अगर किसी मय्यित को ग़ुसल और जनाज़े की नमाज़ के बग़ैर दफ़न कर दिया गया हो, तो उस की जनाज़े की नमाज़ उस की क़बर पर पढ़ी जाएगी, इस शर्त के साथ के उस की लाश न फटी हो (गली सड़ी न हो).
अगर किसी मय्यित की जनाज़े की नमाज़ पढ़ी गई, लेकिन तदफ़ीन के बाद मालूम हुवा के उस की जनाज़े की नमाज़ से पेहले उस को ग़ुसल नहीं दिया गया था, तो उस की जनाज़े की नमाज़ उस की क़बर पर दोबारा पढ़ी जाएगी, इस शर्त के साथ के लाश फटी न हो (गली सड़ी न हो). [१]
नोटः- मय्यित के जिस्म के गलने सड़ने में अकषर फ़ुक़हाए किराम ने इसी क़ौल (निवेदन) को राजेह (श्रेष्ठ) क़रार दिया है के उस में कोई मुद्दत मुतअय्यन(नियुक्त) नहीं है, बलके यह हर क्षेत्र के मौसम और ज़मीन के एतेबार से विभिन्न होगी. [१]
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[१] (وإن دفن) وأهيل عليه التراب (بغير صلاة) أو بها بلا غسل أو ممن لا ولاية له (صلي على قبره) استحسانا (ما لم يغلب على الظن تفسخه) من غير تقدير هو الأصح وظاهره أنه لو شك في تفسخه صلي عليه
قال العلامة ابن عابدين – رحمه الله -: (قوله وأهيل عليه التراب) فإن لم يهل أخرج وصلي عليه كما قدمناه بحر قوله (أو بها بلا غسل) هذا رواية ابن سماعة والصحيح أنه لا يصلى على قبره في هذه الحالة لأنها بلا غسل غير مشروعة كذا في غاية البيان لكن في السراج وغيره قيل لا يصلى على قبره وقال الكرخي يصلى وهو الاستحسان لأن الأولى لم يعتد بها لترك الشرط مع الإمكان والآن زال الإمكان فسقطت فرضية الغسل وهذا يقتضي ترجيح الإطلاق وهو الأولى نهر تنبيه ينبغي أن يكون في حكم من دفن بلا صلاة من تردى في نحو بئر أو وقع عليه بنيان ولم يمكن إخراجه بخلاف ما لو غرق في بحر لعدم تحقق وجوده أمام المصلي تأمل قوله (هو الأصح) لأنه يختلف باختلاف الأوقات حرا وبردا والميت سمنا وهزالا والأمكنة بحر وقيل يقدر بثلاثة أيام وقيل عشرة وقيل شهر ط عن الحموي (رد المحتار ٢/٢٢٤)