बयतुलख़ला की सुन्नतें और आदाब

(१) क़ज़ाए हाजत एसी जगह करना, जहां लोगों की नीगाहें न पडती हों, यअनी ‎लोगों की नीगाहों से छुप कर क़ज़ाए हाजत करना.‎[1]

عن جابر بن عبد الله رضي الله عنهما قال إن النبي صلى الله عليه وسلم كان إذا أراد البراز انطلق حتى لا يراه أحد (سنن أبي داود، الرقم: 2)[2]

हज़रत जाबिर (रज़ि.) से रिवायत है के नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) क़ज़ाए हाजत के ‎लिए एसी जगह तशरीफ़ ले जाते के कोई न देख सके.‎

(२) एसी जगह मिसाल के तोर पर गुज़र गाह या लोगोंकी बेठने की जगह क़ज़ाए ‎हाजत न करना. कयोंकि इस से दुसरों को तकलीफ़ पहोंचेगी.‎[3]

عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال اتقوا اللعانين قالوا وما اللعانان يا رسول الله صلى الله عليه وسلم قال الذي يتخلى فى طريق الناس أو في ظلهم (صحيح مسلم، الرقم: 269)

हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने ‎फ़रमायाःदो लअनत ‏‎के बाईष कामों से बचो.‎‏ सहाबए ‏‎किराम‎ (रज़ि.)‎ने दरयाफ़्त ‎किया, दो‎ ‎लअनत के बाईष काम कौनसे हैं ? रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने जवाब दीया, ‏रास्ते में या सायादार ‏‎ जगहों में क़ज़ाए हाजत करना‏.‏

(३) अगर हाजते बशरीय्यह (पेशाब, पाख़ाना) का इतना शदिद (ज़्य़ादा) तक़ाज़ा हो ‎के खुली जगह में जाना पडे, तो ऐसी मुनासीब जगह तलाश करना, जहां कोइ ‎न देखें और वह जगह नरम हो ताकि पेशाब के छींटे बदन पर न आए.‎[4]

عن أبي موسى رضي الله عنه قال إني كنت مع رسول الله صلى الله عليه وسلم … ثم قال إذا أراد أحدكم أن يبول فليرتد لبوله موضعا (سنن أبي داود، الرقم: 3)[5]

हज़रत अबू मूसा (रज़ि.) फ़रमाते हैं के, में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के ‎साथ था. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया, जब तुम में से कोई क़ज़ाए ‎हाजत करना चाहे, तो उस के लिए उचित जगह तलाश करें.‎

(४) बयतुलख़ला में दाख़िल होने से पेहले सर ढ़ांपनां.‎[6]

عن حبيب بن صالح رحمه الله قال كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا دخل الخلاء لبس حذاءه وغطى رأسه (السنن الكبرى للبيهقي، الرقم: 465)[7]

हज़रत हबीब बिन सालेह (रह) फ़रमाते हें के रसूलुल्लाह ‏‎(सल्लल्लाहु‏ ‏अलयहि‏ ‏व सल्लम) ‎बयतुलख़ला में दाख़िल होने के वक़्क अपना जुता पहनते और अपने सर को ढ़ांप लेते.‎

(५) बयतुलख़ला में दाख़िल होने से पेहले बिस्मिल्लाह और नीचे दी गई दुआ ‎पढ़ना.‎[8]

اَللّٰهُمَّ إِنِّيْ أَعُوْذُ بِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثْ[9]

ऐ अल्लाह ! में आप की पनाह तलब करता हुं नर और मादह ‎जिन्नात (शयातीन) से.‎

नोटः “बिस्मिल्लाह पढ़ने की वजह से इन्सान की शर्मगाह शैतान की निगाह और उस के शर से महफ़ूज़ हो जाती है.

عن علي رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال ستر ما بين أعين الجن وعورات بني آدم إذا دخل أحدهم الخلاء أن يقول بسم الله (سنن الترمذي، الرقم: 606)[10]

हज़रत अली (रज़ि.) से मरवि है के बयतुलख़ला में दाख़िल होने के वक़्त जिन्नात की ‎निगाहों और इन्सान की शर्मगाहों के दरमियान पर्दा करनेवाली चीज़ “बिस्मिल्लाह” पढ़ना है.‎

यह दुआ भी पढ़ेः

اَللّٰهُمَّ إِنِّيْ أَعُوْذُ بِكَ مِنَ الرِّجْسِ النَّجِسِ الْخَبِيْثِ الْمُخْبِثِ الشَّيْطَانِ الرَّجِيْم[11]

में अल्लाह तआला की पनाह मांगता हुं गंदगी, नापाकी, ख़बीस और ख़बाईस पर आमादह करनेवाले‎‏ ‏मलऊन‎ शयतान से.‎

(६) बयतुलख़ला में दाख़िल होने से पेहले हर उस चीज़ (मसलन अंगूठी,चैन) को ‎निकाल देना, ज़िस पर अल्लाह तबारक व तआला या रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु ‎अलयहि व सल्लम) का नाम लिखा हो या क़ुरआने करीम की कोई आयत ‎दर्ज हो.‎[12]

عن أنس رضي الله عنه قال كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا دخل الخلاء نزع خاتمه (سنن الترمذي، الرقم: 1746)[13]

हज़रते अनस (रज़ि.) फ़रमाते है के नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) जब बयतुलख़ला ‎में दाख़िल होने का इरादह फ़रमाते, तो अपनी अंगुठी निकाल देते.‎

(७) बयतुलख़ला में बायें पेर से दाख़िल होना और दायें पेर से बाहर निकलना.‎[14]

(८) ईज़ार और लुंगी वग़ैरह खङें हो कर न उतारना, बल्कि ज़मीन के क़रीब हो कर ‎उतारना (जब बेठने लगे, तब खोलना) ताकि कम से कम सतर ज़ाहिर हो.‎[15]

عن ابن عمر رضي الله عنهما قال كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا أراد الحاجة لا يرفع ثوبه حتى يدنو من الأرض (سنن أبي داود، الرقم: ۱٤)[16]

हज़रत अबदुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) फ़रमाते हें के नबी (सल्लल्लाहु अलयहि ‎वसल्लम) जब क़ज़ाए हाजत का इरादह फ़रमाते, तो अपना कपङा (इज़ार, लुंगी वग़ैरह) ‎नहीं उठाते, यहां तक के ज़मीन के क़रीब हो जाते.‎

(९) कज़ाए हाजत के दौरान चेहरा या पुश्त क़िब्ले की तरफ़ न करना.‎ [17]

عن أبي أيوب الأنصاري رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا أتى أحدكم الغائط فلا يستقبل القبلة ولا يولها ظهره (صحيح البخاري، الرقم: ۱٤٤)

हज़रत अबू अय्यूब अंसारी (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि ‎वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के जब तुम में से कोई क़ज़ाए हाजत करे, तो अपना चेहरा ‎या पुश्त क़िब्ले की तरफ़ न करे.‎

(१०) पेशाब, पाख़ाना के दौरान बात चीत न करना, मगर ये के ज़रूरत हो.‎[18]

عن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم لا يخرج اثنان إلى الغائط فيجلسان يتحدثان كاشفين عورتهما فإن الله عز وجل يمقت على ذلك (مجمع الزوائد، الرقم: ۱٠۲۱)[19]

हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि व सल्लम) ने ‎ईरशाद फ़रमाया, “दो आदमी क़ज़ाए हाजत के लिए (एसी जगह) न जाए के दोनों क़ज़ाए ‎हाजत के दौरान सतर खोलें हुए आपस में बात चीत करें, बेशक अल्लाह तआला के ‎नज़दीक ये अमल नापसंदीदाह.‎

(११) बयतुलख़ला के अंदर ज़बान से किसी क़िस्म का‏ ‏ज़िक्र न करना. अगर छींक ‎आए, तो अलह्मदुलील्लाह मत कहो और अगर कोई सलाम करे, तो जवाब ‎मत दो.‎[20]

(१२) बयतुलख़ला में न खाना और न पीना.‎[21]

(१३) क़ज़ाए हाजत की हालत में आसमान, शर्मगाह और पेशाब या पाखाना की तरफ़ न देखे.[22]

(१४) बयतुलख़ला में ज़रूरत से ज़्य़ादा वक्त न गुजारना. अगर बयतुलख़ला चंद ‎लोगों के दरमियान मुशतरक हो या वह बयतुलख़ला सब के लिए हो, तो ‎ज़रूरत से ज़्य़ादा वक़्त सर्फ करना दुसरों के लिए तकलिफ़ का कारन होगा.‎See 30

(१५) अकडुं बैठ कर क़ज़ाए हाजत करना. खडे होकर क़ज़ाए हाजत करना मकरूह ‎है.‎[23]

عن عائشة رضي الله عنها قالت من حدثكم أن النبي صلى الله عليه وسلم كان يبول قائما فلا تصدقوه ما كان يبول إلا قاعدا (سنن الترمذي، الرقم: 12)[24]

हज़रत आंईशा (रज़ि.) फ़रमाती है के, जो भी तुम से यह बयान करे के नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) खड़े होकर ‎क़ज़ाए हाजत (पेशाब वग़ैरह) करते थे. तो इस की बात पर यक़ीन मत करो. नबी ‎‎(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) बैठ कर ही क़ज़ाए हाजत (पेशाब वगैरह) फ़रमाते थे.‎

(१६) इस बात का ख़ूब ध्यान रखना के पेशाब के छींटे बदन के किसी हीस्से पर न ‎पडे. इस सीलसीले में ग़फ़लत, सख़्त अज़ाबे क़ब्र का बाइस है.‎[25]

عن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم أكثر عذاب القبر من البول (سنن ابن ماجة، الرقم: 348)[26]

हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.) ‎से मरवी ‏है‏ के रसूलुल्लाह‎ (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने ‎इरशाद फ़रमाया, क़ब्र में आम तोर पर अज़ाब पेशाब (के छींटो से न बचने की वजह) से होता है.‎

(१७) इस्तिनजा के लिए मीट्टी के ढ़ेले (या टोईलेट पेपर) और पानी का इस्तिमाल ‎करना.‎[27]

عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال نزلت هذه الآية في أهل قباء فيه رجال يحبون أن يتطهروا قال كانوا يستنجون بالماء فنزلت فيهم هذه الآية (سنن الترمذي، الرقم: 3100)[28]

हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.)‎‏ ‏से मरवी है के नबी ‏‎ (सल्लल्लाहु अलयहि वसलल्लम) ने फ़रमाया के आयते ‎करीमा‏, فيه رجال يحبون أن يتطهروا‎ क़ुबा के रेहनेवालों के लिए नाज़िल हुई है, क्योंकि वह ‎हज़रात पानी से इस्तिन्जा करते थे.‎

قال علي رضي الله عنه إن من كان قبلكم كانوا يبعرون بعرا وإنكم تثلطون ثلطا فأتبعوا الحجارة بالماء (المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: 1645)

हज़रत अली (रज़ि.) ने फ़रमाया के तुम से पेहले लोगों का पाख़ाना ख़ुश्क और सख़्त होता ‎था (मेंगनी की तरह) और तुम लोगों का पाख़ाना पतला होता है (ख़ोराक की वजह से) ‎लिहाज़ा ईस्तिन्जा में ढ़ेले के बाद पानी का ईस्तेमाल करो (ताकि अच्छी तरह पाकी और ‎सफ़ाई हासिल हो जाए)‎.

(१८) इस्तीन्जा के लिए बायें हाथ का इस्तिमाल करना. दायें हाथ से इस्तीन्जा ‎करना नाजाईज़ है.‎[29]

عن عبد الله بن أبي قتادة عن أبيه رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال إذا بال أحدكم فلا يأخذن ذكره بيمينه ولايستنجي بيمينه (صحيح البخاري، الرقم: 154)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबू क़तादाह (रज़ि.) ‎अपने वालीद के वास्ते से‎ रसूलुल्लाह ‎‎(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की बात नक़ल करते हैं के आप ने फ़रमाया, जब तुम में से कोई ‎पेशाब करे (क़ज़ाए हाजत करे) तो वह अपने गुप्तांग को अपने दायें हाथ से न पकड़े और न ‎दायें हाथ से इस्तिन्जा करे.‎

(१९) बयतुलख़ला से निकलते वक़्त दायां पांव बहार निकाले और अल्लाह तआला का शुक्रिया अदा करे के उन्होंने आप के जिस्म से बेकार चीज़ें निकाल दीं और आप को सिह्हतो तंदुरस्ती अता की. अल्लाह सुब्हानहु व तआला का शुक्रिया अदा करने का तरीक़ा यह है के बयतुल ख़ला से निकलते वक़्त निम्नलिखित दुआ पढ़ी जाएः [30]

غُفْرَانَكَ اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ أَذْهَبَ عَنِّيْ الْأَذٰى وَعَافَانِيْ[31]

“ए अल्लाह मेरी मग़फ़िरत फ़रमा. तमाम तअरीफ़ें अल्लाह तआला के लिए हैं, जिन्होंने मुझ से तकलिफ़ देनेवाली चीज़ों को दूर किया और मुझे आफ़ियत दी.”

यह दुआ भी पढ़ें:

اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ أَذْهَبَ عَنِّيْ مَا يُؤْذِيْنِيْ وَأَمْسَكَ عَلَيَّ مَا يَنْفَعُنِيْ[32]

‎“सब तअरीफ़ें अल्लाह तआला के लिए हैं, जिन्होंने मुझ से तकलीफ़ देने वाली चीज़ों को दिया और ‎मेरे अंदर नफ़अ देने वाली चीज़ बाक़ी रखी.”‎

اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ أَذَاقَنِيْ لَذَّتَهُ وَأَبْقٰى فِيَّ قُوَّتَهُ وَأَذْهَبَ عَنِّيْ أَذَاهُ[33]

तमाम तारीफ़ें अल्लाह तआला के लिए हैं, जिन्होंने मुझे इस ‎‏(खाने की) लज़्ज़त अता ‎की, मेरे जिस्म में इस की ताक़त को बाक़ी रखा और मुझ से इस की तकलीफ़ को दूर किया.‎

(२०) पेशाब के बाद इतनी देर इंतज़ार करना के पेशाब के क़तरें निकलना बंद हो ‎जाए.‎[34]

(२१) बयतुलख़ला को साफ़ सुथरा रखना, सीगरेट नोशी वग़ैरह के ज़रीए गंदगी न ‎फ़ैलाना. बयतुलख़ला को इस्तिमाल करने के बाद गंदा न छोडना, बल्कि पानी ‎से अच्छी तरह साफ़ कर देना. अगर बयतुलख़ला चंद लोगों के ज़ेरे ईस्तेमाल ‎हो, तो सफ़ाई सुथराई का और ज्यादा ख़्याल रखना ताकि दूसरों को तकलीफ़ ‎न पहोंचे.‎[35]

(२२) क़ज़ाए हाजत के बाद हाथ को अच्छी तरह मीट्टी से रगऱ कर या साबून से ‎साफ़ करना, ताकि बदबू ज़ाईल हो जाए.‎[36]

عن أبي هريرة رضي الله عنه قال كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا أتى الخلاء أتيته بماء في تور أو ركوة فاستنجى ثم مسح يده على الأرض ثم أتيته بإناء آخر فتوضأ (سنن أبي داود، الرقم: 45)[37]

हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ‎बयतुलख़ला तशरीफ़‏ ले गए तो में ने आप के लिए बरतन में पानी ड़ाला, आप ने इस से ‎इस्तिन्जा किया, फ़िर अपने हाथ को ज़मीन पर रगड़ा (उम्मत को सिखाने के लिए के किस तरह ‎हाथ को साफ करना चाहिए, ताकि बदबु दुरू हो जाए, वरना आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)  के मुबारक हाथ पर ‎कोई दुर्गंध नहीं थी) इस के बाद में ने पानी का दूसरा बर्तन पेश किया, तो आप ने उस से वुज़ू ‎फ़रमाया.‎

(२३) अगर किसी को शदिद बिमारी लगी हो या वह अस्पताल में भरती हों और ‎बयतुलख़ला जाने पर क़ादीर न हो, तो उस के लिए जाईज है के वह बोटल में ‎पेशाब करे फ़िर उस को फ़ेंक दे.‎

عن حكيمة بنت أميمة بنت رقيقة عن أمها رضي الله عنها أنها قالت كان للنبي صلى الله عليه وسلم قدح من عيدان تحت سريره يبول فيه بالليل (سنن أبي داود، الرقم: 24)[38]

हज़रत उमयमह बिन्ते रक़िक़ह (रज़ि.) फ़रमाती हैं के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि ‎वसल्लम) के पास लकड़ी का एक प्याला था, जो आप की चारपाई के नीचे रखा रेहता था. आप ‎इस में (बिमारी के दौरान) रात में पेशाब फ़रमाते थे.‎


[1] عن عبد الله بن جعفر قال أردفني رسول الله صلى الله عليه وسلم ذات يوم خلفه فأسر إلي حديثا لا أحدث به أحدا من الناس وكان أحب ما استتر به رسول الله صلى الله عليه وسلم لحاجته هدف أو حائش نخل قال ابن أسماء في حديثه يعني حائط نخل (صحيح مسلم ، الرقم: 342)

المستنجي لا يكشف عورته عند أحد للإستنجاء فإن كشفها صار فاسقا لأن كشف العورة حرام ومرتكب الحرام فاسق (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ 49)

[2] سكت الحافظ عن هذا الحديث في الفصل الثاني من هداية الرواة (1/200) فالحديث حسن عنده

عن المغيرة بن شعبة رضي الله عنه قال كنت مع النبي صلى الله عليه وسلم في سفر فأتى النبي صلى الله عليه وسلم حاجته فأبعد في المذهب قال وفي الباب عن عبد الرحمن بن أبي قراد وأبي قتادة وجابر ويحيى بن عبيد عن أبيه وأبي موسى وابن عباس وبلال بن الحارث قال أبو عيسى هذا حديث حسن صحيح (سنن الترمذي، الرقم: 20)

[3] ويكره البول والغائط في الماء جاريا كان أو راكدا ويكره على طرف نهر أو بئر أو حوض أو عين أو تحت شجرة مثمرة أو في زرع أو في ظل ينتفع بالجلوس فيه ويكره بجنب المساجد ومصلى العيد وفي المقابر وبين الدواب وفي طرق المسلمين (الفتاوى الهندية 1/50)

عن معاذ بن جبل قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم اتقوا الملاعن الثلاثة البراز في الموارد وقارعة الطريق والظل (سنن أبي داود، الرقم: 26)

[4] فإذا أراد أن يبول وكانت الأرض صلبة دقها بحجر أو حفر حفيرة حتى لا يترشرش عليه البول (الفتاوى الهندية 1/50)

[5] وقد روى الحاكم مثل هذا فى المستدرك (3/528) وقال هذا حديث صحيح الإسناد ولم يخرجاه وأقره الذهبي فى التلخيص

[6] (ويدخل الخلاء) … (برجله اليسرى) ابتداء مستور الرأس استحبابا تكرمة لليمنى لأنه مستقذر يحضره الشيطان (مراقي الفلاح صـ 51)

[7] وفي إعلاء السنن (عن حبيب بن صالح الخ) قلت فيه دلالة على ندب لبس الحذاء عند دخول المرفق أي الخلاء صونا للرجل عما عسى أن يصيبها وعلى استحباب تغطية الرأس حياء من الله تعالى لأن هذا المحل معد لكشف العورة كذا في العزيزي وشرح الحفني (1/125) قلت فالمراد تغطية الرأس بنحو رداء أو منديل لأنه هو المتعارف عند الحياء لا بنحو القلنسوة فحسب فليتأمل (إعلاء السنن 1/323)

عن ابن المبارك عن يونس عن الزهري قال أخبرني عروة عن أبيه أن أبا بكر الصديق قال وهو يخطب الناس يا معشر المسلمين استحيوا من الله فوالذي نفسي بيده إني لأظل حين أذهب إلى الخلاء في الفضاء مغطيا رأسي استحياء من ربي (المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: 1133)

قال الشيخ محمد عوامة: روى البخاري في كتاب المغازي باب قتل أبي رافع بن أبي الحقيق وفيه قول عبد الله بن عَتيك رضي الله عنه يحكي عن نفسه فأقبل حتى دنا من الباب ثم تقنع بثوبه كأنه يقضي حاجة ومعنى تقنع بثوبه ما جاء في الرواية الثانية قال فغطيت رأسي كأني أقضي حاجة وهذا يفيد أنه صنيع معلوم عندهم هو الأصل في هذه الحال (أثر الحديث الشريف صـ 188)

عن سعيد بن عبد الله بن ضرار قال رأيت أنس بن مالك أتى الخلاء ثم خرج وعليه قلنسوة بيضاء مزرورة (مصنف عبد الرزاق، الرقم: 745)

عن أشعث عن أبيه أن أبا موسى خرج من الخلاء وعليه قلنسوة (المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: 24859)

وقال السيوطي في الجامع الصغير: ابن سعد عن حبيب بن صالح مرسلا وقال شارحه المناوي في فيض القدير (5/156) ظاهر صنيعه أنه لا علة له غير الإرسال والأمر بخلافه فقد قال الذهبي أبو بكر ضعيف وقال العزيزي في شرحه السراج المنير (3/134) قال الشيخ حديث حسن لغيره

قال إمام الحرمين والغزالي والبغوي وآخرون يستحب أن لايدخل الخلاء مكشوف الرأس قال بعض أصحابنا فإن لم يجد شيئا وضع كمه على رأسه ويستحب أن لايدخل الخلاء حافيا ذكره جماعة منهم أبو العباس بن سريج في كتاب الأقسام وروى البيهقي بإسناده حديثا مرسلا أن النبي صلى الله عليه وسلم (كان إذا دخل الخلاء لبس حذاءه وغطى رأسه) وروى البيهقي أيضا عن عائشة كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا دخل الخلاء غطى رأسه وإذا أتى أهله غطى رأسه لكنه ضعيف قال البيهقي وروي في تغطية الرأس عند دخول الخلاء عن أبي بكر الصديق رضي الله عنه وهو صحيح عنه: (قلت) وقد اتفق العلماء على أن الحديث المرسل والضعيف والموقوف يتسامح به في فضائل الأعمال ويعمل بمقتضاه (المجموع شرح المهذب 2/78)

[8] قال العلامة ابن عابدين رحمه الله فإذا وصل إلى الباب يبدأ بالتسمية قبل الدعاء هو الصحيح فيقول بسم الله اللهم إني أعوذ بك من الخبث والخبائث (رد المحتار 1/345)

(و) لهذا (يستعيذ) أي يعتصم (بالله من الشيطان الرجيم قبل دخوله) وقبل كشف عورته ويقدم تسمية الله تعالى على الاستعاذة لقوله عليه الصلاة والسلام ستر ما بين أعين الجن وعورات بني آدم إذا دخل أحدكم الخلاء أن يقول بسم الله ولقوله عليه السلام إن الحشوش محتضرة فإذا أتي فليقل أعوذ بالله من الخبث والخبائث (مراقي الفلاح صـ 51)

[9] عن أنس رضي الله عنه قال كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا دخل الخلاء قال اللهم إني أعوذ بك من الخبث والخبائث تابعه ابن عرعرة عن شعبة وعن غندر عن شعبة إذا أتى الخلاء وقال موسى عن حماد إذا دخل وقال سعيد بن زيد حدثنا عبد العزيز إذا أراد أن يدخل (صحيح البخاري، الرقم: 142)

عن أنس أن النبي صلى الله عليه وسلم كان إذا دخل الكنيف قال بسم الله اللهم إني أعوذ بك من الخبث والخبائث (المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: 5)

[10] قال الترمذي: حديث غريب لا نعرفه الا من هذا الوجه وإسناده ليس بذاك القوي

قال المغلطاي (1/94) بعد نقل كلام الترمذي: ولا أدري ما الموجب لذلك لأن جميع من في إسناده غير مطعون عليه بوجه من الوجوه فيما رأيت بل لو قال فيه قائل إن إسناده صحيح لكان مصيبا وبيان ذلك أن محمد بن حميد قال فيه يحيى ليس به بأس كيس وقال جعفر بن أبي عثمان الطيالسي ثقة وسئل عنه الذهلي فقال ألا ترى أني هو ذا أحدث عنه وقيل للصنعاني تحدث عن ابن حميد فقال: وما لي لا أحدث عنه وقد حدث عنه الإمام أحمد وابن معين انتهى ونقل المناوي كلامه في فيض القدير (4/125) وأقره

قال العيني فى عمدة القاري (2/272): وكذا جاء لفظ الكنيف ولفظ المرفق فالأول في حديث علي رضي الله تعالى عنه بسند صحيح وإن كان أبو عيسى: قال إسناده ليس بالقوي ستر ما بين الجن وعورات بني آدم إذا دخل الكنيف أن يقول بسم الله

قال العزيزي في السراج المنير (2/342): إسناد صحيح

وقال الحافظ في نتائج الأفكار (1/197): قلت رواته موثقون وفي كل من محمد بن حميد وشيخه وشيخ شيخه وكذا الحكم الثاني مقال وأشدهم ضعفا محمد بن حميد لكنه لم ينفرد به فقد أخرجه البزار عن يوسف بن موسى عن عبد الرحمن بن الحكم بن بشير عن أبيه به وقال لا يعرف إلا بهذا الإسناد وقد جاء مثله عن أنس

قال الشيخ عوامة في تعليقه على المصنف لابن أبى شيبة (15/351 الرقم: 30354): أما حديث علي فرواه الترمذي (الرقم: 606) وقال حديث غريب لا نعرفه إلا من هذا الوجه وإسناده ليس بذاك القوي وابن ماجة (الرقم: 297) وشيخهما فيه محمد بن حميد الرازي وهو ضعيف… إلى أن قال (الشيخ عوامة) نعم بمجموع طرقه يقوى

[11] عن ابن عمر رضي الله عنهما أن النبي صلى الله عليه وسلم كان إذا دخل الخلاء قال اللهم إني أعوذ بك من الرجس النجس الخبيث المخبث الشيطان الرجيم وإذا خرج قال الحمد لله الذي أذاقني لذته وأبقى في قوته وأذهب عني أذاه (عمل اليوم والليلة لابن السني ، الرقم: 25)

قال الحافظ في نتائج الأفكار (1/198): قوله (وروينا عن ابن عمر) أخبرني إمام الأئمة أبو الفضل بن الحسين الحافظ رحمه الله بالسند الماضي غير مرة إلى الطبراني ثنا محمد بن عثمان بن أبي شيبة وأحمد بن بشير الطيالسي قال الأول ثنا عبد الحميد بن صالح والثاني ثنا خالد بن مرداس قالا ثنا حبان بن علي عن إسماعيل بن رافع عن دويد وهو ابن عمر ن نافع عن ابن عمر قال كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا دخل الخلاء قال اللهم إني أعوذ بك من الرجس النجس الخبيث المخبث الشيطان الرجيم

هذا حديث حسن غريب وحبان بكسر المهملة وتشديد الموحدة فيه ضعف وكذا في شيخه لكن للحديث شواهد

[12] ويكره أن يدخل في الخلاء ومعه خاتم عليه اسم الله تعالى أو شيء من القرآن كذا في السراج الوهاج (الفتاوى الهندية 1/50)

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله إذا أراد أن يدخل الخلاء ينبغي أن يقوم قبل أن يغلبه الخارج ولا يصحبه شيء عليه اسم معظم (رد المحتار 1/345)

[13] قال في إعلاء السنن: رواه الأربعة وصححه الترمذي كذا في النيل (1/72) وفي العزيزي (3/125) عزاه إلى صحيح ابن حبان ومستدرك الحاكم أيضا ثم قال قال الشيخ حديث صحيح اهـ وفي رواية للبخاري كان نقش الخاتم ثلاثة أسطر محمد سطر ورسول سطر والله سطر كما في المشكوة

قال المؤلف دلالة مجموع أحاديث الباب عليه ظاهرة وحديث أنس رضي الله عنه قد تكلم فيه لكن قال المنذري الصواب عندي تصحيحه فإن رواته ثقات أثبات كما في النيل (ومثله في التلخيص الحبير 1/108 ، الرقم: 140) (إعلاء السنن 1/303)

[14] عن حفصة زوج النبي صلى الله عليه وسلم أن النبي صلى الله عليه وسلم كان يجعل يمينه لأكله وشربه ووضوئه وثيابه وأخذه وعطائه وشماله لما سوى ذلك أخرجه أحمد بإسناد صحيح (العزيزي ۳/۱۵٤) قلت وابن حبان والحاكم أيضا وعن عائشة رضي الله عنها قالت كانت يد رسول الله صلى الله عليه وسلم اليمنى لطهوره وطعامه وكانت يده اليسرى لخلائه وما كان من أذى رواه أحمد وأبو داود والطبراني من حديث إبراهيم عن عائشة وهو منقطع ورواه أبو داود في رواية أخرى موصولا اهـ (التلخيص الحبير ۱/٤۱)

(عن حفصة الخ) قلت معناه أنه صلى الله عليه وسلم كان يجعل يمينه لما لا دناءة فيه من الأعمال وشماله لما سوى ذلك مما لا تكريم فيه قال العيني في العمدة وقال الشيخ محي الدين هذه قاعدة مستمرة في الشرع وهي أن ما كان من باب التكريم والتشريف كلبس الثوب والسراويل والخف ودخول المسجد والسواك والاكتحال وتقليم الأظفار وقص الشارب وترجيل الشعر ونتف الإبط وحلق الرأس والسلام من الصلوة وغسل أعضاء الطهارة والخروج من الخلاء والأكل والشرب والمصافحة واستلام الحجر الأسود وغير ذلك مما هو في معناه يستحب التيامن فيه وأما ما كان بضده كدخول الخلاء والخروج من المسجد والإمتخاط والإستنجاء ووضع الثوب والسراويل والخف وما أشبه ذلك فيستحب التياسر فيه اهـ فثبت استحباب البداءة باليسرى عند الدخول في الخلاء والبداءة باليمنى وقت الخروج منها فما أخرجه البخاري عن عائشة رضي الله عنها قالت كان النبي صلى الله عليه وسلم يعجبه التيمن في تنعله وترجله وطهوره في شأنه كله وفي رواية أبي الوقت (وفي شأنه كله) بالعاطف كما في العمدة للعيني (1/773) عام مخصوص بالأدلة الخارجية منها حديث حفصة هذا وعائشة أيضا عند أحمد والطبراني وأبي داود لما فيه من التصريح بأنه صلى الله عليه وسلم كان يحب التيامن في أعمال والتياسر في الأخرى والله أعلم (إعلاء السنن ۱/۳۲۳)

ثم يدخل باليسرى … ثم يخرج برجله اليمنى (رد المحتار ۱/۳٤۵)

[15] قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ولا يكشف قبل أن يدنو إلى القعود (رد المحتار ۱/۳٤۵)

ولا يكشف عورته وهو قائم (الفتاوى الهندية ۱/۵٠)

[16] وحاصل ما قال أبو داود أن ههنا روايتين رواية عن الأعمش عن رجل عن ابن عمر ورواية عبد السلام بن حرب عن الأعمش عن أنس فضعف أبو داود رواية أنس بن مالك لأن هذه الرواية مرسلة فإن الأعمش لم يلق أنس بن مالك ولا أحدا من أصحاب رسول لله صلى الله عليه وسلم ولم يحكم بضعف رواية ابن عمر لأن الأعمش لا يرويها عن ابن عمر بلا واسطة بل يرويها عن رجل عن ابن عمر فالظاهر أن الرجل المبهم عنده ثقة فلهذا لم يحكم بضعفها ولو كان الرجل المبهم عنده مجهولا أو كان غياث بن إبراهيم أحد الكذابين لحكم بضعفه أما الترمذي رحمه الله تعالى فإنه أخرج الروايتين كلتيهما عن أنس وابن عمر مرسلتين فلهذا قال في آخره وكلا الحديثين مرسل فلم تصح عنده الروايتان والله أعلم (بذل المجهود ۱/۱٠)

قال السيوطي في درجات مرقاة الصعود: قال الضياء المقدسي قد سماه (الرجل المبهم) بعضهم القاسم بن محمد ثم قال السيوطي هو بسنن البيهقي كذلك بطريق أحمد بن محمد بن أبى رجاء المصيصي عن وكيع عن الأعمش عن القاسم بن محمد عن ابن عمر رضي الله عنهما اهـ وكذلك قال الحافظ في التقريب وتهذيب التهذيب في باب المبهمات: سليمان الأعمش عن رجل عن ابن عمر في قضاء الحاجة لا يرفع ثوبه حتى يدنو من الأرض قيل هو قاسم بن محمد اهـ

جاء في السنن الكبرى للبيهقي (۱/۹٦) أحمد بن محمد بن أبي رجاء المصيصي شيخ جليل حدثنا وكيع حدثنا الأعمش عن القاسم بن محمد عن ابن عمر قال كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا أراد الحاجة تنحى ولا يرفع ثيابه حتى يدنو من الأرض

[17] (كره) تحريما (استقبال قبلة واستدبارها ل) لأجل (بول أو غائط) فلو للاستنجاء لم يكره (ولو في بنيان) لإطلاق النهي (فإن جلس مستقبلا لها) غافلا (ثم ذكره انحرف) ندبا لحديث الطبري من جلس يبول قبالة القبلة فذكرها فانحرف عنها إجلالا لها لم يقم من مجلسه حتى يغفر له (إن أمكنه وإلا فلا) بأس (الدر المختار ۱/۳٤۱)

[18] عن ابن عمر رضي الله عنهما أن رجلا مر ورسول الله صلى الله عليه وسلم يبول فسلم فلم يرد عليه (صحيح مسلم، الرقم: ۳۷٠)

(ولا يتكلم إلا لضرورة) لأنه يمقت به (مراقي الفلاح صـ ۵۲)

[19] رواه الطبراني في الأوسط ورجاله موثقون (مجمع الزوائد، الرقم: ۱٠۲۱)

[20] ولا يتكلم ولا يذكر الله تعالى ولا يشمت عاطسا ولا يرد السلام ولا يجيب المؤذن فإن عطس يحمد الله بقلبه ولا يحرك لسانه (الفتاوى الهندية ۱/۵٠)

عن جابر بن عبد الله أن رجلا مر على النبي صلى الله عليه وسلم وهو يبول فسلم عليه فقال له رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا رأيتني على مثل هذه الحالة فلا تسلم علي فإنك إن فعلت ذلك لم أرد عليك (سنن ابن ماجة، الرقم: ۳۵۲)

[21] إن هذه الحشوش محتضرة (سنن أبي داود، الرقم: 6)

 ولا يطيل القعود على البول والغائط (الفتاوى الهندية 1/50)

[22] ولا ينظر لعورته إلا لحاجة ولا ينظر إلى ما يخرج منه … ولا يرفع بصره إلى السماء (الفتاوى الهندية 1/50)

[23] ويكره أن يبول قائما أو مضطجعا أو متجردا عن ثوبه من غير عذر فإن كان بعذر فلا بأس به (الفتاوى الهندية 1/50)

[24] قال الترمذي: حديث عائشة أحسن شيئ فى هذا الباب وأصح

قال النووي: رواه أحمد بن حنبل والترمذي والنسائي وآخرون وإسناده جيد والله أعلم وقد روي في النهي عن البول قائما أحاديث لا تثبت ولكن حديث عائشة هذا ثابت (شرح النووي على الصحيح لمسلم 1/133)

[25] والتطهير إما إثبات الطهارة بالمحل أو إزالة النجاسة عنه ويفترض فيما لا يعفى منها وقد ورد أن أول شيء يسأل عنه العبد في قبره الطهارة وأن عامة عذاب القبر من عدم الاعتناء بشأنها والتحرز عن النجاسة خصوصا البول

قال العلامة الطحطاوي رحمه الله (قوله خصوصا البول) فإنه ورد فيه استنزهوا من البول فإن عامة عذاب القبر منه وورد أن عذاب القبر من أشياء ثلاثة الغيبة والنميمة وعدم الاستنزاه من البول وقوله خصوصا مفعول مطلق والبول مفعول به أي أخص البول بأن عامة عذاب القبر منه خصوصا (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ 152)

[26] قال العلامة البوصيري فى زوائد ابن ماجة (ص81): هذا إسناد صحيح رجاله عن آخرهم محتج بهم فى الصحيحين

[27] (وأركانه) أربعة شخص (مستنج و) شيء (مستنجى به) كماء وحجر (و) نجس (خارج) من أحد السبيلين وكذا لو أصابه من خارج وإن قام من موضعه على المعتمد (ومخرج) دبر أو قبل (بنحو حجر) مما هو عين طاهرة قالعة لا قيمة لها كمدر (منق) لأنه المقصود فيختار الأبلغ والأسلم عن التلويث ولا يتقيد بإقبال وإدبار شتاء وصيفا (وليس العدد) ثلاثا (بمسنون فيه) بل مستحب (والغسل) بالماء إلى أنه يقع في قلبه له طهر ما لم يكن موسوسا فيقدر بثلاث كما مر (بعده) أي الحجر (بلا كشف عورة) عند أحد أما معه فيتركه كما مر فلو كشف له صار فاسقا لا لو كشف لاغتسال أو تغوط كما بحثه ابن الشحنة (سنة) مطلقا به يفتى سراج

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله (قوله سنة مطلقا) أي في زماننا وزمان الصحابة لقوله تعالى فيه رجال يحبون أن يتطهروا والله يحب المطهرين قيل لما نزلت قال رسول الله يا أهل قباء إن الله أثنى عليكم فماذا تصنعون عند الغائط قالوا نتبع الغائط لأحجار ثم نتبع الأحجار لماء فكان الجمع سنة على الإطلاق في كل زمان وهو الصحيح وعليه الفتوى وقيل ذلك في زماننا لأنهم كانوا يبعرون اهـ إمداد ثم اعلم أن الجمع بين الماء والحجر أفضل ويليه في الفضل الاقتصار على الماء ويليه الاقتصار على الحجر وتحصل السنة بالكل وإن تفاوت الفضل كما أفاده في الإمداد وغيره (رد المحتار ۱/۳۳۸)

فتاوى محمودية ۸/۸۹، ۹۱

[28] وأما حديث أبي هريرة رضي الله عنه فأخرجه أبو داود والترمذي وابن ماجه مرفوعا قال نزلت هذه الآية في أهل قباء فيه رجال يحبون أن يتطهروا والله يحب المطهرين قال كانوا يستنجون بالماء فنزلت فيهم هذه الآية وسنده ضعيف وفي الباب أحاديث صحيحة أخرى ومن هنا ظهر أن قول من قال من الأئمة إنه لم يصح في الاستنجاء بالماء حديث ليس بصحيح (تحفة الأحوذي ۱/۹٤)

[29] قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ثم يفيض الماء باليمنى على فرجه ويعلي الإناء ويغسل فرجه باليسرى … (رد المحتار ۱/۳٤۵)

ويكره الاستنجاء بالعظم والروث والرجيع والطعام واللحم والزجاج والخزف وورق الشجر والشعر وكذا باليمين هكذا في التبيين (الفتاوي الهندية ۱/۵٠)

(وكره) تحريما (بعظم وطعام وروث) يابس كعذرة يابسة وحجر استنجي به إلا بحرف آخر (وآجر وخزف وزجاج و) شيء محترم (كخرقة ديباج ويمين) ولا عذر بيسراه (الدر المختار ۱/۳٤٠)

[30] (ويخرج من الخلاء برجله اليمنى) لأنها أحق بالتقدم لنعمة الانصراف عن الأذى ومحل الشياطين (ثم يقول) بعد الخروج (الحمد لله الذي أذهب عني الأذى) بخروج الفضلات الممرضة بحبسها (وعافاني) بإبقاء خاصية الغذاء الذي لو أمسك كله أو خرج لكان مظنة الهلاك وقال رسول الله صلى الله عليه وسلم عند خروجه غفرانك وهو كناية عن الاعتراف بالقصور عن بلوغ حق شكر نعمة الإطعام وتصريف خاصية الغذاء وتسهيل خروج الأذى لسلامة البدن من الآلام أو عدم الذكر باللسان حال التخلي (مراقي الفلاح صـ ۵۵)

[31] عن عائشة رضي الله عنها قالت كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا خرج من الخلاء قال غفرانك قال أبو عيسى هذا حديث حسن غريب (سنن الترمذي، الرقم: ۷)

قوله (هذا حديث غريب حسن) قال القاضي الشوكاني في نيل الأوطار هذا الحديث أخرجه الخمسة إلا النسائي وصححه الحاكم وأبو حاتم قال في البدر المنير ورواه الدارمي وصححه ابن خزيمة وابن حبان انتهى (تحفة الأحوذي ۱/۵٠)

عن أنس بن مالك رضي الله عنه قال كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا خرج من الخلاء قال الحمد لله الذي أذهب عني الأذى وعافاني (سنن ابن ماجة، الرقم: ۳٠۱)

قال الشيخ محمد عوامة في تعليقه (۱/۲۲۵): رواه ابن السني في عمل اليوم والليلة (۲۵) والطبراني في كتاب الدعاء له (۳۷٠) وقد قال الحافظ فيه في نتائج الأفكار (۱/۱۹۸): حسن غريب وحبان فيه ضعف وكذا فى شيخه لكن للحديث شواهد

[32] قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ثم يخرج برجله اليمنى ويقول غفرانك الحمد الله الذي أذهب عني ما يؤذيني وأمسك علي ما ينفعني (رد المحتار ۱/۳٤۵)

عن طاؤس قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا خرج أحدكم من الخلاء فليقل الحمد لله الذي أذهب عني ما يؤذيني وأمسك علي ما ينفعني (المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: ۱۲)

[33] عن ابن عمر رضي الله عنهما أن النبي صلى الله عليه وسلم كان إذا دخل الخلاء قال اللهم إني أعوذ بك من الرجس النجس الخبيث المخبث الشيطان الرجيم وإذا خرج قال الحمد لله الذي أذاقني لذته وأبقى في قوته وأذهب عني أذاه (عمل اليوم والليلة لابن السني، الرقم: ۲۵)

انظر أيضا ۲٠

[34] عن ابن عباس رضي الله عنهما قال مر رسول الله صلى الله عليه وسلم بحائط من حيطان مكة أو المدينة سمع صوت إنسانين يعذبان في قبورهما فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم يعذبان وما يعذبان في كبير ثم قال بلى كان أحدهما لا يستبرئ من بوله وكان الآخر يمشي بالنميمة ثم دعا بجريدة فكسرها كسرتين فوضع على كل قبر منهما كسرة فقيل له يا رسول الله لم فعلت هذا قال لعله أن يخفف عنهما ما لم ييبسا أو إلى أن ييبسا (سنن النسائي، الرقم: 2068)

فروع يجب الاستبراء بمشي أو تنحنح أو نوم على شقه الأيسر ويختلف بطباع الناس

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ومحله إذا أمن خروج شيء بعده فيندب ذلك مبالغة في الاستبراء أو المراد الاستبراء بخصوص هذه الأشياء من نحو المشي والتنحنح أما نفس الاستبراء حتى يطمئن قلبه بزوال الرشح فهو فرض وهو المراد بالوجوب ولذا قال الشرنبلالي يلزم الرجل الاستبراء حتى يزول أثر البول ويطمئن قلبه وقال عبرت باللزوم لكونه أقوى من الواجب لأن هذا يفوت الجواز لفوته فلا يصح له الشروع في الوضوء حتى يطمئن بزوال الرشح اهـ (رد المحتار 1/344)

[35] عن أبي مالك الأشعري رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم الطهور شطر الإيمان (صحيح مسلم، الرقم: 223)

عن صالح بن أبي حسان قال سمعت سعيد بن المسيب يقول إن الله طيب يحب الطيب نظيف يحب النظافة كريم يحب الكرم جواد يحب الجود فنظفوا أراه قال أفنيتكم ولا تشبهوا باليهود قال فذكرت ذلك لمهاجر بن مسمار فقال حدثنيه عامر بن سعد بن أبي وقاص عن أبيه عن النبي صلى الله عليه وسلم مثله إلا أنه قال نظفوا أفنيتكم قال أبو عيسى هذا حديث غريب وخالد بن إلياس يضعف (سنن الترمذي، الرقم: 2799)

لهذا الحديث شاهد ضعيف من حديث عائشة في المعجم الأوسط للطبراني والأفراد للدارقطني: نعيم بن مورع عن هشام بن عروة عن أبيه عن عائشة رضي الله عنها مرفوعا بلفظ الإسلام نظيف فتنظفوا فإنه لا يدخل الجنة إلا نظيف قال السخاوي في المقاصد الحسنة (الرقم: 302) ونعيم ضعيف

[36] صحيح البخاري، الرقم: 259

باب مسح اليد بالتراب لتكون أنقى … عن ابن عباس رضي الله عنهما عن ميمونة رضي الله عنها أن النبي صلى الله عليه وسلم اغتسل من الجنابة فغسل فرجه بيده ثم دلك بها الحائط ثم غسلها ثم توضأ وضوءه للصلاة فلما فرغ من غسله غسل رجليه (صحيح البخاري، الرقم: 260)

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ثم يدلك يده على حائط أو أرض طاهرة ثم يغسلها ثلاثا (رد المحتار 1/346)

[37] سكت الحافظ عن هذا الحديث في الفصل الثاني من هداية الرواة (1/206) فالحديث حسن عنده

[38] هذا الحديث سكت عنه أبو داود والمنذري (مختصر سنن أبي داود 1/27)

عن حكيمة بنت أميمة عن أمها قالت كان للنبي صلى الله عليه وسلم قدح من عيدان يبول فيه ويضعه تحت سريره فقام فطلبه فلم يجده فسأل فقال أين القدح قالوا شربته برة خادم أم سلمة التي قدمت معها من أرض الحبشة فقال النبي صلى الله عليه وسلم لقد احتظرت من النار بحظار رواه الطبراني ورجاله رجال الصحيح غير عبد الله بن أحمد بن حنبل وحكيمة وكلاهما ثقة (مجمع الزوائد، الرقم: 14014)

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