कोहे हिरा का खुशी से झूमना

ذات مرة، صعد رسول الله صلى الله عليه وسلم جبل حراء ومعه أبو بكر وعمر وعثمان وعلي وطلحة، والزبير وسعد بن أبي وقاص رضي الله عنهم فتحرك (الجبل ورجف)، فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: اسكن حراء فما عليك إلا نبي أو صديق أو شهيد (من صحيح مسلم، الرقم: ٢٤١٧)

एक मौके पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत अबूबकर, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत तल्हा, हज़रत ज़ुबैर और हज़रत सा’द बिन अबी वक़्क़ास रदि अल्लाहु अन्हुम के साथ कोहे हिरा पर चढ़े। (इन अज़ीम हस्तीयों को अपने उपर देखकर) पहाड़ (खुशी से) हिलने लगा। रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पहाड़ को मुखातब करके फरमाया:

“ऐ ह़िरा! पुरसुकून हो जा; क्यूँकि तेरे उपर नबी, सिद्दीक़ या शहीद के इलावा कोई और नहीं है।”

इस्लाम की खातिर सबसे पहला खून

मुहम्मद बिन इस्हाक़ रहिमहुल्लाह बयान करते हैं:

इस्लाम की शुरुआत में, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सहाबा छुपकर नमाज़ पढते थे। वह मक्का मुकर्रमा की वादियों में (घाटियों में) नमाज़ पढ़ने के लिए जाते थे; ताकि काफ़िरों को उनकी नमाज़ का पता न चले। (और वो काफ़िरों के ज़ुल्म से बच जाएँ।)

एक बार हज़रत सा’द रदि अल्लाहु ‘अन्हू मक्का मुकर्रमा की एक घाटी में सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु अन्हुम की एक जमात (समूह) के साथ नमाज़ पढ़ रहे थे, तब काफिरों की एक जमात ने उन्हें देख लिया।

काफिर उनको देख कर बुरा-भला कहने लगे और उनके दीन में नुक्‍ताचीनी करने लगे; यहां तक ​​कि दोनों जमात (यानी सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु अन्हुम और काफिरों) के बीच लड़ाई छिड़ गई।

इस लड़ाई में, हज़रत सा’द रदि अल्लाहु अन्हू ने ऊंट के जबड़े की हड्डी से एक काफिर के सिर पर वार किया और उसे गंभीर रूप से ज़ख्मी कर दिया।

यह पहली लड़ाई थी, जिसमें इस्लाम की खातिर खून बहाया गया था। (यानी, इस्लाम की शुरुआत के बाद यह पहली लड़ाई थी, जिसमें सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु अन्हुम ने काफिरों को जिस्मानी चोटें पहुंचाईं।)

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