
सरीयतुल-अम्बर में फ़क़र की हालत
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने रजब सन् ०८ हिजरी में समुन्दर के किनारे एक लश्कर तीन सौ आदमियों का जिन पर हज़रत अबू-उबैदा रद़ियल्लाहु अन्हु अमीर बनाये गए थे, भेजा । हुज़ूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने एक थैली में खजूरों का तोशा भी दिया। पन्द्रह रोज़ इन हजरात का वहां क्यिाम रहा और तोशा खत्म हो गया।
हजरत क़ैस रद़ियल्लाहु अन्हु ने जो इस क़ाफ़िले में थे, मदीना-मुनव्वरा में क़ीमत अदा करने के वायदे पर क़ाफ़िला वालों से ऊंट खरीद कर ज़ब्ह करना शुरू किये और तीन ऊंट रोज़ाना ज़ब्ह करते, मगर तीसरे दिन अमीरे क़ाफ़िला ने, इस ख्याल से कि सवारियां खत्म हो गयीं, तो वापसी भी मुश्किल हो जायेगी, ज़ब्ह की मुमानअत की और सब लोगों के पास अपनी-अपनी जो खजूरें मौजूद थीं, जमा करके थैली में रख ली और एक-एक खजूर रोज़ाना तक्सीम फ़रमा दिया करते, जिसको चूसकर ये हज़रात पानी पी लेते और रात तक के लिये यही खाना था।
कहने को मुख्तसर सी बात है, मगर लड़ाई के मौक़े पर जबकि कुव्वत और ताक़त की भी ज़रूरत हो, एक खजूर पर दिन भर गुज़ार देना, दिल व जिगर की बात है।
चुनांचे हज़रत जाबिर रद़ियल्लाहु अन्हु ने जब यह क़िस्सा लोगों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के बाद सुनाया तो एक शागिर्द ने अर्ज़ किया कि हज़रत! एक खजूर क्या काम देती होगी? आपने फ़रमाया, इसकी क़दर जब मालूम हुई, जब वह भी न रही कि बजुज़ फ़ाक़े के कुछ भी न था। दरख़्त के खुश्क पत्ते झाड़ते और पानी में भिगोकर खा लेते।
मजबूरी सब कुछ करा देती है और हर तंगी के बाद अल्लाह तआला जल्ल शानुहू के यहां से सहूलत होती है।
हक़ तआला ने इन तकलीफ़ और मशक्कतों के बाद समुन्दर में से एक मछली उन लोगों को पहुंचाई, जिसको अम्बर कहते हैं, इतनी बड़ी थी कि अठ्ठारह रोज़ तक ये हज़रात उसमें से खाते रहे और मदीना-मुनव्वरा पहुंचने तक उसका गोश्त तोशों में साथ था।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के सामने जब सफ़र का मुफ़स्सल क़िस्सा सुनाया गया, तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि यह अल्लाह का एक रिज़्क़ था, जो तुम्हारी तरफ़ भेजा गया।
फ़ायदा: मशक़्क़त और तकालीफ़ इस दुनिया में ज़रूरी हैं और अल्लाह वालों को खास तौर पर पेश आती हैं।
इसी वजह से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का इर्शाद है कि अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को सबसे ज़्यादा मशक़्क़त में रखा जाता है फिर जो सबसे अफ़ज़ल हों। फिर उनके बाद जो बक़िया में अफ़ज़ल हों।
आदमी की आज़माइश उसकी दीनी हैसियत के मुवाफ़िक़ होती है और हर मशक़्क़त के बाद अल्लाह की तरफ़ से उस के लुत्फ़ व फ़ज़्ल से सहूलत भी अता होती है।
यह भी गौर किया करें कि हमारे बड़ों पर क्या-क्या गुज़र चुका और यह सब दीन ही की खातिर था। इस दीन के फैलाने में, जिसको आज हम अपने हाथों से खो रहे हैं, इन हज़रात ने फ़ाक़े किए, पत्ते चाबे और खून बहाये और इसको फैलाया, जिस को आज हम बाक़ी भी नहीं रख सकते।
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