कारोबार के सामान पर ज़कात

सवाल – किस सामान पर ज़कात फ़र्ज़ है?

जवाब – अगर कोई आदमी सामान को तिजारत की निय्यत से खरीदे, तो उस सामान पर ज़कात फ़र्ज़ होगी, जब कि एक क़मरी साल (एक साल चांद के ऐतेबार से, इस्लामी साल) उस पर गुज़र जाए।

अगर कोई शख्स सामान को तिजारत की निय्यत से न खरीदे, तो उस सामान पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी.

नोटः- इस्लामी साल गुज़रने के बाद आदमी अपनी ज़कात की तारीख़ पर सारे तिजारत के सामान की क़ीमत लगा कर ढ़ाई फ़ीसद की ज़कात निकालेगा.

तिजारती सामान की क़ीमत नियुक्त करने में बाज़ारी क़ीमत का लिहाज़ होगा. बाज़ारी क़ीमत का मतलब यह है के वह सामान बाज़ार में अकषर जगहों में कितनी क़ीमत में बिकता है उस के हिसाब से वह उस की क़ीमत लगा कर ज़कात अदा करेगा.

अल्लाह तआला ज़्यादा जानने वाले हैं.

(أو نية التجارة ) في العروض إما صريحا ولا بد من مقارنتها لعقد التجارة كما سيجيء أو دلالة بأن يشتري عينا بعرض التجارة (الدر المختار۲/۲٦۷)

الزكاة واجبة في عروض التجارة كائنة ما كانت إذا بلغت قميتها نصابا من الذهب أو الورق يقومها بما هو أنفع للفقراء والمساكين منهما (مختصر القدوري صـ ۵۷)

إذا كان له عروض أو خادم للتجارة وحال عليه الحول وهو تبلغ نصابا بالدراهم ولا يبلغ نصابا بالذهب أو على القلب تجب الزكاة فيهما (الفتاوى السراجية صـ ۱۵۷)

ويكون الاستنماء فيه بنية التجارة أو الإسامة ونية التجارة والإسامة لا تعتبر ما لم تتصل بفعل التجارة أو الإسامة ثم نية التجارة قد تكون صريحا وقد تكون دلالة فالصريح أن ينوي عند عقد التجارة أن يكون المملوك للتجارة سواء كان ذلك العقد شراء أو إجارة وسواء كان ذلك الثمن من النقود أو العروض وأما الدلالة فهي أن يشتري عينا من الأعيان بعروض التجارة أو يؤاجر داره التي للتجارة بعرض من العروض فتصير للتجارة وإن لم ينو التجارة صريحا (الفتاوى الهندية ۱/۱۷٤)

दारूल इफ़्ता, मद्रसा तालीमुद्दीन

इसिपिंगो बीच, दरबन, दक्षिण अफ्रीका

Source: http://muftionline.co.za/node/36

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