फज़ाइले-आमाल – २५

हज़रत उमर रज़ि० के वुस्अत तलब करने पर तंबीह और हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) के गुज़र की हालत

बीवियों की बाज़ ज़्यादतियों पर एक मर्तबा हुज़ूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने क़सम खा ली थी कि एक महीने तक उनके पास न जाऊंगा, ताकि उनको तंबीह हो और अलाहिदा ऊपर एक हुजरे में क़ियाम फ़रमाया था।

लोगों में यह शोहरत हो गई कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने सबको तलाक़ दे दी।

हज़रत उमर रजि० उस वक़्त अपने घर थे, जब यह खबर सुनी तो दौड़े हुए आए, मस्जिद में देखा कि लोग मुतफ़रिक’ तौर पर बैठे हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के रंज और गुस्से की वजह से रो रहे हैं, बीवियां भी सब अपने-अपने घरों में रो रही हैं।

अपनी बेटी हजरत हफ़्सा रजि० के पास तशरीफ़ ले गए, वह भी मकान में रो रही थीं। फ़रमाया कि अब क्यों रो रही है? क्या मैं हंमेशा इससे नहीं डराया करता था कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की नाराज़गी की कोई बात न किया कर।

इसके बाद मस्जिद में तशरीफ़ लाए। वहां एक जमाअत मेम्बर के पास बैठी रो रही थी। थोड़ी देर वहां बैठे रहे, मगर शिद्दते-रंज से बैठा न गया, तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम जिस जगह तशरीफ़ फ़रमा थे उसके क़रीब तशरीफ़ ले गए और हज़रत रिबाह रजि० एक गुलाम के ज़रिये से जो दोबारी के ज़ीने पर पांव लटकाये बैठे थे, अन्दर हाज़िरी की इजाज़त चाही।

उन्होंने हाज़िरे-खिदमत होकर हजरत उमर रजि० के लिए इजाज़त मांगी मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने सुकूत फ़रमाया, कोई जवाब न दिया। हजरत रिबाह रजि० ने आकर यही जवाब उमर रजि० को दे दिया कि मैं ने अर्ज़ कर दिया था, मगर कोई जवाब नहीं मिला।

हज़रत उमर रजि० मायूस होकर मेम्बर के पास आ बैठे मगर बैठा न गया. तो फिर थोड़ी देर में हाज़िर होकर हजरत रिबाह रजि० के ज़रिए इजाज़त चाही।

इसी तरह तीन बार पेश आया कि यह बेताबी से गुलाम के ज़रिए इजाज़त हाजिरी की मांगते । उधर से जवाब में सुकूत और ख़ामोशी ही होती।

तीसरी बार जब लौटने लगे तो हजरत रिबाह रजि० ने आवाज़ दी और कहा कि तुम्हें हाज़िरी की इजाज़त हो गई।

हज़रत उमर रजि० हाज़िरे-खिदमत हुए तो देखा कि हुज़ूरे-अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक बोरिए पर लेटे हुए हैं, जिस पर कोई चीज़ बिछी हुई नहीं है, इस वजह से जिस्मे-अतहर पर बोरिए के निशान भी उभर आये हैं। खूबसूरत बदन पर निशानात साफ नज़र आया ही करते हैं और सिरहाने चमड़े का एक तकिया है जिसमें खजूर की छाल भरी हुई है।

मैंने सलाम किया और सबसे अव्वल तो यह पूछा, क्या आपने बीवियों को तलाक़ दे दी है? आपने फ़रमाया, नहीं।

इसके बाद मैंने दिलबस्तगी के तौर पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम से अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम)! हम कुरैशी लोग औरतों पर ग़ालिब रहते थे, मगर जब मदीना आये तो देखा कि अन्सार की औरतें मदों पर ग़ालिब हैं। उनको देखकर कुरैश की औरतें भी उससे मुतास्सिर हो गयीं।

इसके बाद मैंने एक आध बात और की, जिसने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के चेहरा-ए-अनवर पर तबस्सुम के आसार ज़ाहिर हुए।

मैंने देखा कि घर का कुल सामान यह था, तीन चमड़े बगैर दबाग़त दिये हुए और एक मुठ्ठी जौ, एक कोने में पड़े हुए थे।

मैंने इधर-उधर नज़र दौड़ाकर देखा तो इसके सिवा कुछ न मिला। मैं देखकर रो दिया। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़रमाया कि क्यों रो रहे हो ? मैंने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम)! क्यों न रोऊं कि ये बोरिए के निशानात आपके बदने-मुबारक पर पड़ रहे हैं और घर की कुल कायनात यह है जो मेरे सामने है।

फिर मैंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम)! दुआ कीजिए कि आपकी उम्मत पर भी वुस्अत हो। ये रूम व फ़ारस बे-दीन होने के बावजूद कि अल्लाह की इबादत नहीं करते, इन पर तो यह वुस्अत, यह कैसर व किसरा तो बाग़ों और नहरों के दमियान हों और आप अल्लाह के रसूल हैं और खास बन्दे होकर यह हालत। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम तकिया लगाये हुए लेटे थे।

हजरत उमर की यह बात सुनकर बैठ गए और फ़रमाया कि उमर ! क्या अब तक इस बात के अन्दर शक में पड़े हुए हो। सुनो, आखिरत की वुस्अत दुनिया की वुस्अत से बहुत बेहतर है। इन कुफ़्फ़ार की तय्यिबात (उमदा चीज़ें) और अच्छी चीजें दुनिया में मिल गयीं और हमारे लिए आखिरत में हैं।

हजरत उमर रजि० ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम)! मेरे लिए इस्तिफ़ार फ़रमायें कि वाक़ई मैंने गलती की।

फायदा: दीन और दुनिया के बादशाह और अल्लाह के लाडले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का तर्ज़े-अमल है कि बोरिए पर कोई चीज़ बिछी हुई भी नहीं, निशानात बदन पर पड़े हुए हैं, घर के साज व सामान का हाल भी मालूम हो गया, उस पर एक शख्स ने दुआ की दरख्वास्त की तो तंबीह फ़रमाई।

हजरत आइशा रजि० से किसी ने पूछा था कि आपके घर में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का बिस्तरा कैसा था। फ़रमाया कि एक चमड़े का था, जिसमें खजूर की छाल भरी हुई थी।

हजरत हफ़्सा रजि० से भी किसी ने पूछा कि चापके घर में हुज़ूर सल्लल्लाहु ‘अलैही व-सल्लम का कैसा बिस्तर था, फ़रमाया कि एक टाट था, जिसको दोहरा करके हुजूरे सल्ल० के नीचेविछा देती थी।

एक रोज़ मुझे ख्याल हुआ कि अगर इसको चोहरा करके बिछा दूं तो ज्यादा नर्म होजाए । चुनांचे हमने बिछा दिया। हुजूर सल्लल्लाहु ‘अलैही व-सल्लम ने सुबह को फ़रमाया कि रात क्या बिछा दिया था। हमने अर्ज़ कर दिया कि वही टाट था, उसको चोहरा कर दिया था, फ़रमाया, उसको वैसा ही कर दो जैसा पहले था । उसकी नर्मी रात को उठने में माने’ (रूकावट) बनती है।

अब हम लोग अपने नर्म-नर्म और रोएंदार गद्दों पर भी निगाह डालें कि अल्लाह ने किस क़दर वुस्अत फ़रमा रखी है और फिर भी बजाए शुक्र के हर वक़्त तंगी की शिकायत ही ज़बान पर रहती है।

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