عن عمر بن الخطاب رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: أكثروا الصلاة علي في الليلة الزهراء واليوم الأغر فإن صلاتكم تعرض علي فأدعو لكم وأستغفر (القربة لابن بشكوال، الرقم: ۱٠۷، وسنده ضعيف كما في المقاصد الحسنة صـ 148 والقول البديع صـ 335)
हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के रोशन रात और रोशन दिन में (जुम्आ की रात और जुम्आ के दिन) मुझ पर कषरत से दुरूद भेजो, क्युंकि तुम्हारा दुरूद मेरे सामने पेश किया जाता है, तो में तुम्हारे लिए दुआ और अस्तग़फ़ार करता हुं.
इसाले षवाब के लिए दुरूद शरीफ़ पढ़ना
एक औरत हज़रत हसन बसरी (रह.) के पास आई और अर्ज़ किया के मेरी लड़की का इन्तेक़ाल हो गया. मेरी यह तमन्ना है के उस को ख़्वाब में देखुं.
हज़रत हसन बसरी (रह.) ने फ़रमाया के “इशा की नमाज़ पढ़ कर चार रकात नफ़ल नमाज़ पढ़ और हर हर रकात में अलहम्दु शरीफ़ के बाद अलहाकुमुत तकाषुर पढ़ और उस के बाद लेट जा. और सोने तक नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद पढ़ती रेह.”
उस ने एसा ही क्या. उस ने लड़की को ख़्वाब में देखा के निहायत ही सख़्त अज़ाब में है. तारकोल लिबास उस पर है, दोनों हाथ उस के जकड़े हुए हैं और उस के पांव आग की ज़नजीरों में बंधे हुए हैं. में सुबह को उठ कर फिर हज़रत हसन बसरी (रह.) के पास गई. हज़रत हसन बसरी (रह.) ने फ़रमाया के “उस की तरफ़ से सदक़ा कर शायद अल्लाह तआला उस की वजह से तेरी लड़की को माफ़ फ़रमा दे.”
अगले दिन हज़रत हसन (रह.) ने ख़्वाब में देखा के जन्नत का एक बाग़ है और उस में एक बहोत ऊंचा तख़्त है और उस पर एक बहोत निहायत हसीन जमील ख़ुबसूरत लड़की बैठी हुई है. उस के सर पर एक नूर का ताज है, वह केहने लगी हसन तुम ने मुझे भी पेहचाना. में ने कहा नहीं में ने तो नहीं पेहचाना. केहने लगी में वही लड़की हुं जिस की मां को तुम ने दुरूद शरीफ़ पढ़ने का हुक्म दिया था (यअनी इशा के बाद सोने तक) हज़रत हसन (रह.) ने फ़रमाया “तेरी मां ने तो तेरा हाल उस के बिलकुल उलटा (बर अक्स) बताया था. जो में देख रहा हुं.”
उस ने कहा के “मेरी हालत वही थी जो मां ने बयान की थी. में ने पूछा फिर यह मर्तबा कैसे हासिल हो गया. उस ने कहा के हम सत्तर (७०) हज़ार आदमी उसी अज़ाब में मुब्तला थे जो मेरी मां ने आप से बयान किया, सुलहा में से एक बुज़ुर्ग का गुज़र हमारे क़ब्रस्तान पर हुवा. उन्होंने एक दफ़ा दुरूद शरीफ़ पढ़ कर उस का षवाब हम सब को पहोंचा दिया. उन का दुरूद अल्लाह तआला के यहां एसा क़बूल हुवा के उस की बरकत से हम सब उस अज़ाब से आज़ाद कर दिए गए और उन बुज़ुर्ग की बरकत से यह रूत्बा नसीब हुवा.” (अल क़वलुल बदीअ, फ़ज़ाईले दुरूद, पेज नं-१०१)
يَا رَبِّ صَلِّ وَسَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ
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