तजीयत की सुन्नतें और आदाब – 1

मुसीबतज़दा लोगों के साथ ताज़ियत (संवेदना व्यक्त करना)

इस्लाम एक सम्पूर्ण और व्यापक जीवन-प्रणाली है। इसमें इंसान की हर ज़रूरत का ख़याल रखा गया है। इसलिए इस्लाम ने हमें केवल यह नहीं सिखाया कि हम इंसान के साथ उसकी ज़िन्दगी में भलाई और अच्छा व्यवहार कैसे करें, बल्कि यह भी सिखाया है कि इंसान की मौत के बाद हम उसके साथ और उसके परिजनों के साथ भलाई और हमदर्दी का व्यवहार कैसे करें।

इसीलिए हज़रत रसूलुल्लाह ﷺ ने अपनी उच्च शिक्षाओं और आदर्श जीवन-चर्या के माध्यम से उम्मत को यह सिखाया कि वह मुसीबतज़दा लोगों से ताज़ियत (संवेदना) कैसे करे और उन्हें ढाँढस और तसल्ली कैसे दे।

एक हदीस में आया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “जो व्यक्ति किसी मुसीबतज़दा इंसान को तसल्ली देता है, उसे उतना ही सवाब (पुण्य) मिलता है जितना उस मुसीबतज़दा इंसान को सब्र करने पर मिलता है।”

एक और हदीस में आता है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “जो भी मोमिन (ईमान वाला) अपने मुस्लिम भाई को मुसीबत के समय ताज़ियत देता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसे इज़्ज़त का वस्त्र पहनाएँगे।”

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