अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-९)

अज़ान देने के समय निम्नलिखित सुन्नतों और आदाब का लिहाज़ रखा जाए

(७) حيّ على الصّلاة (हय्या अलस्सलाह)कहने के समय चेहरा दायीं तरफ़ फेरना और حيّ على الفلاح(हय्या अलल फ़लाफ) के समय चेहरा बायीं तरफ़ फेरना. حيّ على الصّلاة (हय्या अलस्सलाह)और حيّ على الفلاح (हय्या अलल फ़लाफ)के बाद सीना मत फेरो, मात्र चेहरा फेरो.[१]

عن عون بن أبي جحيفة عن أبيه قال: أتيت النبي صلى الله عليه وسلم بمكة وهو فى قبة حمراء من أدم فخرج بلال فأذن … فلما بلغ حي على الصلاة حي على الفلاح لوى عنقه يمينا وشمالا ولم يستدر (سنن أبي داود رقم ۵۲٠)

हज़रत अबु जुहैफ़ा(रज़ि.) फ़रमताते हैं के में रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के पास मक्का मुकर्रमा में हाज़िर हुवा. आप(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) उस समय चमड़े से बने हुए सुर्ख़(लाल) रंग के ख़ैमे(तंबु) में तशरीफ़ फ़रमा थे. हज़रत बिलाल(रज़ि.) अज़ान देने के लिए निकले और अज़ान दी. जब हज़रत बिलाल(रज़ि.) अज़ान दे दरमियान حيّ على الصّلاة (हय्या अलस्सलाह) और حيّ على الفلاح (हय्या अलल फ़लाफ) पर पहोंचे, तो उन्होंने अपनी गरदन दायीं और बायीं जानिब फैरी और अपना सीना नहीं फेरा.

 عن أبي جحيفة رضي الله عنه قال: رأيت بلالا يؤذن ويدور ويتبع فاه هاهنا وهاهنا وإصبعاه في أذنيه (سنن الترمذي رقم ۱۹۷)[२]

हज़रत अबू जुहैफ़ा(रज़ि.) फ़रमाते हैं के में ने हज़रत बिलाल(रज़ि.) को देखा के वह अज़ान दे रहे हैं और (حيّ على الصّلاة (हय्या अलस्सलाह) और حيّ على الفلاح (हय्या अलल फ़लाफ)) के समय अपने चेहरे को दायीं और बायीं जानिब धुमा रहे हैं इस हाल में के उन की दोनों उंगलियां उन के कानों में हैं.

(९) मस्जिद से बाहर अज़ान देना. बेहतर यह है के बुलंद जगह से अज़ान दी जाए, ताकि आवाज़ दूर तक पहुंचे.[३]

عن عروة بن الزبير عن امرأة من بني النجار قالت: كان بيتي من أطول بيت حول المسجد وكان بلال يؤذن عليه الفجر فيأتي بسحر فيجلس على البيت ينظر إلى الفجر فإذا رآه تمطى ثم قال: اللهم إني أحمدك وأستعينك على قريش أن يقيموا دينك قالت: ثم يؤذن قالت: والله ما علمته كان تركها ليلة واحدة تعني هذه الكلمات (سنن أبي داود رقم ۵۱۹)[४]

हज़रत उरवह बिन ज़ुबैर(रह.) बनू नज्जार की एक औरत से नक़ल करते हैं के उस ने कहा, मेरा मकान मस्जिद(मस्जिदे नबवी) के आस पास मकानात में सब से ऊंचा था. हज़रत बिलाल(रज़ि.) मेरे मकान की छत पर चढ कर अज़ान देते थे. (हज़रत बिलाल(रज़ि.) की आदत थी के) वह सहरी के समय आते और छत पर बैठ कर सुबह सादिक़ का इंतेज़ार करते और जब उस को देख लेते(सुबह सादिक़ को) तो(सुबह सादिक़ के इंतेज़ार में दैर तक बेठने की वजह से) खड़े होकर अंगड़ाई लेते फिर यह दुआ करते, اللهم إني أحمدك وأستعينك على قريش أن يقيموا دينك (ए अल्लाह, में आप की हम्द करता हुं और क़ुरैश(नबी(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के क़बीले) के लिए मदद तलब करता हुं के उन को इस्लाम की हिदायत नसीब फ़रमा ताकि) वह आप के दीन को लेकर खड़े हो जाऐं(दीने इस्लाम की सर बलंदी का ज़रीआ बनें). बनू नज्जार की औरत मज़ीद फ़रमाती हैं, फिर हज़रत बिलाल(रज़ि.) अज़ान देते. (उस औरत ने यह भी कहा) ख़ुदा के वास्ते! मुझे याद नहीं है के हज़रत बिलाल(रज़ि.) ने एक रात भी(क़ुरैश के लिए) इन दुआईय्या कलिमात को छोड़ा हो.

 

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?cat=379


 

[१] قوله ( ويلتفت يمينا وشمالا بالصلاة والفلاح ) لما قدمناه ولفعل بلال رضي الله عنه على ما رواه الجماعة ثم أطلقه فشمل ما إذا كان وحده على الصحيح لكونه سنة الأذان فلا يتركه خلافا للحلواني لعدم الحاجة إليه وفي السراج الوهاج إنه من سنن الأذان فلا يخل المنفرد بشيء منها حتى قالوا في الذي يؤذن للمولود ينبغي أن يحول اهـ وقيد باليمين والشمال لأنه لا يحول وراءه لما فيه من استدبار القبلة ولا أمامه لحصول الإعلام في الجملة بغيرها من كلمات الأذان وقوله بالصلاة والفلاح لف ونشر مرتب يعني أنه يلتفت يمينا بالصلاة وشمالا بالفلاح وهو الصحيح خلافا لمن قال إن الصلاة باليمين والشمال والفلاح كذلك (البحر الرائق ۱/۲۷۲)

[२] قال أبو عيسى: حديث أبي جحيفة حديث حسن صحيح

[३] ينبغي أن يؤذن على المأذنة أو خارج المسجد ولا يؤذن في المسجد كذا في فتاوى قاضي خان والسنة أن يؤذن في موضع عال يكون أسمع لجيرانه ويرفع صوته ولا يجهد نفسه كذا في البحر الرائق (الفتاوى الهندية ۱/۵۵)

[४] قال الحافظ : أخرجه أبو داود وإسناده حسن (فتح الباري ۲/۱۲۱)

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