निकाह की सुन्नतें और आदाब – ५

निकाह और वलीमा की सुन्नतें और आदाब

(१) निकाह की घोषणा करना चाहिए (मिषाल के तौर पर मस्जिद में लोगों के सामने निकाह पढ़ाया जाए) [१] फ़ुक़हाए किराम ने बयान किया है के मुस्तहब यह है के निकाह जुम्आ के दिन मस्जिद में पढ़ाया जाए. [२]

(२) जहांतक हो सके निकाह सादगी के साथ किया जाए, क्युंकि सादगी ही सुन्नत की रूह है. [३]

(३) वलीमा भी सादगी के साथ किया जाए. नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का मुबारक फ़रमान है के “सब से बाबरकत वाला निकाह वह है, जिस में कम ख़र्च हो (यअनी निकाह और वलीमा सादा किया जाए और इसराफ़ और फ़ुज़ूल ख़र्ची से बचा जाए).” [४]

(४) निकाह और वलीमे में दिखावा और गौरव व्यक्त कदापी न हो.

(५) वलीमे में बहोत से लोगों को दअवत देना ज़रूरी नहीं है. अगर कोई व्यक्ति मात्र चंद लोगों को अपने घर बुलाए और वलीमे की निय्यत से उन को खाना खिला दे, तो भी वलीमे की सुन्नत अदा हो जाएगी. [५]

(६) वलीमे में ग़रीबों को भी दअवत देनी चाहीए. रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के “सब से ख़राब खाना (यअनी जो खाना बरकत से ख़ाली हो) उस वलीमे का ख़ाना है, जिस में मात्र मालदारों को दअवत दी जाए और ग़रीबों को दअवत न दी जाए. [६]

(७) अफ़ज़ल और सुन्नत से ज़्यादह क़रीब यह है के वलीमे की दअवत घर पर की जाए, वलीमे की दावत हॉल में न की जाए, क्युंकि यह देखा गया है कि हॉल में बहोत से शरीअत के ख़िलाफ़ काम होते हैं. अलबत्ता अगर किसी वजह से हॉल में वलीमा किया जाए, तो इस बात का पूरा ख़्याल रखा जाए के अल्लाह तआला के अहकाम में से किसी भी हुकम की ख़िलाफ़ वरज़ी न की जाए, जैसे नमाज़ को क़ज़ा करना, पुरुषों और महिलाओं का मिश्रण करना और परदे का ऐहतेमाम न करन, तस्वीर खिंचना और सूदी क़र्ज़ ले कर वलीमा करना और गाना बजाना और नाचना वग़ैरह वग़ैरह करना.

(८) उपहार और भेंट के आदान-प्रदान में रियाकारी (पाख़ंड) और व्यर्थ ख़र्च से बचा जाए और किसी भी हाल में मस्नून तरीक़े को न छोड़ा जाए.

(९) गैर मुस्लिमों के तरीकों और रस्मो की मुशाबहत से हर हाल में बचा जाए. [७]

(१०) बिवी को महर दिया जाए. महर की मिक़दार(मात्रा) निकाह से पेहले तय कर ली जाए. [८]

(११) लड़की वालों की तरफ़ से विदाई समारोह आयोजित करने का शरीअत में कोई षबूत नहीं है.

(१२) वलीमा नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक सुन्नत है, वलीमे की दअवत मियां-बिवी के इजतिमाअ (संमेलन) के बाद की जाती है.[९] वलीमे का समय निकाह के बाद से तीसरे दिन  तक रेहता है. [१०]

(१३) वलीमे का पूरा प्रबंध लड़के वालों की ज़िम्मेदारी है. [११] आजकल बहोत सी जगहों पर एसा होता है के लड़के और लड़की के घर वाले मिल कर वलीमे का ख़र्च बरदाश्त करते हैं. यह हुज़ूरे पाक (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नत के ख़िलाफ़ है, लिहाज़ा इस से बचना ज़रूरी है.

हज़रत अनस (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (रज़ि.) से फ़रमाया के “अल्लाह तआला तुम्हारे निकाह को बरकत का ज़रिआ बनाए. वलीमा करो, चाहे एक बकरी ही ज़बह करो (और लोगों को खिलावो).”[6]


[१] عن عائشة قالت: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: أعلنوا هذا النكاح واجعلوه في المساجد واضربوا عليه بالدفوف (سنن الترمذي، الرقم: ۱٠۹۷، وقال: هذا حديث غريب حسن في هذا الباب)

[२] ويستحب مباشرة عقد النكاح في المسجد لأنه عبادة وكونه في يوم الجمعة (فتح القدير ۲/۹۵)

[३] عن أبي أمامة قال: ذكر أصحاب رسول الله صلى الله عليه وسلم يوما عنده الدنيا فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ألا تسمعون ألا تسمعون إن البذاذة من الإيمان إن البذاذة من الإيمان. يعني التقحل (سنن أبي داود، الرقم: ٤۱٦۱، وقال المنذري في مختصر سنن أبي داود ٦/۲۳۸: في إسناده محمد بن إسحاق)

[४] شعب الإيمان، الرقم: ٦۱٤٦

عن عائشة رضي الله عنها أن النبي صلى الله عليه وسلم قال: أعظم النساء بركة أيسرهن صداقا (المستدرك على الصحيحين للحاكم، الرقم: ۲۷۳۲، وقال: هذا حديث صحيح على شرط مسلم ولم يخرجاه، وقال العلامة الذهبي – رحمه الله -: على شرط مسلم)

[५] قال (ووليمة العرس سنة) قديمة وفيها مثوبة عظيمة قال عليه الصلاة والسلام أولم ولو بشاة وهي إذا بنى الرجل بامرأته أن يدعو الجيران والأقرباء والأصدقاء ويذبح لهم ويصنع لهم طعاما (الاختيار ٤/۱۷٦)

[६] شرح مشكل الاثار، الرقم : ۳٠۱٦، ورجاله رجال الصحيح إلا محمد بن النعمان السقطي، قال عنه الحافظ ابن حجر في التقريب ۱/۲۱۳: ثقة

[७] عن ابن عمر قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: من تشبه بقوم فهو منهم (سنن ابي داود، الرقم: ٤٠۳۱، وقال البوصيري في إتحاف الخيرة المهرة ۵/۲٠۳: وسكت عليه فهو عنده حديث صالح للعمل به والاحتجاج)

[८] وَأُحِلَّ لَكُمْ مَا وَرَاءَ ذَلِكُمْ أَنْ تَبْتَغُوا بِأَمْوَالِكُمْ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ (سورة النساء: ۲٤)

وَآتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً (سورة النساء: ٤)

وَإِنْ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَمَسُّوهُنَّ وَقَدْ فَرَضْتُمْ لَهُنَّ فَرِيضَةً فَنِصْفُ مَا فَرَضْتُمْ إِلَّا أَنْ يَعْفُونَ أَوْ يَعْفُوَ الَّذِي بِيَدِهِ عُقْدَةُ النِّكَاحِ وَأَنْ تَعْفُوا أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَلَا تَنْسَوُا الْفَضْلَ بَيْنَكُمْ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (سورة البقرة: ۲۳۷)

[९] و وليمة العرس تكون بعد الدخول (حاشية الطحطاوي على الدر المختار ٤/۱۷۵)

[१०] ولا بأس بأن يدعو يومئذ ومن الغد وبعد الغد ثم ينقطع العرس والوليمة كذا في الظهيرية (الفتاوى الهندية ۵/۳٤۳)

عن أنس رضي الله عنه قال: تزوج النبي صلى الله عليه وسلم صفية وجعل عتقها صداقها وجعل الوليمة ثلاثة أيام وبسط نطعا جاءت به أم سليم وألقى عليه أقطا وتمرا وأطعم الناس ثلاثة أيام (مسند أبي يعلى الموصلي، الرقم: ۳۸۳٤، وسنده حسن كما في إعلاء السنن ۱۱/۱۲)

 [११] (ووليمة العرس سنة) قديمة وفيها مثوبة عظيمة قال عليه الصلاة والسلام: أولم ولو بشاة وهي إذا بنى الرجل بامرأته أن يدعو الجيران والأقرباء والأصدقاء ويذبح لهم ويصنع لهم طعاما (الاختيار لتعليل المختار ٤/۱۷٦)

إن الوليمة لا تكون إلا من مال الزوج (لامع الدراري على جامع البخاري ۱/۱٤۷)

[१२] سنن الترمذي، الرقم: ۱٠۹٤، وقال: حديث أنس حديث حسن صحيح

Check Also

इद्दत की सुन्नतें और आदाब – २

 शौहर की वफात के बाद बीवी की इद्दत के हुक्म (१) जब किसी औरत के …