हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“वक़्त चवलती हुई एक रेल है, घंटे, मिनट और लमहे गोया उस के ड़िब्बे हैं और हमारे मशाग़िल (कामकाज) उस में बैठने वाली सवारियां हैं.
अब हमारे दुनयवी और माद्दी (भौतिक) ज़लील मशाग़िल (कामकाज) ने हमारी ज़िन्दगी की रेल के उन ड़िब्बों पर एसा क़ब्ज़ा कर लिया है के वह शरीफ़ ऊख़रवी मशाग़िल (कामकाज) को आने नहीं देते.
हमारा काम यह है के अज़ीमत (इरादे, संकल्पना) से काम ले के उन ज़लील और घटिया मशाग़िल (कामकाज) की जगह उन शरीफ और उच्च मशाग़िल (कामकाज) को क़ाबिज़ कर दें जो ख़ुदा को राज़ी करने वाले और हमारी आख़िरत को बनाने वाले हैं.” (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास(रह.), पेज नं- ३१)
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