بسم الله الرحمن الرحيم
जन्नत की रानी
हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वलस्लम) की सब से छोटी और सब से प्यारी साहबज़ादी थीं. हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) से रसूललुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुहब्बत का अनुमान इस बात से बख़ूबी लगाया लगाया जा सकता है के आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) किसी सफ़र में जाने से पेहले जिस इन्सान से सब से आख़िर में मुलाक़ात करते थे और सफ़र से वापसी पर जिस इन्सान से सब से पेहले मुलाक़ात करते थे वह हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) थीं. नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अपनी वफ़ात से पेहले हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) को ख़ुश ख़बरी दी थी के “तुम जन्नत की सारी औरतों की मलिका (रानी) बनोगी”. (बुख़ारी शरीफ़)
हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) का बुलंद मक़ाम व मर्तबा समझने के लिए बस इतना काफ़ी है के अल्लाह तआला ने उन को दुनिया की तमाम औरतों में से सब से अफ़ज़ल बनाया और आख़िरत में उन को चुन कर जन्नत की सारी औरतों की मलिका होने का आदर अता फ़रमाया है. अगर हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) के जिवन पर नज़र ड़ाल लिया जाए, तो उन की पाकीज़ह जीवन का हर पेहलु चमकता हुवा, मुबारक और तक़लीद के योग्य नज़र आएगा और उनके मुबारक जीवन में इस उम्मत की ख़वातीन के लिए बेशुमार हिदायात तथा असबाक़ हैं. हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) की मुबारक जीवन का एक मुबारक पेहलू यह है के वह अपने पूरे जीवन को इस्लाम की रोशन शीक्षाओं के अनुसार गुज़ारती थी, वह हंमेशा अल्लाह तआला और उस के रसूल (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की इताअत व फ़रमांबरदारी पर चलती थीं और तक़्वा व तहारत से लाज़िम पकड़ती थीं इसी तरह वह अपने जिवन के तमाम विभागो में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नत को जिवित करती थीं और ख़ास तौर पर वह पर्दे का बहोत एहतेमाम करती थीं के वह अपने आप को अजनबी मर्दो की निगाहों से हर समय बचाए रखे.
एक मर्तबा रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने सहाबए किराम (रज़ि.) से सवाल किया के औरतों के लिए कौनसी चीज़ सब से बेहतर है उन के दीन के लिए? सहाबए किराम (रज़ि.) में से किसी ने कोई जवाब नही दिया. जब हज़रत अली (रज़ि.) घर पहोंचे, तो उन्होंने हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का सवाल हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) के सामने पेश किया. हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) ने तुरंत जवाब दिया के औरतों के लिए सब से बेहतरीन चीज़ यह है के वह अजनबी मर्दों को न देखे और अजनबी मर्द उन को न देखे. जब हज़रत अली (रज़ि.) ने हुज़ुर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) का यह जवाब ज़िक्र किया तो आप बहोत मसरूर हुए और इरशाद फ़रमायाः “फ़ातिमा मेरे बदन का टुकड़ा है”. (मजमउज़्ज़वाईद, कनज़ुल उम्माल)
हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) “परदे” के हवाले से नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के अहकामात को बहोत ज़्यादह महत्तवता देती थीं. यही वजह है के उन्होंने अपने जीवन के आख़री क्षण तक हर मोक़े पर परदे का पूरे तौर पर ख़्याल रखा और कभी भी अपने आप को अजनबी मरदों के सामने ज़ाहिर नही किया. उन्होंने परदे का इतना ज़्यादा प्रबंध फ़रमाया के उन्होंने अपनी वफ़ात से पेहले हज़रत अस्मा बिन्त उमैस (रज़ि.) से फ़रमाया के में उस को बहोत ख़राब समझती हुं के मौत के बाद औरतों के जिस्मों पर एक कपड़ा ड़ाला जाता है, जिस से उन के जिस्मों की दिखावत उन मरदों को नज़र आती है, जो जनाज़ा उठाते हैं. हज़रत अस्मा बिन्ते उमैस (रज़ि.) ने जवाब दिया “ए रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की साहबज़ादी ! क्या में तुम्हें एक तरीक़ा न बतावुं, जो में ने हब्शा में देखा है. उस के बाद उन्होंने खजूर की कुछ टेहनियां मंगवाई और उन से फ़्रेम की शक्ल बनाकर उस पर कपड़ा ड़ाल दिया (इस तरीक़े पर अमल करने से मरहूमा का जिस्म पूरे तौर पर छुप जाता है). जब हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) ने यह देखा, तो फ़रमायाः (ए अस्मा) अल्लाह तआला तुम्हारे दोषों को आवरण फ़रमाए (छुपाए), क्युंकि तुने मेरी इस सिलसिले में मदद की और मुझे बताया के कैसे मेरा जनाज़ा मेरी वफ़ात के बाद मरदों की नज़रों से छुपाया जाए. (उस्दुल ग़ाबा)
इस वाक़िए से यह अच्छी तरह ज़ाहिर है के हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) परदे का कितना ज़्यादह प्रबंध फ़रमाती थीं. यहांतक के उन्होंने यह भी बरदाश्त नही किया के कोई मरद इन्तिक़ाल के बाद भी उन के बदन की बनावट को देखे. अल्लाह सुब्हानहु व तआला उम्मते मुहमंदिया की औरतों को हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) का संपूर्ण रूप से अनुकरण करने की तौफ़िक़ अता फ़रमाए.
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