
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“फ़तहो नुसरत का मदार क़िल्लत(कमी) और कषरत(ज़्यादती) पर नहीं वह चीज़ ही और है. मुसलमानों को सिर्फ़ उसी एक चीज़ का ख़्याल रखना चाहिए यअनी ख़ुदा तआला की रिज़ा फिर काम में लग जाना चाहिए, अगर कामयाब हों शुकर करें नाकामयाब हों सबर करें और मोमिन तो कभी हक़िक़तन नाकामयाब होता ही नहीं, गो सुरतन नाकाम हो जावे. इस लिए अजरे आख़िरत तो हर वक़्त हासिल है जो हर मुसलमान का मक़सूद है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत ७/२३६)
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