हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“सब से ज़्यादह नफ़रत की चीज़ मेरे ज़हन में तकब्बुर है इतनी नफ़रत मुझे किसी गुनाह से नही जितनी इस से है. युं और भी बड़े बड़े गुनाह हैं जैसे ज़िना (व्याभिचार), शराब पीना वग़ैरह, लेकिन प्राकृतिक नफ़रत जितनी तकब्बुर से है किसी से नही. और इस में यह है के तकब्बुर शिर्क का विभाग है. अपने को बड़ा समझना ख़ुदा के बड़े होते हुए एक दरजे का शिर्क नहीं तो और क्या है. क्युंकि मुतकब्बिर आदमी बंदे होते हुए भी अपने लिए वह सिफ़त षाबित करता है जो ख़ुदाए तआला के साथ ख़ास है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-१०, पेज नं-५५)
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