२७) अगर आप कीसी बरतन में पानी ले कर वुज़ू कर रहै हैं, तो वुज़ू के बाद बचा हुवा पानी खडे हो कर पी लें. [३७]
२८) वुज़ू के बाद शर्मगाह के इर्दगीर्द कपडें पर पानी छीड़कना [३८], ताकि बाद में अगर ये शक पैदा हुवा के वुज़ू के बाद पेशाब के कतरें निकल आए हें, तो इस तरह करने से वह शक दूर हो जाएगा. [३९] अलबत्ता अगर किसी को यकीन हो के वुज़ू के बाद पेशाब के कतरें निकले हैं, तो उस के लिए कपडें के उस हिस्से को जिस पर क़तरा गिरा है, धोना ज़रूरी होगा और वुज़ू का ईआदह(लौटाना) लाज़िम होगा. [४०]
२९) अगर वुज़ू के बाद अंग को ख़ुश्क(सुखाने) करने के लिए तौलिया इस्तिमाल करने की जरूरत हो, तो उस का इस्तिमाल कर सकते है हदीष शरीफ में वारिद है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) कईबार तौलिये का इस्तिमाल फ़रमाते थे और कईबार इस्तिमाल नहीं फ़रमाते थे.
३०) अगर आप हमेंशा(सदा) बावुज़ू रेह सकते हैं, तो बावुज़ू रहा करें, इस लिए के हर समय बावुज़ू रहना ईमान की अलामत है. हालते वुज़ू में वफ़ात पाने वाले को शहीद का दर्जा मिलता है.[४१] जब कोई वुज़ू करता है और वुज़ू से पेहले दुआ पढता है, तो जब तक के वह बावुज़ू रहता है, फ़रिश्ते उस के लिए नेक आमाल लिखते रहते हैं. [४२]
عن عبد الله بن عمرو قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: استقيموا ولن تحصوا واعلموا أن من أفضل أعمالكم الصلاة ولا يحافظ على الوضوء إلا مؤمن (سنن ابن ماجة رقم ٢٧٨)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने ईरशाद फ़रमायाः (तमाम ऊमूर) इस्तेक़ामत(अटलता) के साथ अंजाम(अंत) देने की कोशीश करो और तुम एसा पूरे तौर पर इस्तेक़ामत(अटलता) हासिल नहीं कर सकते(लेकिन बराबर कोशिश करते रहो). और याद रखो के सब से अफ़ज़ल अमल(कार्य) नमाज़ है. और मोमिन के अलावह कोई भी वुज़ू की हालत में पाबंदी से नही रेहता है(हर वक्त बावुज़ू रेहना मोमिन होने की अलामत है).
३१) वुज़ू के बाद आजा (अंग) सूखने से पेहले दो रकात तहिय्यतुल वुज़ू पढना मुस्तहब है, जो आदमी दो रकात तहिय्यतुल वुज़ू पढता है उस के सगीरह गुनाह मुआफ़ हो जाते हें. [४३]
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[३७] عن أبي حية قال: رأيت عليا توضأ فغسل كفيه حتى أنقاهما ثم مضمض ثلاثا واستنشق ثلاثا وغسل وجهه ثلاثا وذراعيه ثلاثا ومسح برأسه مرة ثم غسل قدميه إلى الكعبين ثم قام فأخذ فضل طهوره فشربه وهو قائم ثم قال: أحببت أن أريكم كيف كان طهور رسول الله صلى الله عليه وسلم (سنن الترمذي رقم 48)
(ومن آدابه) … ( … وأن يشرب بعده من فضل وضوئه) كماء زمزم (مستقبل القبلة قائما) أو قاعدا، وفيما عداهما يكره قائما تنزيها (الدر المختار 1/129)
[३८] وزاد في الخزائن … ورش الماء على الفرج وعلى السروال بعد الوضوء (رد المحتار 1/125)
[३९] (قال: كان النبي صلى الله عليه وسلم إذا بال توضأ ونضح فرجه) أي ورش إزراه بقليل من الماء أو سرواله به لدفع الوسوسة تعليما للأمة (مرقاة 2/77)
[४०] عن الحكم أو ابن الحكم عن أبيه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم بال ثم توضأ ونضح فرجه (سنن أبي داود رقم 168)
[४१] مجمع الزوائد رقم 1470
[४२] مجمع الزوائد رقم 1112
[४३] عن أبي هريرة قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم لبلال: عند صلاة الغداة يا بلال حدثني بأرجى عمل عملته عندك في الإسلام منفعة فإني سمعت الليلة خشف نعليك بين يدي في الجنة قال بلال: ما عملت عملا في الإسلام أرجى عندي منفعة من أني لا أتطهر طهورا تاما في ساعة من ليل ولا نهار إلا صليت بذلك الطهور ما كتب الله لي أن أصلي (صحيح مسلم رقم 2458)
عن عقبة بن عامر، قال: كانت علينا رعاية الإبل فجاءت نوبتي فروحتها بعشي فأدركت رسول الله صلى الله عليه وسلم قائما يحدث الناس فأدركت من قوله: «ما من مسلم يتوضأ فيحسن وضوءه، ثم يقوم فيصلي ركعتين، مقبل عليهما بقلبه ووجهه، إلا وجبت له الجنة» قال فقلت: ما أجود هذه فإذا قائل بين يدي يقول: التي قبلها أجود فنظرت فإذا عمر قال: إني قد رأيتك جئت آنفا، قال: ” ما منكم من أحد يتوضأ فيبلغ – أو فيسبغ – الوضوء ثم يقول: أشهد أن لا إله إلا الله وأن محمدا عبد الله ورسوله إلا فتحت له أبواب الجنة الثمانية يدخل من أيها شاء (صحيح مسلم رقم 234)
عن ثعلبة بن عباد عن أبيه رضي الله عنه قال ما أدري كم حدثنيه رسول الله صلى الله عليه وسلم أزواجا أو أفرادا قال ما من عبد يتوضأ فيحسن الوضوء فيغسل وجهه حتى يسيل الماء على ذقنه ثم يغسل ذراعيه حتى يسيل الماء على مرفقيه ثم غسل رجليه حتى يسيل الماء من كعبيه ثم يقوم فيصلي إلا غفر له ما سلف من ذنبه رواه الطبراني في الكبير بإسناد لين (الترغيب والترهيب رقم 301)
وقال الهيثمي في مجمع الزوائد (رقم 1134) : رواه الطبراني في الكبير، ورواه بإسناد آخر فقال: عن ثعلبة بن عمارة، وقال: هكذا رواه إسحاق الدبري عن عبد الرزاق. ووهم في اسمه، والصواب ثعلبة بن عباد. ورجاله موثقون