अज़ान देने के समय निम्नलिखित सुन्नतों और आदाब का लिहाज़ रखा जाए
(१) अज़ान के अलफ़ाज़ को मत बिगाड़ो और न ही ऐसे तरन्नुम(राग) और सुर के साथ अज़ान दो के अज़ान के अलफ़ाज़ बिगड़ जाऐं.[१]
عن يحيى البكاء قال: قال رجل لابن عمر: إني لأحبك في الله فقال ابن عمر: لكني أبغضك في الله قال: ولم قال: إنك تتغنى في أذانك وتأخذ عليه أجرا (مجمع الزوائد رقم ۱۹٠۹)[२]
हज़रत यहया बक्का(रह.) से रिवायत है के एक शख़्स ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर(रजि.) से कहा, बेशक में अल्लाह के लिए आप से मुहब्बत करता हुं. हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर(रज़ि.) ने उस से कहा, लेकिन में तुम्हें अल्लाह के वास्ते नापसंद करता हुं. उस शख़्स ने पूछा, क्युं? हज़रत इब्ने उमर(रज़ि.) ने जवाब दिया, तुम गा कर(संगीत के सूर के साथ) अज़ान देते हो और अज़ान देने की उजरत वसूल करते हो.
(२) अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआ करना, इस लिए के यह दुआ की क़बूलियत का समय है.
عن أنس بن مالك رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: الدعاء لا يرد بين الأذان والإقامة (سنن الترمذي رقم ۲۱۲)[३]
हज़रत अनस बिन अनस(रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया, “अज़ान और इक़ामत के दरमियान दुआ रद नहीं की जाती है.”
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[१] ( ولا لحن فيه ) أي تغني بغير كلماته فإنه لا يحل فعله وسماعه كالتغني بالقرآن وبلا تغيير حسن
قال الشامي : قوله ( بغير كلماته ) أي بزيادة حركة أو حرف أو مد أو غيرها في الأوائل والأواخر قوله ( وبلا تغيير حسن ) أي والتغني بلا تغيير حسن فإن تحسين الصوت مطلوب ولا تلازم بينهما بحر وفتح (رد المحتار ۱/۳۸۷)
وأما بيان سنن الأذان فسنن الأذان في الصلاة نوعان: نوع يرجع إلى نفس الأذان، ونوع يرجع إلى صفات المؤذن.
(أما) الذي يرجع إلى نفس الأذان فأنواع … (ومنها) ترك التلحين في الأذان، لما روي أن رجلا جاء إلى ابن عمر – رضي الله عنهما – فقال: إني أحبك في الله تعالى فقال ابن عمر: إني أبغضك في الله تعالى فقال: لم قال: لأنه بلغني أنك تغني في أذانك، يعني التلحين … (بدائع الصنائع ۱/٦٤۲-٦٤٤)
[२] رواه الطبراني في الكبير وفيه يحيى البكاء ضعفه أحمد وأبو زرعة وأبو حاتم وأبو داود ووثقه يحيى بن سعيد القطان وقال محمد بن سعد: كان ثقة إن شاء الله
[३] قال أبو عيسى: حديث أنس حديث حسن