शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“कभी न सोचो दुनिया क्या तरक़्क़ी कर रही है, तरक़्क़ी हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के इत्तिबाअ में है, सहाबए किराम (रज़ि.) अपने नेज़ों को बादशाहों की क़ालीनों पर मारते थे के तुम्हारी चीज़ों की हमारे दिल में ज़र्रा बराबर वक़अत नहीं है और हमारा हाल उस के विरूद्ध है हमारे दिलों में दुनिया की वक़अत ही वक़अत है और कुछ नहीं, बस हम ने अपने आप को ज़लील कर रखा है, दुनिया की मोहब्बत एक दफ़ा निकल जाए फिर देखो.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं- १३८)
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