हज़रत अबूहुरैरह रज़ि० की भूख में हालत
हजरत अबूहरैरह रजि० एक मर्तबा कत्तान के कपड़े में नाक साफ़ करके फ़रमाने लगे:
क्या कहने अबूहुरैरह के, आज कत्तान के कपड़ में नाक साफ़ करता है, हालांकि मुझे वह जमाना भी याद है जब हुजूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मिम्बर और हुज्रे के दरमियान बेहोश पड़ा हुआ होता था, और लोग मजनून समझकर पांव से गर्दन दबाते थे, हालांकि जुनून नहीं था, बल्कि भूख थी ।
फ़ायदा: यानी भूख की वजह से कई-कई रोज का फ़ाक़ा हो जाता था। बेहोशी हो जाती थी और लोग समझते थे कि जुनून हो गया।
कहते हैं कि उस जमाने में मजनून का इलाज गर्दन को पांव से दबाने से किया जाता था। हजरत अबू-हुरैरह रजि० बड़े साबिर और क़ाने लोगों में थे। कई-कई वक़्त फ़ाक़े में गुजर जाते थे।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के बाद अल्लाह ने फ़तूहात फ़रमाई तो उनपर तवंगरी आई। इसके साथ ही बड़े आबिद थे।
उनके पास एक थैली थी जिसमें खजूर की गुठलियां भरी रहतीं, उसपर तस्बीह पढ़ा करते। जब वह सारी थैली खाली हो जाती, तो बांदी फिर भरकर उसको पास रख देती ।
उनको यह भी मालूम था कि खुद और बीवी और खादिम तीन आदमी रात के तीन हिस्से कर लेते और नम्बरवार एक शख्स तीनों में से इबादत में मशगूल रहता।
मैंने अपने वालिद साहब रह० से सुना कि मेरे दादा साहब रह० का भी तक़रीबन यही मामूल था कि रात को एक बजे तक वालिद साहब रह० मुताला में मशगूल रहते।
एक बजे दादा साहब तहज्जुद के लिए उठते, तो तक़ाज़ा फ़रमाकर वालिद साहब को सुला देते और खुद तहज्जुद में मशगूल हो जाते और सुबह से तक़रीबन पौन घण्टा क़ब्ल मेरे ताया साहब रह० को तहज्जुद के लिए जगा देते और खुद इत्तिबाए सुन्नत में आराम फ़रमाते।