हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“बंदे को चाहिये के अल्लाह तआला के साथ हंमेशा हुस्ने ज़न (अच्छा गुमान) ही रखे, क्युंकि जब वह अल्लाह तआला से हुस्ने ज़न (अच्छे गुमान) से रखेगा तो उस को अल्लाह तआला से मोहब्बत पैदा हो जायेगी जो हुस्ने ज़न (अच्छे गुमान) का अषर है. पस जब उस को अल्लाह तआला से मोहब्बत पैदा हो जायेगी, तो अल्लाह तआला भी उस से मोहब्बत फ़रमायेंगे.
एक मोक़े पर हज़रत मौलाना ने इरशाद फ़रमाया के ऊपर अल्लाह तआला के हर क़िसम के एहसानात हैं और फिर भी बंदा अल्लाह तआला के साथ अपना गुमान नेक न रखे, बलके यही ख़्याल करता रहे के अल्लाह तआला मुझ से नाराज़ हैं, तो यह कितना बुरा ख़्याल है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-१०, पेज नं-३४०)
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