الإمام) خلافا للشافعي رحمه الله في الفاتحة له أن القراءة ركن من الأركان فيشتركان فيه ولنا قوله عليه الصلاة والسلام من كان له إمام فقراءة الإمام له قراءة وعليه إجماع الصحابة رضي الله عنهم وهو ركن مشترك بينهما لكن حظ المقتدي الإنصات والاستماع قال عليه الصلاة والسلام وإذا قرأالإمام فأنصتوا  ويستحسن على سبيل الاحتياط فيما يروى عن محمد رحمه الله ويكره عندهما لما فيه من الوعيد (الهداية ۱/۵٦)

[१७] (ثم) كما فرغ (يكبر) مع الإنحطاط (للركوع) للتمكن

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله (قوله مع الإنحطاط) أفاد أن السنة كون إبتداء التكبير عن الخرور وانتهاءه عند استواء الظهر (رد المحتار ۱/٤۹۳)

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