हज़रत मौलाना मुहम्मद इल्यास साहब (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“दीन में ठ़ेहराव नहीं या तो आदमी दीन में तरक़्क़ी कर रहा होता है और या नीचे गिरने लगता है. उस का उदाहरण युं समझो के बाग़ को जब पानी और हवा मुवाफ़िक़ हो तो वह हरियाली और शादाबी में तरक़्क़ी ही करता रहता है और जब मौसम नामुवाफ़िक़ हो या पानी न मिले तो एसा नहीं होता के वह हरियाली और शादाबी अपनी जगह ठहरी रहे बलके उस में इन्हितात (गिरावट) शुरू हो जाता है यही हालत आदमी के दीन की होती है.” (मलफ़ूज़ाते हज़रत मौलाना मुहम्मद इल्यास(रह.), पेज नं-८०)
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