हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“में तो इस का ख़ास प्रबंध रखता हुं के क़ल्ब (हृदय) फ़ुज़ूलियात (व्यर्थ) से मुक्त रहे क्युंकि फ़क़ीर को तो बरतन ख़ाली रखना चाहिए. न मालूम किस वक़्त किसी सख़ी की नज़र इनायत (कृपा) हो जाए. एसे ही क़ल्ब (हृदय) को ख़ाली रखने की ज़रूरत है. न मालूम किस वक़्त नज़रे रहमते इलाही हो जाए.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-२, पेज नं-२४४)
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