हररोज रात दिन तीन मर्तबा दुरूद-शरीफ़ पढ़ने का सवाब

عن ابي كاهل رضي الله عنه قال: قال لي رسول الله صلى الله عليه وسلم: يا ابا كاهل! من صلى علي كل يوم ثلاث مرات وكل ليلة ثلاث مرات حبا وشوقا الي كان حقا على الله أن يغفر له ذنوبه تلك الليلة وذلك اليوم (الترغيب والترهيب، الرقم: ۲۵۸٠)

हज़रत अबू-काहिल (रद़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) ने मुझ से इरशाद फ़रमाया कि ऐ अबू-काहिल! जो शख़्स मुझ पर मेरी मुहब्बत और मेरे इश्तियाक़ (शौक) में हर रोज़ तीन मर्तबा और हर रात तीन मर्तबा दुरूद भेजता है, तो अल्लाह तआला उस रात और उस रोज़ के उस के गुनाहों की मग़फ़िरत को अपने ऊपर लाज़िम कर लेते हैं (अल्लाह तआला उस शख़्स के उस दिन और उस रात के गुनाहों को ज़रूर माफ़ फ़रमाते हैं)।

तकलिफ़ की हालत में दुरूद शरीफ़ पढ़ना

अब्दुर्रहीम बिन अब्दुर्रहमान बिन अहमद ने कहा के में हम्माम में गिर गया था जिस से मेरे हाथ में चोट आगई थी और वरम भी हो गया था रात को मुझे बहुत तकलीफ़ रही में ने हुज़ूरे (अक़दस सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को सपने में देखा में ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह! हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की बरकत ने फ़रमाया के ऐ मेरे बेटे! तेरे दर्रद ने मुझे वहशत में डाल दिया. सुब्ह को वह तमाम वरम जाता रहा और हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की बरकत से वह तकलीफ़ भी रफ़अ हो गई.

दुरूद-शरीफ़ बराए हिफ़ाज़त

मूसा ज़रीर (रह़िमहुल्लाह) एक नेक सालेह बुज़ुर्ग थे. उन्होंने अपना गुज़रा हुवा क़िस्सा मुझ से नक़ल किया कि एक जहाज़ दूबने लगा और में उस में मौजूद था. उस वक़्त मुझ को ग़ुनूदगी सी हुई इस हालत में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) ने मुझ को यह दुरूद तालीम फ़रमा कर इरशाद फ़रमाया कि, “जहाज़वाले इस को हज़ार बार पढ़ें.” अभी तीनसो बार नौबत पहुंची थी कि जहाज़ ने नजात पाई. यह सब दुरूद शरीफ़ की बरकत थी जो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) ने ख्वाब में सिखाया था। वह दुरूद यह हैः

أّللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ صَلَوةً تُنْجِينَا بِهَا مِن جَمِيعِ الْأَهْوَالِ وَالْآفَاتِ وَتَقْضِي لَنَا بِهَا جَمِيعَ الحَاجَاتِ وَتُطَهِّرُنَا بِهَا مِن جَمِيعِ السَّيِئَاتِ وَتَرْفَعُنَا بِهَا أَعْلَى الدَّرَجَاتِ وَتُبَلِّغُنَا بِهَا أَقْصَى الغَايَاتِ مِن جَمِيعِ الخَيرَاتِ فِي الحَيَوةِ وَبَعدَ الممَات (اِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيئٍ قَدِيرٌ)

ऐ अल्लाह ! हमारे आक़ा और मौला मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा, जो हमारे लिए तमाम मुसीबतों और परेशानियों से हिफ़ाज़त का ज़रिया हो, जिस से हमारी ज़रूरतें पूरी हों, जिस से हम तमाम गुनहों से पाक और साफ़ हो जाऐं, जिस की बरकत से हमें बुलंद तरीन जगह नसीब हो (आख़िरत में) और जिस के ज़रिये हम ज़िंदगी और मौत के बाद की तमाम भलाईयों के बुलंद और अंतिम जगह पर पहुंच जाऐं. बेशक तु हर चिज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।

يَا رَبِّ صَلِّ وَسَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ

 Source: http://whatisislam.co.za/index.php/durood/item/576-reserving-a-special-time-for-reciting-durood  , http://ihyaauddeen.co.za/?p=5969

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