मुसलमानों के धार्मिक पतन पर सहानुभूति और चिंता व्यक्त करते हुए

हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा निम्नलिखित हदीष बयान फ़रमाईः

مَنْ لَا يَرْحَمْ لَا يُرْحَمْ اِرْحَمُوْا مَنْ فِيْ الْأَرْضِ يَرْحَمْكُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ

जो व्यक्ति दूसरों पर रहम नही करता है उस पर रहम नहीं किया जाएगा (अल्लाह तआला उस पर रहम नहीं करेंगे), तुम ज़मीन वालों पर रहम करो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा.

“मगर अफ़सोस ! लोगों ने इस हदीष को भूक और फ़ाक़ा वालों पर रहम के साथ मख़सूस कर लिया. इस लिए उन को उस व्यक्ति पर तो रहम आता है जो भूका हो, प्यासा हो, नंगा हो, मगर मुसलमान की दीन से महरूमी पर रहम नहीं आता. गोया दुनिया के नुक़सान को नुक़सान समझा जाता है लेकिन दीन के नुक़सान को नुक़सान नहीं समझा जाता, फिर हम पर आसमान वाला क्युं रहम करे, जब हमें मुसलमानों की दीनी हालत के अबतर (ख़राब) होने पर रहम नहीं.” (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास(रह.), पेज नं-३८)

Source: https://ihyaauddeen.co.za/?p=15992


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