
ذكر العلامة ابن الأثير رحمه الله أن سيدنا بلالا رضي الله عنه كان أول من أذن في الإسلام. وكان يؤذّن لرسول صلى الله عليه وسلم في حياته سفرا وحضرا (أسد الغابة ١/٢٤٣)
‘अल्लामा इब्ने-असीर रह़िमहुल्लाह ने ज़िक्र किया है कि हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम में सबसे पहले मुअज़्ज़िन थे, और वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की ज़िंदगी में सफ़र और ह़ज़र दोनों हालतों में आपके लिए अज़ान दिया करते थे।
हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का मुअज़्ज़िन मुकर्रर किया जाना
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम हिजरत करके मदीना-मुनव्वरा पहुंचे, तो आपने वहां मस्जिद बनवाई। मस्जिद के बनवाने के बाद, आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम से लोगों को नमाज़ के लिए मस्जिद में बुलाने के तरीके के बारे में मशवरा किया; इसलिए कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की दिली ख्वाहिश थी कि तमाम सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम मस्जिद में एक साथ बा-जमाअत नमाज़ अदा करें। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को यह पसंद नहीं था कि सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम मस्जिद में अलग-अलग वक़्त पर, अलग जमाअतों के साथ नमाज़ अदा करें। इसी तरह, आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को यह हरगिज़ पसंद नहीं था कि लोग अपने घरों में या किसी और जगह नमाज़ अदा करें।
सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम ने लोगों को जमा करने की अलग-अलग तजवीजें (सुझाव) पेश कीं। एक तज्वीज यह थी कि आग रोशन की जाए या झंडा लहराया जाए, जिसे देखकर लोग खुद-ब-खुद समझ जाएंगे कि नमाज़ का वक़्त हो गया है और वे नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद में हाज़िर हो जाएंगे।
दूसरी तज्वीज़ यह थी कि लोगों को नमाज़ के वक़्त की सूचना देने के लिए सूर (बिगुल) फूंका जाए या नाक़ूस बजाया जाए (यानी दो लकड़ियों को एक-दूसरे पर मारा जाए)। ये सब वो तरीके थे, जो उस वक़्त के यहूदियों, नसरानियों और काफ़िरों के बीच लोगों को अपने इबादत खानों में बुलाने के लिए प्रचलित थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ये तरीके पसंद नहीं आए; क्योंकि इन तरीकों को अपनाने में कुफ़्फ़ार की मुशाबहत लाज़िम आती और नमाज़ के औक़ात में ख़लजान पैदा हो सकता था; क्योंकि कुफ़्फ़ार अपनी इबादत-गाहों की तरफ़ लोगों को बुलाने के लिए इन्हीं तरीकों को अपनाते थे; इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को यह हरगिज़ गवारा नहीं था कि मेरी उम्मत, अपने दीनी या दुनियावी उमूर में यहूदियों, नसरानियों या कुफ़्फ़ार की नक़ल करें और उनके तरीक़ों को अपनाएं।
ख़ुलासा-ए-कलाम यह है कि इस मजलिस में कोई हत्मी फ़ैसला नहीं हो सका। मजलिस बर्ख़ास्त होने से पहले हज़रत उमर रद़ियल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की ख़िदमत में यह राय पेश की कि जब तक फ़ैसला न हो जाए, किसी सहाबी को इस ख़िदमत पर मामूर कर दिया जाए कि नमाज़ के औक़ात में वह मोहल्लों में जाकर लोगों को नमाज़ के लिए बुलाए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को यह राय पसंद आई; चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने यह ज़िम्मेदारी हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द कर दी। जब नमाज़ का वक़्त होता, तो हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु मदीना-मुनव्वरा में गश्त लगाते और लोगों को इत्तिला देते कि जमाअत खड़ी होने वाली है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की फ़िक्र को देखकर सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम भी इस सिलसिले में बहुत मुतफ़क्किर हो गए। कुछ ही दिनों के बाद अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त की तरफ़ से हज़रत अब्दुल्लाह बिन-ज़ैद रद़ियल्लाहु अन्हु को रात में एक ख़्वाब नज़र आया। ख़्वाब में उन्होंने देखा कि एक फ़रिश्ता सब्ज़ लिबास में मल्बूस (पहने हुए) इंसानी शक्ल में उनके सामने नाक़ूस लिए खड़ा है। उन्होंने फ़रिश्ता से सवाल किया: अल्लाह के बंदे! क्या तुम नाक़ूस फ़रोख़्त (बेच) कर रहे हो?
फ़रिश्ता ने कहा:तुम इससे क्या करना चाहते हो? हज़रत अब्दुल्लाह बिन-ज़ैद रद़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया: मैं इसको बजाकर लोगों को नमाज़ के लिए बुलाऊंगा। तो फ़रिश्ता ने कहा: क्या मैं तुम्हें लोगों को नमाज़ के लिए बुलाने का ऐसा तरीक़ा न बताऊं, जो नाक़ूस बजाने से बेहतर है? हज़रत अब्दुल्लाह बिन-ज़ैद रद़ियल्लाहु अन्हु ने दरयाफ़्त किया: कौन सा तरीक़ा बेहतर है? फ़रिश्ता ने जवाब दिया: तुम अज़ान दिया करो। इसके बाद उस फ़रिश्ता ने उन्हें अज़ान के कलिमात सिखलाए।
जब हज़रत अब्दुल्लाह बिन-ज़ैद रद़ियल्लाहु अन्हु सुबह को बेदार हुए, तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और पूरा ख़्वाब बयान किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने ख़्वाब सुनकर फ़रमाया: “बेशक यह एक सच्चा ख़्वाब है। आप बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु के पास खड़े हो जाओ और उन्हें अज़ान के कलिमात सुनाओ, जो तुम्हें ख़्वाब में बताए गए हैं ताकि वह उन कलिमात में अज़ान दे सकें; इसलिए कि उनकी आवाज़ तुम्हारी आवाज़ से ज़्यादा बुलंद है; लिहाज़ा उनकी आवाज़ दूर तक पहुंचेगी।”
जब हज़रत उमर रद़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु की अज़ान की आवाज़ सुनी तो अपनी चादर ले कर के दोड़े और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अदब से अर्ज़ किया: ए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम! उस ज़ात की क़सम जिस ने आप को इस्लाम की तबलिग़ के लिए रसूल बना कर भेजा है, मैं ने भी इसी तरह का ख़्वाब देखा है. आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम यह सुन कर ख़ुश हुए और फ़रमायाः जब एक से ज़्यादह आदमी ने इस तरह का ख़्वाब देखा तो यह बात ज़्यादह पुख़ता हो गई कि यह अल्लाह तआला की तरफ़ से एक सच्चा ख़्वाब है।
रिवायतों से मालूम होता है कि दस से ज़्यादह सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम ने इसी तरह का ख़्वाब देखा था और ख़्वाब ही में उन को अज़ान के कलिमात सिखाए गए थे। उन सहाबा-ए-किराम रद़ियल्लाहु अन्हुम में से हज़रत अबू-बक्र और हज़रत उमर रद़ियल्लाहु अन्हुमा भी शामिल हैं।
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