
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“एक मौलवी साहब के सुवाल के जवाब में फ़रमाया के हदिया देना सुन्नत है जब सुन्नत है तो उस में बरकत कैसे न होगी न होने के क्या मअना लेकिन दूसरी ताआत के मिषल वह भी मुनासिब शराईत के साथ मशरूत है चुनांचे एक बड़ी शर्त आपस में बेतकल्लुफ़ी है. बेतकल्लुफ़ी ही में हदिया का लुत्फ़ भी है और उस माद्दी दहिये से भी बड़ा हदिया यह है के मुहब्बत से मिल लिए अगर यह नहीं है तो हदिये में क्या रख्खा है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-७, पेज नं-१९५)
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