मुअज़्ज़िन के फ़ज़ाईल(श्रेष्ठता)
- सहाबए किराम(रज़ि.) आरज़ू करते थे के वह ख़ुद अज़ान दें और उन के बच्चे भी अज़ान दें.
عن علي رضي الله عنه قال: ندمت أن لا أكون طلبت إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم فيجعل الحسن والحسين مؤذنين (مجمع الزوائد رقم ۱۸۳٦)[१]
हज़रत अली(रज़ि.) ने फ़रमाया के मुझे इस बात पर नदामत है के में ने रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से हज़रत हसन और हुसैन(रज़ि.) को मुअज़्ज़िन बनाने की दरख़ास्त नहीं की.
عن قيس بن أبي حازم قال: قدمنا على عمر بن الخطاب فسأل: من مؤذنكم فقلنا عبيدنا وموالينا فقال بيده هكذا يقلبها عبيدنا وموالينا: إن ذلكم بكم لنقص شديد لو أطقت الأذان مع الخلافة لأذنت (السنن الكبرى للبيهقي رقم ۲٠٠۲)[२]
हज़रत क़ैस बिन हाज़िम(रह.) फ़रमाते हैः हम हज़रत उमर बिन ख़त्ताब(रज़ि.) की सेवा में हाज़िर हुए(गुफ़तगु के दौरान) आप ने पूछाः (तुम्हारे इलाक़े में) कोन अज़ान देता है? हम ने जवाब दियाः عبيدنا وموالينا (हम ने अपने ग़ुलामों को मुअज़्ज़िन बनाया है) फिर फ़रमायाः बेशक यह तुम्हारी तरफ़ से बहुत बड़ी कमी है(के तुम ने ऐसे लोगों को मुअज़्ज़िन बनाया है, जिन के पास दीन का इल्म ज़्यादह नही है के अज़ान इतनी बड़ी इबादत है और उस का षवाबइतना बड़ा है के)अगर मेरे लिए ख़िलाफ़त के उमूर को अंजाम देने के साथ साथ अज़ान देना मुमकिन होता तो में अज़ान देता( मुअज़्ज़िन बनता).
عن عمر أنه قال: لو كنت مؤذنا لكمل أمري وما باليت أن لا أنتصب لقيام ليل ولا لصيام نهار سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: اللهم اغفر للمؤذنين ثلاثا قلت: يا رسول الله تركتنا ونحن نجتلد على الأذان بالسيوف فقال: كلا يا عمر إنه سيأتي زمان يتركون الأذان على ضعفائهم تلك لحوم حرمها الله على النار لحوم المؤذنين (كشف الخفاء رقم ۲۱۱۸)[३]
हज़रत उमर(रज़ि.) का इरशाद है के अगर में(ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारियां निभाने के साथ साथ) मुअज़्ज़िन होता तो मेरा काम पूरा हो जाता(मेरी ख़्वाहिश पूरी हो जाती) फिर मुझे इस बात की परवाह नहीं होती के में रात में नमाज़(तहज्जुद) के बेदार न हुं और दिन में रोज़ा न रखुं(मुअज़्ज़िन का षवाब अज़ान देने से इतना बड़ा है के अगर में मुअज़्ज़िन होता तो में अज़ान के अलावह कोई भी नफ़ल इबादत न करता तो वह मुझे परवाह नहीं है) क्युंकि में ने रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को फ़रमाते हुए सुना हैः “ऐ अल्लाह! मुअज़्ज़िन की मग़फ़िरत फ़रमा” आप ने यह तीन मरतबा फ़रमाया. में ने अरज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)!(आप ने मुअज़्ज़िन का मक़ाम इतना बुलंद कर दिया के अब) आप ने हमें इस हाल में छोड़ दिया है के हम अज़ान देने के लिए आपस में तलवार से मुक़ाबला करेंगे. नबी(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः उमर ! ऐसा हरगिज़ नहीं है. ऐक ऐसा ज़माना आएगा के लोग अज़ान की ज़िम्मेदारी कमज़ोरों के कंधों पर ड़ाल देंगे(यअनी ऐक ज़माने में लोगों में अज़ान देने और मुअज़्ज़िन बनने का जज़बा और शोक़ नहीं होगा, लिहाज़ा वह यह ज़िम्मेदारी कमज़ोर लोगों को दे देंगे) यह(मुअज़्ज़िनीन) ऐसे लोग हैं के अल्लाह तआला ने दोज़ख़ की आग को उन के गोश्त पर हराम कर दिया है.
عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال لو يعلم الناس ما في النداء والصف الأول ثم لم يجدوا إلا أن يستهموا عليه لاستهموا (صحيح البخاري رقم ٦۱۵)
हज़रत अबू हुरैरह(रज़ि.) से रिवायत है के नबी(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)ने फ़रमायाः अगर लोगों को अज़ान देने और पैहली सफ़ में नमाज़ अदा करने का षवाब मालूम हो जाए और उन्हें यह मोक़ा मात्र क़ुरा अंदाज़ी के ज़रीए मिले, तो वह ज़रूर उस के लिए(अज़ान देने और पेहली सफ़ में नमाज़ अदा करने के लिए) क़ुरा अंदाज़ी करेंगे.
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[१] رواه الطبراني في الأوسط وفيه الحارث وهو ضعيف
[२] حدثنا يزيد ووكيع قالا: حدثنا إسماعيل عن شبيل بن عوف قال: قال عمر: من مؤذنوكم قالوا: عبيدنا وموالينا قال: إن ذلك لنقص بكم كبيرا إلا أن وكيعا قال: كثير أو كبير حدثنا يزيد ووكيع عن إسماعيل قال: قال قيس: قال عمر: لو كنت أطيق الأذان مع الخليفى لأذنت (المصنف لابن أبي شيبة رقم ۲۳۵۹، ۲۳٦٠)
[३] لولا الخليفى لأذنت رواه أبو الشيخ ثم البيهقي عن عمر من قوله ورواه سعيد بن منصور عنه أنه قال: لو أطيق مع الخليفى لأذنت ولأبي الشيخ ثم الديلمي عنه أنه قال: لو كنت مؤذنا لكمل أمري وما باليت أن لا أنتصب لقيام ليل ولا لصيام نهار سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: اللهم اغفر للمؤذنين ثلاثا قلت: يا رسول الله تركتنا ونحن نجتلد على الأذان بالسيوف فقال: كلا يا عمر إنه سيأتي زمان يتركون الأذان على ضعفائهم تلك لحوم حرمها الله على النار لحوم المؤذنين والخليفى بكسر المعجمة واللام المشددة والقصر الخلافة وهو وأمثاله من الأبنية الدليلى مصدر يدل على الكثرة يعني هنا: لولا كثرة الاشتغال بأمر الخلافة وضبط أحوالها لأذنت (كشف الخفاء رقم ۲۱۱۸)