मोहब्बत का बग़ीचा ‎

मुसलमानो की दीनी तरक़्क़ी और इस्लाह की फ़िकर – एक अज़ीम सुन्नत

हज़रत अक़दस शाह वलियुल्लाह (अल्लाह उन पर रहम करें) एक बुलंद पाया मशहूर आलिमे दीन ‎और जलीलुल क़दर मुहद्दिष थे. आप शहर “दिल्ही” में रेहते थे.

अल्लाह ‎तआला ने आप को और आप के ख़ानदान को दीन की ख़िदमत के लिए ‎मुन्तख़ब कर लिया था. आप के चार साहबज़ादे (पुत्र) थे. वह सब अपने ज़माने के ‎नामवर उलमा और मशहूर अवलिया थे.‎

उन में से एक हज़रत मौलाना शाह ‎अब्दुल क़ादिर (अल्लाह उन पर रहम करें) थे. उन्होंने “मुज़िहु़ल क़ुर्आन” के नाम से क़ुर्आने पाक ‎का तर्जुमा लिखा था, जिस को अल्लाह तआला ने हिन्दूस्तान में बेपनाह ‎मक़बूलियत अता की थी.

क़ुर्आन शरीफ़ के तमाम तराजिम के मुक़ाबले में ‎मुज़िहु़ल क़ुर्आन ( موضح القرآن )को यह विशेषता हासिल है के यह तरजुमा चालीस साल ‎के तवील अरसे में अकबर आबादी मस्जिद में ऐतेकाफ़ के दौरान लिखा ‎गया था.‎

हज़रत शाह अब्दुल कादिर (रह.) की पाक़ीज़ा जीवन, ख़ुलूस तथा ‎लिल्लाहियत, वरअ और तक़वा, जलालत की शान और इल्म तथा अमल के ‎कमाल से संबंधित बहोत से वाक़िआत मनक़ूल हैं.‎

नीचे उन का एक वाक़िया नक़ल किया जाता है, जिस से इस बात का बख़ूबी ‎अन्दाज़ा लगाया जा सकता है के उन के दिल में मुसलमानों की इस्लाह की ‎कितनी ज़्यादा फ़िकर रेहती थी और उन की इस्लाह का अन्दाज़ा कितना ‎निराला था.‎

एक मर्तबा हज़रत शाह अब्दुल क़ादिर (अल्लाह उन पर रहम करें) बयान फ़रमा रहे थे. बयान के ‎दौरान उन्होंने एक शख़्स को देखा के उस का पायजामा टख़्नों से नीचे है, ‎लेकिन हज़रत ने तुरंत उस की इस्लाह नहीं की, ताके उस को शर्मिन्दगी न ‎हो.

दूसरी तरफ़ हज़रत को उस की इस्लाह की भी फ़िकर लाहिक़ हुई.‎ चुनांचे आप ने उस की इस्लाह के लिए मुनासिब मौक़े का इन्तेज़ार किया. ‎

बयान के बाद उस से कहा के आप ज़रा ठहेर जाईए. मुझे आप से कुछ ‎बात करनी है.

जब हाज़िरीने मजलिस चले गए, तो आप ने उस शख़्स से ‎अत्यंत नरमी और करूणता से कहा के भाई ! मेरे अन्दर एक ऐब है के मेरा ‎पायजामा टख़नों से नीचे चला जाता है और हदीष शरीफ़ में उस से संबंधित ‎बड़ी सख़्त वईदें वारिद हुई हैं. फिर आप ने कुछ हदीषें बयान कीं.‎

उस के बाद आप खड़े हो गए और उस से फ़रमाया के बराए महेरबानी मेरा ‎पायजामा ग़ौर से देख कर बतावो के क्या वाक़िई टख़्नों से नीचे है अथवा ‎यह मात्र वहम है.‎

यह सुन कर उस शख़्स को तुरंत एहसास हो गया के हज़रत शाह अब्दुल ‎क़ादिर (अल्लाह उन पर रहम करें) के अन्दर इस प्रकार का कोई ऐब नहीं है, बलके यह ऐब मेरे ‎अन्दर है के मेरा पायजामा टख़नों से नीचे रेहता है.

फिर वह हज़रत के ‎क़दमों पर गिर पड़ा और कहाः आज में आप के सामने इस गुनाह से तौबा ‎करता हुं और इन्शा अल्लाह आईन्दा कभी भी इस गुनाह का इरतिकाब नहीं ‎करूंगा.‎

इस वाक़िये से यह बात अच्छी तरह स्पष्ट है के हमारे अकाबिर और ‎बुज़ुर्गाने दीन नबी ए अकरम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक ‎सुन्नतों का व्यव्हारिक नमूना थे. उन्हें जिस तरह अपनी इस्लाह और दीनी ‎तरक़्क़ी की फ़िकर दामन गीर रेहती थी, इसी तरह वह दीगर मुसलमानों की ‎हिदायत और इस्लाह के लिए फ़िकर मंद रेहते थे.‎

चुनांचे जब वह किसी शख़्स को देखते थे के वह किसी गुनाह में मुब्तला है, ‎तो वह बेचेन और परेशान हो जाते थे और उस को सीधे रास्ते पर लाने की ‎पूरी कोशिश करते थे, चुंके यही नबी ए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि ‎वसल्लम) का मुबारक तरीक़ा था.‎

अल्लाह तआला हम सब को उन के नक़्शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता ‎फ़रमाए. आमीन

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