अम्र बिल-मारूफ और नही अनिल-मुन्कर की जिम्मेदारी – आठवां एपिसोड

रसूले-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की चार बुनियादी जिम्मेदारियाँ

रसूले-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम इस दुनिया में लोगों के बीच दीन क़ाइम (स्थापित) करने के लिए भेजे गए और इस अहम और अज़ीम (महान) मकसद को पुरा करने के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को चार जिम्मेदारियाँ दी गईं।

इन चार जिम्मेदारियों पर दीन क़ाइम करने का और दीन की हिफाज़त का दारोमदार हैं; इसलिए, अगर उम्मते-मुस्लिमा अपनी ज़िंदगी और दूसरों की ज़िंदगी में दीन क़ाइम करना चाहती हैं तो उनके लिए ये जिम्मेदारियाँ निभाना ज़रूरी है।

कुराने-करीम में, अल्लाह तआला ने नबी इब्राहिम अलैहिस्सलाम की दुआ बयान करते हुए फ़रमाया:

رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولًا مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ ۚ (سورة البقرة، آیت: ۱۲۹)

ऐ हमारे पालनहार! भेजिए उनमें एक रसूल (मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) उन्ही में से, जो तिलावत करे (पाठ करे) उनके सामने तेरी आयतें (श्लोक), और जो सिखाए उनको किताब (कुरान) और हिक्मत (हदीस), जो तज़्किया करे (शुद्धिकरण करे, रूहानी बिमारी से पाक साफ करे) उनका।

जब हम इस आयते-करीमा पर गौर करते हैं तो पता चलता है कि इस आयते-करीमा में अल्लाह तआला ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की चार बुनियादी जिम्मेदारियाँ बयान की हैं:

(१) आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को उम्मत को कुराने-करीम पढ़ने का सही तरीका सिखाने का हुक्म दिया गया है।

(२) आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को कुराने-करीम के हुक्मों को सिखाने का हुक्म दिया गया है जो आप पर उतारे गए हैं।

(३) आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम, उम्मत को उनकी सुन्नत सिखाने का हुक्म दिया गया है, जिसको “हिक्मत” नाम दिया गया। उम्मत को सुन्नत सिखाना ज़रूरी है क्योंकि सुन्नत के नॉलेज के बिना शरीयत के तमाम हुक्मों का पालन करना मुमकिन नहीं है, भले ही ये हुक्म चाहे वह अल्लाह के अधिकारों (हक) से संबंधित हो या बंदों के अधिकारों से संबंधित हो।

(४) आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को उम्मत को ज़ाहिरी और बातिनी (आंतरिक) गंदगीयों से पाक करने और उन्हें बुलंद अख़्लाक़ और किरदार से आरास्ता (सुसज्जित) करने का हुक्म दिया गया है।

जहां तक ​​अम्र-बिल्-मारूफ (भलाई) और नही-अनिल-मुन्कर (बुराई) का फरीज़ा है, तो उपरोक्त बातों के बिना उसे निभाना मुमकिन नहीं है, इसलिए हमारे लिए इन मामलों का इल्म हासिल करना ज़रूरी है ताकि हम शरीयत पर पूरी तरह अमल कर सकें। और लोगों की अच्छे से रहनुमाई (गाइड) कर सकें.

कुराने-करीम का सही तिलावत सीखना और कुरान और हदीस का सही तरीके से पालन करना

अगर कोई शख्स कुराने-करीम को सही तलफ्फुज़ (उच्चारण) और तजवीद के साथ पढ़ना नहीं सीखता है, तो उसकी नमाज सही नहीं होगी; क्योंकि वह क़ुराने-करीम की तिलावत में ऐसी ग़लतियाँ कर सकता है, जिससे नमाज़ फ़ासिद (अमान्य) कर दी जाती हैं, और अगर वह इसी तरह से नमाज़ पढ़ता रहेगा, तो उसकी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा इस हाल में गुज़र जाएगा कि उसकी नमाज़ सही नहीं होगी और वह आख़िरत (परलोक) में सज़ा का हक़दार होगा।

यही वजह है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने अपने सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम और उम्मत को सही तजवीद के साथ कुराने-मजीद पढ़ना सीखने के लिए उभारा है।

एक हदीस-शरीफ में आया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़र्माया: “कुरान सीखो, पढ़ो और दूसरों को सीखाओ।” (तिर्मिज़ी-शरीफ़)

इसी तरह अगर कोई शख़्स किताब और सुन्नत का इल्म हासिल नहीं करता है तो वह दीन के हुक्मों पर सही तरीके से अमल नहीं कर सकता है। इसी मकसद के लिए, अल्लाह तआला ने रसूले-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को भेजा; ताकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम अपनी मुबारक सुन्नतों के माध्यम से लोगों को कुराने-मजीद समझाए और उसकी तशरीह करे।
(तशरीह =खोलकर बयान करना, स्पष्टीकरण)

इससे यह मालूम होता है कि जब तक नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की मुबारक सुन्नतों का इल्म न हो, कोई भी शख़्स कुराने-मजीद को सही तरीके से नहीं समझ सकता है।

हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की घटना

एक बार एक शख़्स हजरत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आया और एक मस्अले के बारे में पूछा।

हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक हदीस-शरीफ की रोशनी में इस मस्अले का जवाब दिया; लेकिन वह शख़्स मुत़्मइन (संतुष्ट) नहीं हुआ और बोला कि आप मुझे वह जवाब दीजिये, जो कुराने-करीम में है।

हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस शख़्स को समझाया कि दीन के कई हुक्म की तफ़्सील (विस्तार से वर्णन, विवरण) कुराने-मजीद में मज़कूर (वर्णित) नहीं है। बल्कि हदीस-शरीफ में उसका जिक्र है.

उदाहरण के लिए, कुराने-करीम हमें नमाज़ पढ़ने का आदेश देता है, लेकिन हमें कुराने-करीम में नमाज़ का विवरण (तफ़्सील) नहीं मिलता है; बल्कि हदीस-शरीफ में मिलता है. इसी तरह, कुराने-करीम में ज़कात देने का आदेश दिया गया है; लेकिन ज़कात देने का विवरण कुराने-करीम में नहीं है; बल्कि इसका विवरण मुबारक हदीसों में बयान की गई हैं।

इसलिए, अगर कोई शख़्स सिर्फ पवित्र कुरान को मज़बूती से पकड़े और हदीस-शरीफ़ को छोड़ दे, तो वह कभी भी दीन का सही और पूरी तरह से पालन करने में कामयाब नहीं होगा।
(पवित्र = पाक)

यही वजह है कि अल्लाह तआला ने रसूले-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम को भेजा; ताकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम अपनी मुबारक सुन्नतों के ज़रिए लोगों के सामने कुराने-मजीद के हुक्मों की तफ़्सील बयान करें।

जब इस शख़्स ने हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की बात सुनी तो वह बहुत खुश हुआ और फौरन उन की बात मान ली।

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