सवाल – एक आदमी हज की इस्तिता’अत (ताकत) रखता है, लेकिन वो हज के लिए नहीं जा रहा है, क्योंकि उस को कोई ऐसा मुनासिब आदमी नहीं मिल रहा है, जो उस की गैर मौजुदगी में उस की तिजारत (व्यापार) संभाल सके. इस बारे में शरीअत क्या केहती है?
जवाब – तिजारत (व्यापार) की देख भाल के लिए किसी मुनासिब आदमी का न मीलना, हज को टालने के लिए क़ाबिले कबूल मजबूरी नहीं है. लिहाज़ा उस के लिए इस ‘अज़ीम इबादत में टाल मटोल से काम लेना जाइज़ नहीं है.
नोट: अहादीसे मुबारका में उस आदमी के लिए सखत वइदें वारिद हैं, जो इस ‘अज़ीम फर्ज को अदा किए बगैर इस दुनिया से रूखसत हो (चला) जाए.
अल्लाह तआला ज्यादह जानने वाले हैं.
(فرض)… (مرة)… (على الفور) في العام الأول عند الثاني وأصح الروايتين عن الإمام ومالك وأحمد فيفسق وترد شهادته بتأخيره أي سنينا لأن تأخيره صغيرة وبارتكابه مرة لا يفسق إلا بالأضرار بحر ووجهه أن الفورية ظنية لأن دليل الاحتياط ظني ولذا أجمعوا أنه لو تراخى كان أداء وإن أثم بموته قبله وقالوا لو لم يحج حتى أتلف ماله وسعه أن يستقرض ويحج ولو غير قادر على وفائه ويرجى أن لا يؤاخذه الله بذلك أي لو ناويا وفاء إذا قدر كما قيده في الظهيرية ( على مسلم )… ( حر مكلف ) عالم بفرضيته ( الدر المختار 2/455-458)
قال الشامي: قوله ( على الفور ) هو الإتيانبه في أول أوقات الإمكان ويقابله قول محمد إنه على التراخي وليس معناه تعين التأخير بل بمعنى عدم لزوم الفور…قوله ( وإن أثم بموته قبله ) أي بالإجماع كما في الزيلعي أما على قولهما فظاهر وأما على قول محمد فإنه وإن لم يأثم بالتأخير عنده لكن بشرط الأداء قبل الموت فإذا مات قبله ظهر أنه آثم قيل من السنة الألى وقيل من الأخيرة من سنة رأى في نفسه الضعف وقيل يأثم في الجملة غير محكوم بمعين بل علمه إلى الله تعالى كما في الفتح ( رد المحتار 2/457)
जवाब देनेवालेः
मुफ़ती झकरिया मांकडा
इजाझत देनेवालेः
मुफ़ती इब्राहीम सालेहजी