कयामत की निशानियां – सातवां एपीसोड

पहला हिस्सा:

दज्जाल के तीन खास हथियार: दौलत, औरत और खेलकूद

जब दज्जाल लोगो के सामने आयेगा तो लोगो को गुमराह करने के लिए तीन खास हथियार इस्तेमाल करेगा और वो तीन हथियार दौलत, औरत और खेलकूद हैं।

अल्लाह तआला उसे बाज़ ऐसे काम अंजाम देने की ताकत अता करेगा जो इन्सान के बस की बात नहीं है जो भी उन को देखेगा वह दज्जाल के फ़ित्ने में फंस जायेगा।

अल्लाह तआला उसे कुदरत देगा कि वह बादल से पानी बरसाए और ज़मीन से अनाज उत्पादन करे; यहां तक कि वो जहां भी जायेगा ज़मीन की दौलत उस के पीछे चलेगी, जिस तरह शहद की मक्खियां अपनी रानी के पीछे चलती हैं।

जब लोग उस के पास हर तरह की दौलत देखेंगे तो दौलत की लालच उन को दज्जाल की तरफ खींच कर ले जायेगी, जिस के बाद वो उस के जाल और धोखे में फंस जायेंगे और उस के साथ हो जायेंगे। अंजाम-कार इसतरह उन के इमान का खात्मा हो जायेगा।

दज्जाल के फ़ित्नों की सख़्ती बयान करते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़रमाया:

दज्जाल एक कौम के पास आयेगा और उन को दावत देगा (कि वो उसे अल्लाह मानें) तो वो लोग उस पर इमान लायेंगे और उस की दावत को कबूल कर लेंगे। फिर वो आसमान को हुक्म देगा तो वो बारिश बरसाएगा और ज़मीन को हुक्म देगा तो वो अनाज उगायेगी; चुनांचे शाम को उन के जानवर उन के पास इस तरह वापस आयेंगे कि उन के कोहान पहले से ज़्यादा ऊंचे होंगे, उन के थन पहले से ज़्यादा भरे होंगे और उन की टांगें पहले से ज़्यादा मोटी होगी। उस के बाद दज्जाल एक दूसरी कौम के पास जायेगा और उन को दावत देगा (कि वो उसे अल्लाह मानें) लेकिन वो लोग उस की दावत को कबूल नहीं करेंगे, तो वो उन से मुंह मोड़कर चला जायेगा। उस के बाद वो लोग कहत (अकाल) में मुब्तला हो जायेंगे और उन के पास कुछ भी माल नहीं बचेगा, फिर दज्जाल एक बंजर ज़मीन के पास से गुज़रेगा और उस से कहेगा कि अपने खज़ाने निकालो; चुनांचे खज़ाने उस के पीछे इसतरह चलेंगे जिस तरह शहद की मक्खियां अपनी रानी के पीछे-पीछे चलती हैं। (सही मुस्लिम, अर्-रक़म: २९३७)

दज्जाल के असल फॉलोअर

एक हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने बयान किया कि दज्जाल के असल फॉलोअर यहूदी लोग, औरतें और सूद (इंट्रेस्ट-ब्याज) में लिथ़डे हुए लोग होंगे; जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का इर्शाद है कि दज्जाल के ज्यादातर फॉलोअर यहुदी लोग और (बेदीन) औरतें होंगी।

एक रिवायत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़रमाया कि उस दिन (जब दज्जाल ज़ाहिर होगा) उसके ज़्यादातर फॉलोअर रिबा और सूदी लेन-देन में लिथ़डे हुए लोग होंगे।

(रिबा = ब्याज,सूद)

घूमने-फिरने और एंटरटेनमेंट का फ़ित्ना

जैसे जैसे वक़्त गुज़र रहा है पूरी दुनिया में उम्मत की दीनी हालत बहुत ज़्यादा खराब हो रही है और युरोप की लाइफस्टाइल उन के दिलो-दिमाग पर छा रही है। इस का रिज़ल्ट यह है कि हर जगा माल-दौलत से गहरा लगाव और लालच रोज़-रोज़ देखने में आ रहा है।

सालों पहले यूरोप ने महसूस किया कि लोगो के अंदर एंटरटेनमेंट और घूमने फिरने का बहुत शौक है; तो फिर उन्होंने उस से फ़ायदा उठाया और एंटरटेनमेंट का धंधा शुरू किया, जो अब पूरी दुनिया भर में छा गया है और आए दिन (अल्लाह बचाए) आगे बढ रहा है। और इस मनोरंजन का धंधा जिस तरह दिन दुगनी रात चुगनी तरक्की कर रहा है इस बात की साफ दलील है कि इन्सान के अन्दर मनोरंजन, सैर-सपाटा, खेल-तमाशा की एक ऐसी भूख है जो मिटने वाली नहीं है।

जो कमी थी उस को टेलीविज़न, कम्प्यूटर, लेपटोप, मोबाइल फोन ने पूरी की और इस मनोरंजन और दिल बहलाने की भूख और लालच को और बढ़ा दिया; इसलिए जब दज्जाल ज़ाहिर होगा तो यही चीजें
यानी मनोरंजन, दौलत और औरतों को इस्तेमाल कर के वो लोगो को गुमराह करेगा।

मोमिन और काफिर में फर्क

जब कोई इस मामले में सोच-विचार करता है तो उसके सामने यह बात साफ हो जाती है कि “मनोरंजन के लिए और घूमने-फिरने के लिए जीना” एक काफ़िर सोच और काफ़िर तबीयत है। उस की वजह यह है कि काफ़िरों के पास आख़िरत का न कोई ख्याल है और न उन का ‘अकीदा है, इस लिए वो इसी दुनिया के लिए जीते है और मरते है, दुनिया ही उन के नज़दीक सबकुछ है और उन का मानना है कि मरने के बाद कोई ज़िन्दगी नहीं जो मज़े उड़ाने हैं यहां उड़ा लो जब कि एक मुसलमान का अकीदा यह है कि मरने के बाद भी एक ज़िन्दगी है। कि जब आंख बंद होगी तब हकीकत सामने आएगी।

कुराने-मजीद में अल्लाह तआला ने काफिरो की ज़िन्दगी को खाने और लुत्फ-अंदोज़ी से ताबीर किया है।

अल्लाह तआला का इर्शाद है:

وَالَّذِينَ كَفَرُوا يَتَمَتَّعُونَ وَيَأْكُلُونَ كَمَا تَأْكُلُ الْأَنْعَامُ وَالنَّارُ مَثْوًى لَّهُمْ (سورة محمد: 12)‏ 

और जो लोग कुफ्र करते हैं, वो (दुनिया में) लुत्फ-अंदोज़ होते हैं और जानवरों कि तरह खाते हैं और (जहन्नम की) आग उनका ठिकाना होगी।

जब काफिरो के नज़दीक आख़िरत, जन्नत और जहन्नम का कोई तसव्वुर नहीं है और उन के दिलो में अल्लाह तआला के सामने हिसाब किताब देने का कोई डर नहीं है, तो उनकी यही सोच होगी कि वो सैर-ओ-तफ़रीह ही को सब कुछ समझें और उसी के लिए ज़िन्दगी गुज़ारें; जो भी हो किसी मोमिन और मुसलमान की यह सोच नहीं हो सकती है।

मोमिन और काफिर अपने अकीदे और सोच में एक दूसरे से अलग हैं। मोमिन का मकसदे-ज़िन्दगी अल्लाह तआला की खुशनूदी और आख़िरत के बुलंद दरजात के लिए कोशिश करना है। इसलिए वो दुनिया में हर वक़्त आख़िरत में अपने हंमेशा हमेश के ठिकाने की तैयारी में लगा रहता है।

खुलासा बात यह है कि दज्जाल के फित्ने से वही बच सकेंगे जो दुनिया की लज़्ज़त और तफरीह को अपना मकसद नहीं बनाते हैं बल्कि आख़िरत की तैयारी करते हैं और वो लोग जो हंमेशा दुनिया की पीछे लगे रहते और दुनिया कमाने में हलाल-हराम की परवाह नहीं करते हैं वो दज्जाल के फॉलोअर होंगे।

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