इयादते-मरीज़ की सुन्नतें और आदाब – २

इयादते-मरीज़ के फज़ाइल

सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की दुआ का हुसूल

हज़रत अली रद़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़र्माया: “जो शख़्स सुब्ह को किसी बिमार आदमी की इयादत करे, उस के लिए सत्तर हज़ार फ़रिश्ते शाम तक अल्लाह तआला से रहमत की दुआ करेंगे और जो शख़्स शाम को किसी बिमार आदमी की इयादत करे , उसके लिए सत्तर हज़ार फरिश्ते सुब्ह तक अल्लाह तआला से रहमत की दुआ करेंगे और उस को जन्नत में एक बाग मिलेगा।”

जन्नत में महल की तामीर

हज़रत अबू-हुरैरह रद़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़र्माया कि “जब कोई शख्स किसी बिमार आदमी की इयादत करता है तो आसमान से एक फरिश्ता पुकारता है कि आराम-व-सुकून से रहो। तुम्हारा चलना कितना अच्छा है (यानी अपने भाई से मुलाक़ात और उस की ख़बरगिरी के लिए) और (इस अमल से) तुमने अपने लिए जन्नत में एक महल बना लिया है।”

अल्लाह की रज़ा का हुसूल

हज़रत अबू-हुरैरह रद़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़र्माया कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला फ़रमाएंगे: ​”ऐ आदम के बेटे! मैं बीमार था, मगर तूने मेरी इयादत नहीं की।” वह शख़्स जवाब देगा: ​”ऐ अल्लाह! मैं आपकी इयादत कैसे करता, जबकि आप तो दोनों जहानों के परवरदिगार हैं (और बीमारी से पाक हैं)?” ​अल्लाह तआला फ़रमाएंगे: ​”क्या तुझे मालूम नहीं कि मेरा फ़लां बंदा बीमार था और तूने उसकी इयादत नहीं की? क्या तुझे मालूम नहीं था कि अगर तू उसकी इयादत करता, तो तू मुझे उसके पास पाता?” (यानी तू मेरे सवाब और रज़ा को इस अमल के ज़रिए हासिल करता)

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