ज़िकर करने और सही दीनी तालीम हासिल करने की अहमियत

हज़रत मौलाना मुह़म्मद इल्यास साहब रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया:

मैं शुरू में इस तरह जि़कर करने की तालीम देता हूं:

हर नमाज़ के बाद “तस्बीहे़ फातिमा रदि अल्लाहु ‘अन्हा” और तीसरा कलिमा “سبحان الله والحمد لله ولا إلٰه إلا الله والله أكبر ولا حول ولا قوة إلا بالله” और सुबह शाम सो-सो मर्तबा दुरूद शरीफ़ और इस्तिग़फ़ार और कुराने पाक की तिलावत तजवीद के साथ और नंबरों में तहज्जुद की ताकीद और अल्लाह वालों के पास जाना।

‘इल्म बगैर ज़िकर के ज़ुल्मत और अंधेरा है और ज़िकर बगैर ‘इल्म के बहुत से फितनो का दरवाज़ा है। (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब (रह.), पेज नं- ४१)

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