بسم الله الرحمن الرحيم
औलाद की अच्छी तरबियत के लिए नेक संगात की ज़रूरत
औलाद की अच्छी तरबियत के लिए वालिदैन पर ज़रूरी है के वह इस बात का प्रबंध करें के उन की औलाद नेक लोगों की सोहबत और अच्छे माहोल में रहे, क्युंकि नेक सोहबत और अच्छे माहोल का अषर जब उन के दिलों पर पड़ेगा, तो वह उन के मिज़ाज को इस्लामी मिज़ाज बनाने में कारगर होगा, फिर उस का परिणाम यह होगा के औलाद एक इस्लामी सोच और फ़िकर के साथ जिवन गुज़ारेगी और उन में इस्लाम की अच्छी सिफ़ात पैदा होगी और वह इस्लामी किरदार और अख़लाक़ के साथ मुत्तसिफ़ होंगे.
हदीष शरीफ़ में वारिद है के हर बच्चा सहीह फ़ितरत पर पैदा होता है, जिस की वजह से उस के अन्दर इस्लाम की हक़्क़ानियत (सच्चाई) को देखने और समझने की सलाहिय्यत (योग्यता) होती है, लेकिन बूरे माहोल में रेहने की वजह से बच्चा किसी बातिल दीन की तरफ़ माईल हो जाता है, लिहाज़ा वह बच्चा जो यहूदी, नसरानी तथा मजूसी के घर में पैदा होता है वह अपने वालिदैन के दीन को इख़्तियार कर लेता है और उस पर चलता है. (सहीह बुख़ारी)
एक हदीष में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने नेक हमनशीन (नेक साथी) की मिषाल मुश्क उठाने वाले के साथ की और बुरे हमनशीन (बुरे साथी) की मिषाल भट्टी धोंकने वाले के साथ की. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने समझाया के अगर आप मुश्क उठाने वाले की संगात में रहे, तो अगर वह तुझे मुश्क न भी दे, तो कम से कम तुझे उस की ख़ुश्बू से फ़ायदा पहोंचेगा और अगर आप आग की भट्टी घोंकने वाले की संगात में रहे, तो अगर तेरे कपड़े को आग न लगे तब भी उस की आग का धुंवा और बदबू से तुझे नुक़सान पहोंचेगा. (अब दावूद)
इस हदीष शरीफ़ से स्पष्ट है के नेक संगात फ़ायदे से ख़ाली नहीं है और बुरी संगात का नुक़सान ज़रूर होता है.
अगर हम सहाबए किराम (रज़ि.) के जिवन का अध्ययन करें, तो हमें अच्छी तरह मालूम हो जाएगा के सहाबए किराम (रज़ि.) अपनी औलाद की अच्छी तरबियत के लिए इस बात की बहोत फ़िकर करते थे के उन की औलाद अच्छे और नेक लोगों की संगात में रहे और उन से उच्च व्यव्हार सीखे.
नीचे दो वाक़िआत नक़ल किए जा रहे हैं, जिन से इस बात की पूरे तौर पर चित्रांकन होता है के वह नेक लोगों की संगात को कितनी ज़्यादा महत्तवता देते थेः
हज़रत उम्मे सुलैम (रज़ि.) के दिल में बच्चे की तरबियत की फ़िकर
अभी नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) हिजरत कर के मदीना मुनव्वरह पहोंचे ही थे के हज़रत उम्मे सुलैम (रज़ि.) अपने छोटे बच्चे हज़रत अनस (रज़ि.) को ले कर आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुईं और दरख़्वास्त की के ए अल्लाह के रसूल ! अन्सार में से हर आदमी और हर औरत ने आप की ख़िदमत में तोहफ़े के तौर पर कुछ न कुछ पेश किया है, मगर मेरे पास इस बेटे के अलावह कुछ नहीं है, आप उस को अपनी ख़िदमत के लिए क़बूल फ़रमा लें. चुनांचे आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उन को अपनी ख़िदमत के लिए क़बूल फ़रमा लिया. फिर हज़रत अनस (रज़ि.) ने दस सालों तक नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की (वफ़ात तक) ख़िदमत की और आप की बाबरकत संगात से ख़ूब लाभ उठाया.
इस वाक़िए से मालूम हुवा के हज़रत उम्मे सुलैम (रज़ि.) नेक संगात की महत्तवता और उस के फ़ायदे से अच्छी तरह वाक़िफ़ थीं और नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की संगात से बढ़ कर किसी की संगात नहीं थी, लिहाज़ा उन्होंने सोचा के उन के बेटे को नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की संगात का शरफ़ हासिल हो जाए और इस निय्यत से उन्होंने अपने बेटे को नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में पेश कर दिया.
हज़रत अब्बास (रज़ि.) और बेटे की तरबियत की फ़िकर
नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के चचा हज़रत अब्बास (रज़ि.) के दिल में रग़बत पैदा हुई के उन के बेटे हज़रत अब्दुल्लाह (रज़ि.) को नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की संगात में रेहने का शरफ़ हासिल हो, चुनांचे उन्होंने अपने बारा तथा तेरह साला बेटे हज़रत अब्दुल्लाह को हुकम दिया के वह अपनी ख़ाला हज़रत मैमूना (रज़ि.) के मकान में रात गुज़ारे, ताकि रात में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की नमाज़ (तहज्जुद की नमाज़) की कैफ़ियत का अनुकरण करे और आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की संगात से मुस्तफ़ीद हो, चुनांचे उन्होंने अपनी ख़ाला के घर रात में क़याम किया और आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की नमाज़ की कैफ़ियत का अनुकरण किया फिर उस को उम्मत तक पहोंचाया.
सामान्य तौर पर जब हम सोहबत का ज़िकर करते हैं, तो हमारे ज़हनों में नेक लोगों की सोहबत का ख़्याल आाता है, जब के सोहबत से सिर्फ़ यह मुराद नहीं है, बलके हर वह चीज़ जिस का इन्सान की सोच और उस के अख़लाक़ तथा आदात पर अषर पड़ता है. वह उस के लिए सोहबत है. चुनांचे किताबें, इन्टरनेट, वेब साईटस और सोशल मीड़िया एकाऊंटस उन सब चीज़ों का इन्सान के दिल तथा दिमाग़ और फ़िकर तथा नज़रियात पर गेहरा अषर पड़ता है, लिहाज़ा वालिदैन के ज़िम्मे लाज़िम है के वह उन चीज़ों के बारे में भी अपनी औलाद की निगरानी करें, जिस तरह उन पर लाज़िम है के वह इस बात की निगरानी करें के उन की औलाद का उठना बैठना कैसे लोगों के साथ है.
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