इक़ामत के कलिमात
इक़ामत के कलिमात अज़ान के कलिमात की तरह हैं. इन दोनों के कलिमात में मात्र इतना फ़र्क़ है के इक़ामत में حَيَّ عَلى الْفَلَاح (हय्य अलल फ़लाह) के बाद قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة (क़द क़ामतिस सलाह क़द क़ातिस सलाह)(नमाज़ खड़ी हो गई, नमाज़ खड़ी हो गई) कहा जाएगा.
इक़ामत के शब्द इस प्रकार है:
اَللهُ أَكْبَرْ اَللهُ أَكْبَرْ
अल्लाह तआला सब से बड़े हैं, अल्लाह तआला सब से बड़े हैं
اَللهُ أَكْبَرْ اَللهُ أَكْبَرْ
अल्लाह तआला सब से बड़े हैं, अल्लाह तआला सब से बड़े हैं
أَشْهَدُ أَلَّا إِلٰهَ إِلَّا اللهْ أَشْهَدُ أَلَّا إِلٰهَ إِلَّا اللهْ
में गवाही देता हुं के अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद(इबादत के लाईक़) नहीं है, में गवाही देता हुं के अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद(इबादत के लाईक़) नहीं है
أَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا رَّسُوْلُ اللهْ أَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا رَّسُوْلُ اللهْ
में गवाही देता हुं के मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के रसूल है, में गवाही देता हुं के मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के रसूल है
حَيَّ عَلٰى الصَّلَاةْ حَيَّ عَلٰى الصَّلَاةْ
नमाज़ के लिए आवो, नमाज़ के लिए आवो
حَيَّ عَلٰى الْفَلَاحْ حَيَّ عَلٰى الْفَلَاحْ
कामयाबी की तरफ़ आवो, कामयाबी की तरफ़ आवो
قَدْ قَامَتِ الصَّلَاةْ قَدْ قَامَتِ الصَّلَاةْ
नमाज़ खड़ी हो गई, नमाज़ खड़ी हो गई
اَللهُ أَكْبَرْ اَللهُ أَكْبَرْ
अल्लाह तआला सब से बड़े हैं, अल्लाह तआला सब से बड़े हैं
لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهْ
अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद(इबादत के लाईक़) नहीं है
नोटः- ’’حَيَّ عَلَى الصَّلاَهْ‘‘और ’’قَدْ قَامَتِ الصَّلاَهْ‘‘ में शब्द ’’الصَّلَاةْ‘‘की ’’ة‘‘(ता) को साकिन पढ़ा जाएगा और उस का उच्चार’’ه‘‘ के साथ किया जाएगा यअनी दोनों वाक्यो में ’’الصَّلاَهْ‘‘ कहा जाएगा. ’’الصَّلَاة‘‘(ता के साथ) नहीं कहा जाएगा. इसी तरह इक़ामत में ’’حَيَّ علَى الصَّلاَةِ حَيَّ عَلَى الْفَلَاحْ‘‘ और ’’قَدْ قَامَتِ الصَّلاَةُ قَدْ قَامَتِ الصَّلاَهْ‘‘ नहीं कहना चाहिए, बलके ’’حَيَّ عَلَى الصَّلاَهْ، حَيَّ علَى الْفَلَاحْ‘‘ और ’’قَدْ قَامَتِ الصَّلاَهْ ، قَدْ قَامَتِ الصَّلاَهْ‘‘ कहना चाहिए.[1]
Source: https://ihyaauddeen.co.za/?p=7599
[१] ويسكن كلماتهما على الوقف لكن في الأذان حقيقة وفي الإقامة ينوي الوقف كذا في التبيين (الفتاوى الهندية ۱/ ۵٦)
(سن الأذان) فليس بواجب على الأصح لعدم تعليمه الأعرابي (و) كذا (الإقامة سنة مؤكدة) … ويجزم الراء في التكبير ويسكن كلمات الأذان والإقامة في الأذان حقيقة وينوي الوقف في الإقامة لقوله صلى الله عليه و سلم الأذان جزم والإقامة جزم والتكبير جزم أي لافتتاح الصلاة قال الطحطاوي قوله (ويسكن كلمات الأذان) يعني للوقف والأولى ذكره قوله (في الأذان حقيقة) أي الوقف الذي لأجله السكون حقيقة في الأذان لأجل الترسل فيه قوله (وينوي الوقف في الإقامة) لأنه لم يقف حقيقة لأن المطلوب فيها الحدر أفاده في الشرح قوله (لقوله صلى الله عليه وسلم) علة لقوله ويسكن الخ ويأتي بالشهادتين كل واحدة مرتين يفصل بينهما بسكتة وهكذا الخ (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۱۹۵)