بسم الله الرحمن الرحيم
अल्लाह तआला और मख़लूक़ की अमानत अदा करने की महत्तवता
अज्ञानता का युग और इस्लाम की शरूअत में उषमान बिन तलहा ख़ानऐ काअबा की चाबी के ज़िम्मेदार थे. उन का मामूल था के वह हर हफ़्ते पीर और जुमेरात के दिन ख़ानए काअबा का दरवाज़ा खोलते थे, ताकि लोग उस के अंदर दाख़िल हों और इबादत करें.
हिजरत से पेहले का वाक़िआ है के एक दिन मक्का के लोग बयतुल्लाह में दाख़िल हो रहे थे, तो नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने भी उस में दाख़िल होने का इरादा फ़रमाया, लेकिन उष्मान बिन तलहा ने आप को रोक दिया और आप को बुरा भला कहा.
आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उस की बुरी बातों और बदसुलूकी पर सबर किया फिर उस से कहा, ए उषमान ! एक दिन एसा आएगा के यह चाबी मेरे हाथ में होगी और में जिस को चाहुंगा यह चाबी दुंगा. उषमान बिन तलहा ने जवाब दिया, उस दिन क़ुरैश हलाको बरबाद हो जाऐंगे और वह दिन क़ुरैश की बड़ी ज़िल्लत का दिन होगा. नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया, नहीं, बलके उस दिन क़ुरैश बाइज़्ज़त और बामुराद होंगे. उषमान बिन तलहा केहते हैं के मेरे दिल में उन की बात बैठ गई और मुझे इस बात का यक़ीन हो गया के जो कुछ रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने कहा है वह एक न एक दिन ज़रूर हो कर रहेगा.
फिर अल्लाह तआला के हुकम से रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) और सहाबए किराम (रज़ि.) हिजरत कर के मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गए. उस के बाद चंद सालों तक मुसलमानों और क़ुरैश के दरमियान सख़्त लड़ाईयां जारी रही.
उसी दौरान एक दिन उषमान बिन तलहा के दिल में इस्लाम क़बूल करने का ख़्याल पैदा हुवा, चुनांचे उन्होंने सन ७ हिजरी में मदीना मुनव्वरा का रूख़ किय, ताकि आष (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के हाथ पर इस्लाम क़बूल करे.
अगले साल सन ८ हिजरी में जब मक्का मुकर्रमा फ़तह हुवा, तो आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उषमान बिन तल्हा को हुक्म दिया के वह जाकर ख़ानए काअबा की चाबी लेकर आ जाए, क्युंकि उन्हीं के परीवार के लोगों के पास खानए काअबा की चाबी रेहती थी.
जब उषमान बिन तल्हा (रज़ि.) चाबी लेकर हाज़िर हुए, तो रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने ख़ानए काअबा का दरवाज़ा खोला और उस के अंदर तशरीफ़ ले गए और अल्लाह तआला की इबादत की. जब आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) बाहर निकले, तो हज़रत अब्बास और हज़रत अली (रज़ि.) ने ख़्वाहिश ज़ाहिर की के उन्हें बयतुल्लाह की चाबी दी जाए.
लेकिन बयतुल्लाह के अंदर होते हुए यह आयते करीमा हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के ऊपर नाज़िल हुई ” اِنَّ اللّٰہَ یَاۡمُرُکُمۡ اَنۡ تُؤَدُّوا الۡاَمٰنٰتِ اِلٰۤی اَہۡلِہَا “ (बेशक अल्लाह तआला तुम को इस बात का हुकम देते हैं के अमानतें उन के अहल को अदा करो), जिस में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को यह हुकम दिया गया था के ख़ानए काबा की चाबी उषमान बिन तल्हा और उन के परिवार वालों के हवाले कर दी जाए.
चुनांचे रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने बुयतुल्लाह की चाबी उषमान बिन तल्हा (रज़ि.) के हवाले कर दी और उन से फ़रमाया के यह चाबी हंमेशा तुम्हारे परिवार में रहेगी. तुम से यह चाबी ज़ालिम के अलावह कोई नहीं छीनेगा.
जब उषमान बिन तल्हा (रज़ि.) चाबी ले कर वापस जाने लगे, तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उन को बुलाया और फ़रमाया के क्या में ने तुम से नहीं कहा था के एक दिन यह चाबी मेरे हाथ में होगी और में जिस को चाहुंगा दे दुंगा. उषमान बिन तल्हा (रज़ि.) फ़रमाते हैं के मुझे आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की यह बात याद आ गई, तो में ने जवाब दिया, आप ने ज़रूर फ़रमाया था. में गवाही देता हुं के आप अल्लाह के रसूल हैं.
ऊपर वाली आयत से साफ़ तौर पर मालूम हो रहा है के जो अमानत उस के पास है उस को उस के हक़दार को पहोंचाए. तथा हदीषे मुबारका में भी इस बात की ताकीद आई है के “जिस के पास लोगों की अमानतें हैं उस को चाहिए के वह तमाम अमानतें उन के अहल को पहोंचाए.”
यहां यह समझना बहोत ज़रूरी है के अमानत की अदायगी का तअल्लुक़ मात्र माल से नहीं है, बलकि उस के अंदर हर प्रकार की ज़िम्मेदारी शामिल है. इमाम, मुअज़्ज़िन, मुतवल्ली, उस्ताद, शागिर्द, मालिक, मज़दूर, बेचनेवाला, ख़रीदनेवाला, शौहर, बिवी, वालिदैन, बच्चे, पड़ोशी और साथी उन सब लोगों के ज़िम्मे कुछ अमानतें और हुक़ूक़ हैं जो अल्लाह तआला और मख़लूक़ से संबंधित हैं और उन तमाम अमानतों में सब से बड़ी अमानत “दीन” की अमानत है. जो दूसरी तमाम अमानतों को शामिल है. क़यामत के दिन हम सब से उन सब अमानतों के बारे में सवाल किया जाएगा.
अल्लाह सुब्हानहु व तआला हम सब को शरीअत के अनुसार तमाम अमानतें अदा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन या रब्बल आलमीन.
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