हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“यह भी नफ़अ से ख़ाली नही के अगर इन्सान कुछ भी न करे तो कम से कम उस को अहले हक़ से दुश्मनी (दीली बुग़्ज़ और कीना) तो न हो यह दुश्मनी बहोत ही ख़तरनाक चीज़ है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-२, पेज नं-१२३)
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