हज़रत अबू-हुरैरह रद़ियल्लाहु अन्हु का भूख में मस्अला दर्याफ़्त करना
हजरत अबू-हुरैरह रद़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि तुम लोग उस वक़्त हमारी हालतें देखते कि हम में से बाजों को कई-कई वक़्त तक इतना खाना नहीं मिलता था, जिससे कमर सीधी हो सके। मैं भूख की वजह से जिगर को ज़मीन से चिपटा देता और कभी पेट के बल पड़ा रहता था और कभी पेट पर पत्थर बांध लेता था।
एक मर्तबा मैं रास्ते में बैठ गया, जहां को इन हजरात का रास्ता था। अव्वल हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ रद़ियल्लाहु अन्हु गुज़रे, मैंने उनसे कोई बात पूछना शुरू कर दी, ख्याल था कि यह बात करते हुए घर तक ले जायेंगे और फिर आदते-शरीफ़ा के मुवाफ़िक़ जो मौजूद होगा उसमें तवाज़ु (आवभगत) ही फ़रमायेंगे, मगर उन्होंने ऐसा न किया। ग़ालिबन ज़हन मुन्तक़िल नहीं हुआ या अपने घर का हाल मालूम होगा कि वहां भी कुछ नहीं।
इसके बाद हजरत उमर रद़ियल्लाहु अन्हु तश्रीफ़ लाये, उनके साथ भी यही सूरत पेश आई।
फिर नबी अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम तश्रीफ़ लाये और मुझे देख कर मुस्कराये और मेरी हालत और गर्ज़ समझ गए, इर्शाद फ़रमाया अबू-हुरैरह रद़ियल्लाहु अन्हु! मेरे साथ आओ। मैं साथ हो लिया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम घर तश्रीफ़ गए, मैं साथ अन्दर हाज़िरी की इजाज़त लेकर हाज़िर हुआ।
घर में एक प्याला दूध का रखा हुआ था जो खिदमते-अक्दस में पेश किया गया। दर्याफ्त फ़रमाया कि कहां से आया है, अर्ज़ किया कि फलाँ जगह से हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के लिए हदिये में आया है।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया, अबू-हुरैरह! जाओ, अहले सुफ़ा को बुला लाओ। ‘अहले-सुफ़्फ़ा’ इस्लाम के मेहमान शुमार होते थे। ये वह लोग थे जिनके न घर था न दर, न ठिकाना, न खाने का कोई मुस्तक़िल इन्तिज़ाम। इन हज़रात की मिक्दार कम व बेश होती रहती थी, मगर इस क़िस्से के वक़्त ७० थी।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का यह भी मामूल था कि इनमें से दो-दो, चार-चार को खाते-पीते सहाबी का कभी-कभी मेहमान भी बना देते और खुद अपना मामूल यह था कि कहीं से सदक़ा आता तो उन लोगों के पास भेज देते और खुद इस में शिर्कत न फ़रमाते और कहीं से हदिया आता तो उनके साथ हुजूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम खुद भी उसमें शिर्कत फ़रमाते।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने बुलाने का हुक्म दिया, मुझे गरां (बोझ) तो हुआ कि इस दूध की मिक्दार ही क्या है, जिस पर सब को बुला लाऊं? सब का क्या भला होगा? एक आदमी को भी मुश्किल से काफ़ी होगा और फिर बुलाने के बाद मुझ ही को पिलाने को हुक्म होगा, इसलिये नम्बर भी आखिर में आयेगा, जिसमें बचेगा भी नहीं। लेकिन हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की इताअत बगैर चारा ही क्या था? मैं गया और सबको बुला लाया।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि ले, इनको पिला। मैं एक-एक शख्स के प्याला हवाला करता और वह खूब सेर होकर पीता और प्याला मुझे वापिस देता। इसी तरह, सबको पिलाया और सब सेर हो गए तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने प्याला दस्ते-मुबारक में लेकर मुझे देखा और तबस्सुम फ़रमाया, फिर फ़रमाया कि बस, अब तो मैं और तू ही बाक़ी हैं।
मैंने अर्ज़ किया कि बेशक, फ़रमाया कि ले पी। मैंने पिया। इर्शाद फ़रमाया और पी। मैंने और पिया। बिल आाखिर मैंने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह ! अब मैं नहीं पी सकता। इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने सबका बचा हुआ खुद नोश फ़रमाया।