(१) मस्जिद से अपना दिल लगाईए यअनी जब आप एक नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर मस्जिद से निकल जाए, तो दूसरी नमाज़ के लिए आने की निय्यत किजीए और उस का शिद्दत से इन्तेज़ार किजीए. [१]
عن أبي هريرة أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال ألا أدلكم على ما يمحو الله به الخطايا ويرفع به الدرجات قالوا بلى يا رسول الله قال إسباغ الوضوء على المكاره وكثرة الخطا إلى المساجد وانتظار الصلاة بعد الصلاة فذلكم الرباط (صحيح مسلم رقم ۲۵۱)
हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमायाः “क्या में तुम्हें वह आमाल न बतावुं, जिन के ज़रिए अल्लाह तआला (तुम्हारे) गुनाहों को मिटाते हैं और (तुम्हारे) दरजात बुलंद फ़रमाते हैं.” सहाबए किराम (रज़ि.) ने अर्ज़ कियाः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ! आप हमें ज़रूर बताईए. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः “मशक़्क़त तथा दुश्वारी के बावजूद मुकम्मल वुज़ू करना, मस्जिदों की तरफ़ चलना क़दमों की कषरत के साथ (यअनी मस्जिद को कषरत से चलना) और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ की प्रतिक्षा करना. यह आमाले रिबात़ हैं (इन तीन आमाल के ज़रिए से नफ़्स और शैतान के शुरूरो फ़ितन से हिफ़ाज़त होती है, जिस तरह सरहद पर पेहरा देने से दुश्मनों के हमले से फिफ़ाज़त होती है).”
(२) मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की निय्यत के साथ साथ मुसल्ली को चाहिए के अगर मस्जिद में कोई दीनी प्रोग्राम हो रहा हो, तो मस्जिद में दीन का इल्म सीखने की निय्यत से आए और अगर किसी को अल्लाह तआला ने दीन का इल्म अता फ़रमाया हो और वह लोगों को दीन का इल्म सिखाने की क्षमता रखता हो (जैसे आलिम, मुफ़्ति वग़ैरह), तो वह दीन की तालीम तथा प्रकाशन की निय्यत से आए.
عن أبي هريرة قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: من جاء مسجدي هذا لم يأته إلا لخير يتعلمه أو يعلمه فهو بمنزلة المجاهد في سبيل الله ومن جاء لغير ذلك فهو بمنزلة الرجل ينظر إلى متاع غيره (سنن ابن ماجة رقم ۲۲۷)[२]
हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) फ़रमाते हैं के में ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को यह फ़रमाते हुए सुना के “जो व्यक्ति मेरी इस मस्जिद में आए और वह मात्र अच्छी बात सीखने या सिखाने की निय्यत से आए, तो वह अल्लाह तआला के रास्ते में जिहाद करने वाले की तरह होगा और जो व्यक्ति उस के अलावा किसी और उद्देश्य से मस्जिद में आए (यअनी अल्लाह तआला की इबादत और दीनी उद्देश्य के अलावा के लिए आए), तो वह उस व्यक्ति की तरह है जो दूसरों के सामान की तरफ़ देखता है (जो बिक रहा है, लेकिन उस को कोई फ़ाईदा हासिल नहीं होता है).”
عن أبي هريرة قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم من أتى المسجد لشيء فهو حظه (سنن أبي داود، الرقم: ٤۷۲)[३]
हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) फ़रमाते हैं के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जिस निय्यत के साथ कोई मस्जिद आवे, तो उस को अपनी निय्यत के मुताबिक़ हिस्सा मिलेगा (यअनी उस की निय्यत के मुताबिक़ उस को षवाब दिया जाएगा).”
(३) मस्जिद की सफ़ाई सुथराई के प्रबंध (ऐहतेमाम) के साथ साथ, मस्जिद को ऊद वग़ैरह की ख़ुश्बु से सुगंधित रखिए.
عن عائشة، قالت: أمر رسول الله صلى الله عليه وسلم ببناء المساجد في الدور، وأن تنظف، وتطيب وقال سفيان: قوله ببناء المساجد في الدور يعني القبائل (سنن الترمذي رقم ۵۹٤)[४]
हज़रत आंयशा (रज़ि.) फ़रमाती हैं के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हुक्म दिया के “मुख़तलिफ़ (अलग-अलग) मोहल्लों में मस्जिदें निर्माण कि जाऐं और उन को साफ़ सुथरा और सुगंधित रखा जाए.”
عن ابن عمر أن عمر بن الخطاب كان يجمر المسجد في كل جمعة (المصنف لابن أبي شيبة رقم ۷۵۲۳)[५]
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) फ़रमाते हैं के “हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ि.) हर जुम्आ को मस्जिद में धुनी देते थे.”
(४) अगर किसी को मस्जिद में ऊंघ आए, तो वह अपनी जगह बदल कर दूसरी जगह जा कर बैठ जाए. दूसरी जगह जा कर बैठने से ऊंघ ज़ाईल (गायब) हो जाएगी.
عن ابن عمر قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: إذا نعس أحدكم وهو في المسجد فليتحول من مجلسه ذلك إلى غيره (سنن أبي داود رقم ۱۱۱۹)[६]
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के में ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को यह फ़रमाते हुए सुना के “जब तुम में से किसी को मस्जिद में ऊंघ आए, तो वह अपनी जगह से हट कर दूसरी जगह जा कर बैठ जाए.”
(५) मस्जिद की सजावट के लिए वक़्फ के माल का इस्तेमाल न करें. अगर किसी को मस्जिद की सजावट का शौक़ हो, तो वह उस के लिए अपना व्यक्तिगत माल इस्तेमाल करे और शरीअत के हुदूद में रेहते हुए इस्तेमाल करे.[७]
عن ابن عباس قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ما أمرت بتشييد المساجد قال ابن عباس: لتزخرفنها كما زخرفت اليهود والنصارى (سنن أبي داود رقم ٤٤۸)[८]
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया “मुझे मस्जिदों की इमारतों को बुलंद व बाला करने का हुकम नही दिया गया है (बग़ैर किसी ज़रूरत के मात्र सजाने के लिए मस्जिद की इमारत को बुलंद व बाला करना ममनुअ है).” हजरूत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) ने फ़रमाया के “(एक वक़्त एसा आयेगा के) तुम लोग ज़रूर मस्जिदों को सजावोगे (शरीअत के हुदूद से बढ़ कर), जिस तरह यहूदो नसारा ने अपनी इबादत गाहों को सजाया.”
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[१] عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: سبعة يظلهم الله تعالى في ظله يوم لا ظل إلا ظله إمام عدل وشاب نشأ في عبادة الله ورجل قلبه معلق في المساجد ورجلان تحابا في الله اجتمعا عليه وتفرقا عليه ورجل دعته امرأة ذات منصب وجمال فقال إني أخاف الله ورجل تصدق بصدقة فأخفاها حتى لا تعلم شماله ما تنفق يمينه ورجل ذكر الله خاليا ففاضت عيناه (صحيح البخاري رقم ۱٤۲۳)
[२] قال البوصيري في الزوائد (۱/۸۳): إسناده صحيح على شرط مسلم
[३] قال المنذري: في إسناده عثمان بن أبي العاتكة الدمشقي وقد ضعفه غير واحد (مختصر سنن أبي داود ۱/۱۹٤)
قال الذهبي في ميزان الإعتدال (۵/۵۳): تحت ترجمة عثمان بن أبي العاتكة قال أحمد لا بأس به
[४] قال المنذري: رواه أحمد والترمذي وقال حديث صحيح وأبو داود وابن ماجه وابن خزيمة في صحيحه ورواه الترمذي مسندا ومرسلا وقال في المرسل هذا أصح (الترغيب والترهيب، الرقم: ٤۳۲)
[५] قال المنذري: أخرجه الترمذي وقال حديث حسن صحيح وفيه إذا نعس أحدكم يوم الجمعة (مختصر سنن أبي داود ۱/۳٦۳)
[६] قال المنذري: أخرجه الترمذي وقال حديث حسن صحيح وفيه إذا نعس أحدكم يوم الجمعة (مختصر سنن أبي داود ۱/۳٦۳)
[७] عن أنس رضي الله عنه أن النبي صلى الله عليه وسلم قال لا تقوم الساعة حتى يتباهى الناس في المساجد (سنن أبي داود، الرقم: ٤٤۹)
[८] هذا الحديث سكت عنه أبو داود والمنذري (مختصر سنن أبي داود ۱/۱۸۹)