हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा फ़रमायाः
“असल तो यही है के रज़ाए इलाही और उख़रवी अजर ही के लिए दीनी काम किया जाए, लेकिन तरग़ीब में मोक़े के हिसाब से दुन्यवी बरकात का भी ज़िक्र करना चाहिए. बाज़ आदमी एसे होते हैं के शुरूआतमें दुन्यवी बरकात ही की उम्मीद पर काम में लगते हैं और फिर उसी काम की बरकत से अल्लाह तआला उन्हें हक़ीक़ी इख़्लास भी अता फ़रमा देता है.” (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास(रह.), पेज नं-८८)