निकाह की सुन्नतें और आदाब – २

निकाह का उद्देश्य

शरीअत ने निकाह को मशरूअ किया ताकि ज़वजैन (युगल) एक दूसरे के साथ पाकीज़ा जिंदगी गुज़ार सकें और ताकि दोनों अल्लाह ताला के हुक़ूक़ और हुक़ूक़े ज़वजिय्यत (वैवाहिक अधिकार) पूरा करने में एक दूसरे की सहायता कर सकें.

लिहाज़ा निकाह के वक्त ज़वजैन(युगल) को चाहिए के वह यह निय्यत करें के वह शादी कर रहे हैं अल्लाह तआला की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए और वह दोनों शरीअत के अहकाम के ऊपर अमल करेंगे और हज़रत रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नत के अनुसार ज़िंदगी गुज़ारेंगे. अगर ज़वजैन (युगल) इस तरह की ज़िंदगी गुज़ारेंगे, तो उम्मीद है के यह निकाह नेक संतान और पूरी दुनिया में इस्लाम की प्रसार तथा प्रकाशन का ज़रीआ बनेगा.

नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उन ज़वजैन (युगल) के लिए विशेष दुआ कि है, जो दीनी मामलों को निष्पादित (पूरा) करने में एक दूसरे की सहायता करें.

एह हदीष शरीफ़ में वारिद है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के “अल्लाह तआला ऐसे आदमी पर रहम फ़रमाए जो रात में उठे, नमाज़ पढे और अपनी बीवी (पत्नी) को जगाए (ताकि वह भी नमाज़ पढ़े) और अगर वह न उठे, तो वह उस के चेहरे पर (वह प्यार से) पानी छीड़के (ताकि वह जाग जाए). नीज़ अल्लाह तआला ऐसी औरत पर रहम फ़रमाए, जो रात में उठे, नमाज़ पढे और अपने ख़ाविंद(पती) को जगाए (ताकि वह भी नमाज़ पढ़े) और अगर वह न उठ़े, तो वह उस के चेहरे पर (वह प्यार से) पानी छिड़के (ताकि वह जाग जाए).”[१]

दूसरी हदीष शरीफ में आया है के एक मर्तबा सहाबए किराम (रज़ि.) ने नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से अर्ज़ किया के अगर हमें मालूम हो जावे के कोनसी दौलत अफ़ज़ल है, तो हम ज़रूर उस को हासिल करेंगे. रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वस्लम) ने जवाब दिया, “बेहतीन दौलत (१) वह ज़बान है जो अल्लाह तआला के ज़िक्र में व्यस्त हो और (२) वह दिल जो अल्लाह तआला की नेमतों का शुक्रिया अदा करे और (३) वह बीवी (पत्नी) है जो ईमान में पुख़्ता (मक्कम) है और दीनी कामों(धार्मिक कामों) में अपने ख़ाविन्द (पती) की मदद करे.”[२]


[१] سنن أبي داود، الرقم: ۱۳٠۸ ، وقال المنذري في مختصر سنن أبي داود، الرقم: ۱٤۵٠ : وأخرجه النسائي وابن ماجة وفي إسناده محمد بن عَجلان وقد وثقه الإمام أحمد ويحيى بن معين وأبو حاتم الرازي واستشهد به البخاري وأخرج له مسلم في المتابعة وتكلم فيه بعضهم

[२] سنن الترمذي، الرقم: ۳٠۹٤، وقال: هذا حديث حسن

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