फज़ाइले-सदकात – २७

हब्शी गुलाम और सखावत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जाफ़र रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा एक मर्तबा मदीना-मुनव्वरह के एक बाग़ पर गुज़रे, उस बाग में हब्शी गुलाम बाग़ का रखवाली था, वह रोटी खा रहा था और एक कुत्ता उसके सामने बैठा हुआ था। जब वह एक लुक़्मा बना कर अपने मुंह में रखता तो वैसा ही एक लुक़्मा बना कर उस कुत्ते के सामने डालता।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जाफ़र रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा इस मंज़र को देखते रहे। जब वह गुलाम खाने से फारिग हो चुका तो उसके पास तशरीफ़ ले गये, इस बात को दर्याफ़्त किया, तुम किसके गुलाम हो? उसने कहा: मैं हज़रत उस्मान रद़ियल्लाहु ‘अन्हु के वारिसों का गुलाम हूं।

उन्होंने फरमाया कि मैंने तुम्हारी एक अजीब बात देखी, उसने अर्ज़ किया: आका! तुमने क्या देखा? फ़रमाने लगे कि तुम जब एक लुक्मा खाते थे, साथ ही एक लुक़्मा इस कुत्ते को देते थे। उसने अर्ज़ किया: यह कुत्ता कई साल से मेरा साथी है, इसलिए ज़रूरी है कि मैं खाने में भी इसको अपना साथी रखूं।

उन्हों ने फरमाया कि इस कुत्ते के लिऐ तो इससे कम दर्जे की चीज़ भी बहुत काफ़ी थी। गुलाम ने अर्ज़ किया: मुझे अल्लाह जल्ल शानुहू से इसकी गैरत आती है कि मैं खाता रहूं और एक जानदार आंख मुझे देखती रहे।

हज़रत इब्ने-जाफर रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा उससे बात करके वापस तशरीफ़ लाये और हज़रत उस्मान रद़ियल्लाहु ‘अन्हु के वारिसों के पास तशरीफ़ ले गये और फरमाया कि अपनी एक गरज़ लेकर आप लोगों के पास आया हूं। उन्हों ने कहा: क्या इर्शाद है? ज़रूर फ़रमा दें।

आपने फ़रमाया कि फलां बाग मेरे हाथ फ़रोख्त कर दो। उन्हों ने अर्ज़ किया कि जनाब की खिदमत में वह हदया है, उसको बिला कीमत क़बूल फरमा लें। फरमाने लगे कि मैं बगैर कीमत लेना नहीं चाहता कीमत तै होकर मामला हो गया।

फिर हज़रत इब्ने-जाफर रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा ने फरमाया कि उस में जो गुलाम काम करता है उसको भी लेना चाहता हूं। उन्हों ने उज़र किया कि वह बचपन से हमारे ही पास पला है, उसकी जुदाई शाक है, मगर हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जाफ़र रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा के इसरार पर उन्हों ने उसको भी उनके हाथ फ़रोख्त कर दिया।

ये दोनों चीजें खरीद कर उस बाग़ में तशरीफ ले गये और उस गुलाम से फ़रमाया कि मैं ने इस बाग़ को और तुमको ख़रीद लिया है। गुलाम ने अर्ज़ किया कि अल्लाह तआला शानुहु आपको यह ख़रीदारी मुबारक फरमाये और बरकत अता फरमाये, अलबत्ता मुझे अपने आकाओं से जुदाई का रंज हुआ कि उन्हों ने बचपन से मुझे पाला था।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जाफ़र रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा ने फरमाया कि मैं तुमको आज़ाद करता हूं और यह बाग़ तुम्हारी नज़र है। उस गुलाम ने अर्ज़ किया कि फिर आप गवाह रहें कि यह बाग़ मैंने हज़रत उस्मान रद़ियल्लाहु ‘अन्हु के वारिसों को वक्फ़ कर दिया।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जाफ़र रद़ियल्लाहु ‘अन्हुमा फरमाते हैं कि मुझे उसकी इस बात पर और भी ताज्जुब हुआ और उसको बरकत की दुआयें देकर वापस आ गया।

यह तो मुसलमानों के असलाफ़ के गुलामों के कारनामे थे।

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