ذات مرة، قال سيدنا عمر رضي الله عنه عن سيدنا الزبير رضي الله عنه: إن الزبير عمود من عمد الإسلام (أي: حام راسخ من حماة الإسلام). (تاريخ دمشق 18/397)
हज़रत ‘उमर रद़िय अल्लाहु अन्हू ने हज़रत ज़ुबैर रद़िय अल्लाहु अन्हू के बारे में फरमाया:
ज़ुबैर इस्लाम के सुतूनों में से एक अज़ीम सुतून (पीलर,स्तंभ) हैं। (यानी वो इस्लाम के एक अज़ीमुश्शान मददगार हैं।)
इस्लाम पर (इस्तिक़ामत) दृढ़ता
अबूल-अस्वद बयान करते हैं कि हज़रत ज़ुबैर रद़िय अल्लाहु अन्हू ने आठ साल की उम्र में इस्लाम कबूल किया और अठारह साल की उम्र में हिजरत की।
उनके चाचा उन्हें भूसे की चटाई में लपेटकर लटका देते, फिर आग जलाते (उनके नीचे); ताकि धुएं से उनका दम घुट जाए. उसके बाद, उनके चाचा उन्हें इस्लाम छोड़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश करते; लेकिन वो एक ही जवाब देते: मैं कभी कुफ्र (इस्लाम से हटना) पसंद नहीं करूंगा।
हज़रत ज़ुबैर रद़िय अल्लाहु अन्हू उन सहाबा-ए-किराम रद़िय अल्लाहु अन्हुम में से एक थे, जिन्होंने कुरैश के अत्याचार और ज़ुल्म-ओ-सितम से बचने के लिए हबशा (एबिसिनिया,इथियोपिया) की और हिजरत की।
ताहम, हज़रत ज़ुबैर रद़िय अल्लाहु अन्हू अधिक समय तक हबशा में नहीं रहे; बल्कि, वह जल्द ही मक्का-मुकर्रमा वापस लौट आए और फिर मदीना-मुनव्वरा चले गए; इसलिए उन्हें इस्लाम की खातिर दोनों हिजरत का (शर्फ) सम्मान मिला।