निकाह की सुन्नतें और आदाब – ३

अफ़ज़ल तरीन दौलत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है के एक मर्तबा हज़रत रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हज़रत उमर (रज़ि.) से फ़रमाया के क्या में तुम्हें यह न बतावुं के इन्सान के लिए इस दुनिया में सब से अफ़ज़ल दौलत क्या है ? फिर हज़रत नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के “इस दुनिया में सब से अफ़ज़ल दौलत नैक बीवी है, जब उस का ख़ाविन्द (पती) उस को देखता है, तो वह उस से ख़ुश होता है और जब उस को हुकम देता है, तो वह उस की इताअत करती है और जब वह कहीं जाता है, तो वह उस के माल की और अपनी पवित्रता तथा पाकदामनी की हिफ़ाज़त करती है.” [१]

 दुनिया की बेहतरीन दौलत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ि.) फ़रमाते हैं के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “दुनिया मालो मताअ और फ़ाईदह उठाने के योग्य चीज़ों से भरी हुई हैं और इन दुनिया के तमाम चीज़ों में से सब से बेहतरीन दौलत “नेक बीवी” है.” [२]

सुन्नत पर अमल

हज़रते आंईशा (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “निकाह मेरी सुन्नत में से है, लिहाज़ा जो व्यक्ति मेरी सुन्नत से ऐअराज़ (मना) करे, वह मुझ से नहीं है.” [३]

गुनाहों से हिफ़ाज़त

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “ए नौजवानो की जमाअत ! तुम में से जो निकाह की क्षमता रखता हो, तो उस को चाहिए के वह निकाह करे, क्युंकि बेशक निकाह निगाह नीची रखने (निगाह की हिफ़ाज़त) और शर्मगाह की हिफ़ाज़त का ज़रीआ है.” [४]

ईमान की तकमील

हज़रत अनस (रज़ि.) से रिवायत है के हज़रत रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के “जब कोई आदमी निकाह करता है, तो उस ने अपने आधे दीन की तकमील कर ली, लिहाजा उस को चाहिए के वह दीन के दूसरे आधे की तकमील के बारे में अल्लाह तआला से ड़रे (दूसरे आधे की तकमील के लिए अल्लाह तआला से ड़रे और तक़वा अपनाए).” [५]


[१] سنن أبي داود، الرقم: ۱٦٦٤، وسكت عليه المنذري في مختصر سنن أبي داود، الرقم: ۱٦٦٤

[२] صحيح مسلم، الرقم: ۳٦۳٤

[३] سنن ابن ماجه، الرقم: ۱۸٤٦، وقال البوصيري في مصباح الزجاجة ۲/۹٤: هذا إسناد ضعيف لضعف عيسى بن ميمون المديني لكن له شاهد صحيح وله شاهد في الصحيحين وغيرهما من حديث عبد الله بن مسعود ورواه البزار في مسنده من حديث أنس

[४] صحيح البخاري، الرقم: ۵٠٦٦

[५]  شعب الإيمان، الرقم: ۵۱٠٠، الحاكم في المستدرك بلفظ آخر، الرقم: ۲٦۸۱،  وقال الذهبي في التلخيص: صحيح

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