जनाज़े की नमाज़ में पढ़ने की दुआ

(१२) अगर मय्यित नाबालिग़ लड़का हो, तो निम्नलिखित दुआ पढ़ी जाएः

اَللّٰهُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا شَافِعًا وَّمُشَفَّعًا

ए अल्लाह! उस बच्चे को हमारे लिए पेश रव बना(यअनी वह आख़िरत महुंच कर हमारे लिए राहत और आराम के असबाब तैय्यार कराए) और उस को हमारे लिए अज़्र और ज़ख़ीरा(संग्रह) बना और उस को हमारे लिए शाफ़िअ(सिफ़ारिशी) और मुशफ़्फ़अ बना(वह आदमी जिस की सिफ़ारिश क़बूल की जाती है).

 () अगर मय्यित नाबालिग़ की हो, तो निम्नलिखित दुआ ढ़ी जाएः[११]

اَللّٰهُمَّ اجْعَلْهَا لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا شَافِعَةً وَّمُشَفَّعَةً

ए अल्लाह! उस बच्ची को हमारे लिए पेश रव बना(यअनी वह आख़िरत महुंच कर हमारे लिए राहत और आराम के असबाब तैय्यार कराए) और उस को हमारे लिए अज़्र और ज़ख़ीरा(संग्रह) बना और उस को हमारे लिए शाफ़िअ(सिफ़ारिशी) और मुशफ़्फ़अ बना(वह आदमी जिस की सिफ़ारिश क़बूल की जाती है).

(१४) जनाज़े की नमाज़ में न तो तशह्हुद की दुआ(अत्तहिय्यात) पढ़ी जाती है और न ही क़ुर्आन मजीद की कोई आयत पढ़ी जाती है.[१२]

(१५) अगर कोई जनाज़े की दुआ न जानता हो, तो उस के लिए निम्नलिखित दुआ पढ़ना काफ़ी हैः[१३]

اَلَّلهُمَّ اغْفِر لِلمُؤْمِنِينَ وَ المؤمِنَات

ए अल्लाह! तमाम मोमिनीन और मोमिनात की मग़फ़िरत फ़रमा.

(१६) अगर कोई नौ मुस्लिम नमाज़े जनाज़ा की दुआ नहीं जानता, तो उस को चाहिए के नमाज़े जनाज़ा की चार तकबीर पढ़े, चार तकबीर फ़र्ज़ है और उस के पढ़ने से नमाज़े जनाज़ा अदा हो जाएगी.

इस लिए के नमाज़े जनाज़ा में षना, दुरूद और दुआ पढ़ना फ़र्ज नहीं है, बल्कि सुन्नत है. तथा हर एक को नमाज़े जनाज़ा की मस्नून दुआऐं सीखने की कोशिश करना चाहिए ताके सुन्नत के मुताबिक़ जनाज़े की नमाज़ अदा कर सके.[१४]

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=1844


[११] ( ولا يستغفر لمجنون أو صبي ) إذ لا ذنب لهما ( ويقول ) في الدعاء ( اللهم اجعله لنا فرطا ) الفرط بفتحتين الذي يتقدم الإنسان من ولده أي أجرا متقدما ( واجعله لنا أجرا ) أي ثوابا ( وذخرا ) بضم الذال المعجمة وسكون الخاء المعجمة الذخيرة ( واجعله لنا شافعا مشفعا ) بفتح الفاء مقبول الشفاعة (مراقي الفلاح ص۵۸۷)

[१२] ( ولا قراءة ولا تشهد فيها ) وعين الشافعي الفاتحة في الأولى وعندنا تجوز بنية الدعاء وتكره بنية القراءة لعدم ثبوتها فيها عن عليه الصلاة والسلام قال الشامي : قوله ( وعين الشافعي الفاتحة ) وبه قال أحمد لأن ابن عباس صلى على جنازة فجهر بالفاتحة وقال عمدا فعلت ليعلم أنها سنة ومذهبنا قول عمر وابنه وعلي وأبي هريرة وبه قال مالك كما في شرح المنية (رد المحتار ۲/۲۱۳)

[१३] ومن لا يحسن الدعاء يقول اللهم اغفر للمؤمنين والمؤمنات كذا في المجتبي (البحر الرائق ۲/۱۹۷)

[१४] ثم يدعو للميت وللمؤمنين والمؤمنات لأنه المقصد منها وهو لا يقتضي ركنية الدعاء كما توهمه في فتح القدير لأن نفس التكبيرات رحمة للميت وإن لم يدع له (البحر الرائق ۲/۱۹۷)

Check Also

इत्तेबाए सुन्नत का एहतेमाम – ७

शेखुल-इस्लाम हजरत मौलाना हुसैन अहमद मदनी रह़िमहुल्लाह शेखुल-इस्लाम हज़रत मौलाना हुसैन अहमद मदनी रह़िमहुल्लाह एक …