मरीज़ की इयादत की सुन्नतें और आदाब – ​​१

मरीज से इयादत

दीने-इस्लाम इस बात का हुक्म देता है कि इन्सान अल्लाह तआला के हुकूक और उसके बंदों के हुकूक को पूरा करे।

बंदों के जो हुकूक इन्सान पर लाज़िम हैं, उनकी दो किस्म हैं:

पहली किस्म = जो हर एक पर इन्फिरादी तौर पर लाज़िम हैं। उदाहरण के लिए: हर शख़्स की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने वालिदैन (पैरेंट्स), रिश्तेदारों और पड़ोसियों वग़ैरह के हुकूक अदा करे।

दूसरी क़िस्म = जो आम तौर पर तमाम मुसलमानों से संबंधित हैं। इस क़िस्म के बारे में, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने हदीस-शरीफ में इर्शाद फरमाया है कि हर मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमानों पर छह हुकूक हैं। इन छह इज्तिमाई हुकूक में से एक यह भी है कि जब कोई मुसलमान भाई बीमार हो, तो उसकी इयादत की जाए।

हज़रत अली रद़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) ने फ़रमाया: हर मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर छह हुकूक हैं: जब वह उससे मिले, तो उसे सलाम करे। अगर वह उसे दावत दे, तो उसकी दावत कबूल करे। जब उसे छींक आए (और अल्ह़म्दुलिल्लाह कहे), तो उस के जवाब में यर्ह़मुकल्लाह कहे। जब ​​वह बीमार हो, तो उसकी इयादत करे। जब ​​उसका इन्तिक़ाल हो जाए, तो जनाज़े की नमाज़ में शरीक हो और उसके लिए वही पसंद करे जो वह अपने लिये पसंद करता है।

(‘इयादत = बीमार-पुर्सी)

(इन्फिरादी = व्यक्तिगत)

(इज्तिमाई = सामूहिक)

(यर्ह़मुकल्लाह = अल्लाह तुझपर रह़म करे)

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